Religious Katha: जब देवी लक्ष्मी को भगवान विष्णु की शर्त के कारण बनना पड़ा गरीब स्त्री...

Edited By Updated: 14 May, 2025 09:57 AM

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किवदिंतियों के अनुसार जब भगवान विष्णु एक बार धरती पर भ्रमण के लिए निकले। उनकी अर्द्धांगिनी देवी लक्ष्मी भी उनके साथ चलने की इच्छा जताती हैं। भगवान विष्णु इस पर सहमत होते हैं, लेकिन एक शर्त रखते हैं  देवी लक्ष्मी को धरती पर उत्तर दिशा की ओर नहीं...

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Religious Katha: किवदिंतियों के अनुसार जब भगवान विष्णु एक बार धरती पर भ्रमण के लिए निकले। उनकी अर्द्धांगिनी देवी लक्ष्मी भी उनके साथ चलने की इच्छा जताती हैं। भगवान विष्णु इस पर सहमत होते हैं, लेकिन एक शर्त रखते हैं  देवी लक्ष्मी को धरती पर उत्तर दिशा की ओर नहीं देखना है, चाहे कोई भी परिस्थिति हो।

देवी लक्ष्मी यह शर्त मान जाती हैं और दोनों साथ धरती पर विचरण करने लगते हैं।

कुछ समय बाद चलते-चलते देवी लक्ष्मी की दृष्टि उत्तर दिशा की ओर पड़ती है। वहां का दृश्य अत्यंत मनोहर और हरा-भरा था। सुंदर बाग-बगीचे, फूलों की महक और हरियाली देखकर वे आकर्षित हो गईं। नियम भूलकर वे उस दिशा में चली गईं और एक सुंदर फूल तोड़ लिया।

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जब वे वापस भगवान विष्णु के पास पहुंचीं, तो श्रीहरि उन्हें देखकर दुखी हो गए और अश्रु बहाने लगे। देवी लक्ष्मी को तुरंत शर्त याद आ गई और उन्होंने अपनी भूल स्वीकार की। भगवान विष्णु ने उन्हें समझाया कि किसी वस्तु को बिना अनुमति छूना उचित नहीं होता, चाहे वह कितना भी सुंदर क्यों न हो। चूंकि फूल बगीचे का था, केवल वहां का माली ही उन्हें क्षमा कर सकता है। इसके प्रायश्चित के रूप में, उन्हें कुछ समय के लिए माली के घर सेविका बनकर रहना होगा।

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लक्ष्मी जी बनीं दासी
देवी लक्ष्मी ने विनम्रता से यह दंड स्वीकार कर लिया और एक साधारण स्त्री का रूप लेकर माली के घर काम करने चली गईं। माली ने उन्हें घरेलू कार्यों में लगा दिया। देवी लक्ष्मी ने पूरी श्रद्धा और सेवा से अपना कार्य किया। कुछ समय बाद माली को यह आभास हुआ कि जो स्त्री उसके घर में काम कर रही है, वह कोई साधारण स्त्री नहीं बल्कि स्वयं देवी लक्ष्मी हैं। यह जानकर वह अत्यंत भयभीत और दुखी हुआ। उसने देवी लक्ष्मी से क्षमा मांगी और उनके चरणों में गिर पड़ा।

देवी लक्ष्मी ने मुस्कराते हुए कहा कि यह सब नियति का खेल था। माली ने उन्हें परिवार का सदस्य माना इसलिए उन्होंने उसे जीवन भर के लिए सुख, समृद्धि और धन का आशीर्वाद दिया। इसके बाद देवी लक्ष्मी श्रीहरि विष्णु के साथ बैकुंठ लोक लौट गईं।

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