Edited By Prachi Sharma,Updated: 01 May, 2025 12:23 PM

मुगल बादशाह अकबर का दरबार लगा था। दरबार में संगीत सम्राट तानसेन के सुरों ने समां बांध रखा था। इसी बीच तानसेन ने बादशाह अकबर को संत सूरदास का एक पद गाकर सुनाया।
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Sant Surdas Story: मुगल बादशाह अकबर का दरबार लगा था। दरबार में संगीत सम्राट तानसेन के सुरों ने समां बांध रखा था। इसी बीच तानसेन ने बादशाह अकबर को संत सूरदास का एक पद गाकर सुनाया।
वह पद सुनकर सम्राट अकबर बड़े आनंदित हुए और बोले, “तानसेन आपने ऐसा मधुर पद पहले तो कभी हमें नहीं सुनाया ?”
तानसेन ने जवाब दिया, “हुजूर यह पद मेरा नहीं। यह तो संत सूरदास की रचना है।”

इस पर अकबर बोले, “उन्हें दरबार में बुलाओ, मैं उनके मुख से सुनना चाहता हूं।”
तानसेन ने कहा, “संत सूरदास तो अपने आपको प्रभु के चरणों में समर्पित कर गाते हैं।” उन्हें धन-सम्पत्ति की इच्छा भी नहीं है। इसलिए उन्हें नहीं बुला सकेंगे।”
बादशाह अकबर ने कहा, “कोई ऐसा उपाय करो जिससे हम उनके मुख से उनके पद सुन सकें।” तानसेन ने कहा, “आप मथुरा जाएं, वहां उन्हें सुन सकते हैं।”
अकबर ने अब मथुरा जाने का कार्यक्रम बना लिया। तानसेन ने कहा, “हो सकता है कि वह आपकी फरमाइश पर कृष्ण के पद आपको न सुनाएं। मैं कोई इंतजाम करूंगा।”
अकबर और तानसेन श्रीनाथ जी के मंदिर गए। तानसेन ने एक पद जानबूझ गलत गाया। इस पर झट सूरदास ने कहा कि आपने पद गलत गाया है। यह कह कर उन्होंने स्वयं अपनी मधुर वाणी में पद गाकर सुनाया। बादशाह पद सुनकर इतना मुग्ध हो गए कि प्रसन्न होकर संत सूरदास को आसपास की सारी जमीन देने का ऐलान कर दिया।

संत ने कहा, “सारी भूमि गोपाल की है। थोड़ी पर मेरा नाम क्यों लिखवाते हो, मुझे नहीं चाहिए।”
सम्राट ने कहा, “मैं आपकी क्या सेवा करूं ? मैं आपके गीत से अति प्रसन्न हूं।”
तब संत ने कहा, “यदि मुझे कुछ देना चाहते हैं तो इतना कीजिए कि मैं यहीं पर रह सकूं। बादशाह ने स्वीकार कर लिया और वह वहां से चल दिए।
