Edited By Niyati Bhandari,Updated: 06 Feb, 2024 11:32 AM
पदम पुराण के अनुसार प्राचीन काल में एक वयोवृद्धा ब्राह्मणी थी, जो भगवान के नित्यनेम कर्म करती व अपना अधिक समय प्रभु के नाम सिमरण में व्यतीत करती हुई अपना जीवन यापन कर रही थी।
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Shattila Ekadashi Vrat Katha: पदम पुराण के अनुसार प्राचीन काल में एक वयोवृद्धा ब्राह्मणी थी, जो भगवान के नित्यनेम कर्म करती व अपना अधिक समय प्रभु के नाम सिमरण में व्यतीत करती हुई अपना जीवन यापन कर रही थी। धर्म का आचरण करते हुए वह अनेक व्रत करती तथा उसने कन्याओं को वस्त्र दान तथा ब्राह्मणों को भूमि का दान भी किया। व्रत आदि करने से वह शुद्धात्मा काफी निर्बल हो गई थी। एक दिन भगवान ने उसका कल्याण करने के लिए साधू का वेष बनाया और उसके द्वार पर जाकर भिक्षा मांगी। ब्राहमणी ने उस साधू से पूछा कि वह कौन है और कहां से आया है ?
बार-बार पूछने पर भी उसके प्रश्न का भगवान ने कोई उत्तर नहीं दिया, तब वह वृद्धा चिढ़ गई और उसने गुस्से में एक मिट्टी का ठेला साधू वेष में खड़े भगवान के भिक्षा पात्र में डाल दिया। उसके कर्मों के अनुसार उसे अंत में स्वर्गलोक में स्थान तो प्राप्त हुआ परंतु उसे खाने-पीने के लिए कुछ भी नहीं मिला। जिस कारण वह स्वर्ग में रहते हुए भी अशांत रही। एक दिन उसने रोते-रोते भगवान से प्रार्थना की। भगवान ने कहा कि उसने किसी भी ब्राह्मण को अन्न का दान नहीं किया, इसी कारण उसे स्वर्ग में स्थान तो मिला परंतु खाने-पीने के लिए कुछ नहीं मिला।
वृद्धा ने अपने दुख का निवारण पूछा तो भगवान ने उसे कहा कि जब देव स्त्रियां मिलने आएं तो उन्हें दरवाजा न खोलना बल्कि उनसे षटतिला एकादशी की महिमा पूछने के बाद ही दरवाजा खोलना। ब्राह्मणी ने वैसा ही किया और षटतिला एकादशी व्रत के बारे में जाना। उसने नियम से षटतिला एकादशी का व्रत किया। जिसके प्रभाव से उसे रूप, यौवन, तेज व कान्ति के साथ ही अन्न-धन व अनेक प्रकार की भोजन सामग्री भी प्राप्त हुई।
यह व्रत दुर्भाग्य, गरीबी, कलह-कलेश को दूर करने वाला तथा तिल दान से सभी प्रकार के सुखों को देने वाला है। कहा जाता है कि कोई जितने अधिक तिलों का दान करता है, उसे उतने अधिक जन्मों तक सभी प्रकार के सुख प्रभु कृपा से प्राप्त होते हैं।