Mahaveer Jayanti: ये है भारत का सबसे प्रसिद्ध जैन मंदिर

Edited By Jyoti,Updated: 24 Apr, 2021 06:34 PM

shri mahavir ji temple

हमारे देश में विभिन्न धर्मों के लोग रहते हैं, यही कारण है कि भारत में हर धर्म के त्यौहार आदि मनाए जाते हैं। कल चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की तिथि, यानि 24 अप्रैल

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हमारे देश में विभिन्न धर्मों के लोग रहते हैं, यही कारण है कि भारत में हर धर्म के त्यौहार आदि मनाए जाते हैं। कल चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की तिथि, यानि 24 अप्रैल को महावीर जयंती का पर्व मनाया जाएगा। धार्मिक मान्याताओं के अनुसार ये पर्व जैन समुदाय के लिए विशेष माना जाता है। इसी खास अवसर पर हम आपको बताने जा रहे हैं भारत में स्थित सबसे प्रसिद्ध जैन मंदिर के बारे में। बता दें जिस मंदिर के बारे में हम जानकारी देने वाले हैंं वह श्री महावीर जी के नाम से जाना जाता है, जो राजस्थान में गंभीर नदी के तट पर स्थित है, यहां  24वें तीर्थकार कहे जाने वाले वर्धमान महावीर जी की भव्य प्रतिमा विराजित हैं। 

लोक मान्यताा के अनुसार यह मंदिर लगभग 400 साल पुराना है। इससे जुड़ी एक कथा के मुताबिक प्राचीन समय में यहां रोज़ाना प्रातः एक गाय घास चरने के लिए निकलती थी और शाम को घर लौटती थी, परंतु उसके थनों में बिल्कुल भी दूध नहीं होता था। इससे परेशान होकर एक दिन उसके मालिक चर्मकार प्रातः गाय के पीछे-पीछे गया। उसने देखा कि गाय एक विशेष स्थान पर अपना सारा दूध गिराती है। ये देखने के बाद चर्मकार ने उस विशेष स्थान पर स्थापित टीले की खुदाई करवाई, जहां से श्री महावीर भगवान की प्राचीन पाषाण प्रतिमा प्रकट हुई जिसे प्राप्त करके वह बेहद प्रसन्न हो गया। 

प्रचलित किंवदंतियों के अनुसार भगवान के इस अतिशय उद्भव से प्रभावित होकर बसवा निवासी अमरचंद बिलाला ने यहां महावीर जैन को समर्पित एक मंदिर का निर्माण करवाया। मंदिर को देखने पर इसकी आधुनिक जैन वास्तकुला का नमूना देखने को मिलता है। कहा जाता है कि यह जैैन कला शैली के बने समस्त मंदिरों से अद्भुत प्रतीत होता है। 

मंदिर के सामने सफेद संगमरमर से भव्य ऊंचा मानस्तंभ है जिसमें श्री महावीर जी की मूर्ति स्थापित की गई है। प्रतिदिन मंदिर में प्रात: बेला में महावीर जी की प्रतिमा को अभिषेक किया जाता है, फिर पूजा के समय चावल, चंदन, कपूर, केसर, मिश्री, गिरी और बादाम से पूजा की जाती है। वहीं संध्या बेला में घी के दीये जलाकर आरती संपन्न की जाती है। इस मंदिर की सबसे खास बात यह है कि छत्री पर चढ़ाया जाने वाला चढ़ावा उसी चर्मकार के वंशजों को दिया जाता है जिसने प्रतिमा को भूमि से खोदकर निकाला था।

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