Edited By Niyati Bhandari,Updated: 30 May, 2025 08:14 AM
Martyrdom Day Guru Arjun Dev Ji 2025: पंचम पातशाह श्री गुरु अर्जुन देव जी के किए गए उपकार गणना और वर्णन से परे हैं। ये उपकार अकल्पनीय और असंभव थे। उनकी राह कंटकपूर्ण थी, चुनौतियां चारों ओर से थीं। गुरु साहिब ने अपनी राह के हर कंटक को दूर किया, हर...
शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
Martyrdom Day Guru Arjun Dev Ji 2025: पंचम पातशाह श्री गुरु अर्जुन देव जी के किए गए उपकार गणना और वर्णन से परे हैं। ये उपकार अकल्पनीय और असंभव थे। उनकी राह कंटकपूर्ण थी, चुनौतियां चारों ओर से थीं। गुरु साहिब ने अपनी राह के हर कंटक को दूर किया, हर चुनौती को परास्त किया और सिख पंथ को नई दिशा प्रदान की। गुरु जी का जीवन पूरी मानव सभ्यता के लिए एक अमूल्य धरोहर की तरह है।
श्री गुरु अर्जुन देव जी, श्री गुरु रामदास साहिब के तीन पुत्रों में सबसे छोटे थे। बाल्यावस्था में ही उनकी आध्यात्मिक प्रतिभा प्रकट होने लगी थी, जिसे देख कर नाना श्री गुरु अमरदास साहिब ने भविष्यवाणी कर दी थी कि यह बालक मानवता का महान उद्धारक बनेगा। श्री गुरु अमरदास साहिब ने उन्हें ‘बाणी का बोहिता’ अर्थात ‘बाणी (ज्ञान) का बोहित (जहाज)’ का विशेषण प्रदान किया था, जिसका आश्रय लेकर लोग, अज्ञान के सागर को पार कर सकेंगे।
अल्पायु में ही श्री गुरु अर्जुन देव जी अपने पिता श्री गुरु रामदास साहिब का प्रतिनिधित्व करने लगे थे। गुरु साहिब ने संस्कृत आदि विभिन्न भाषाओं का गूढ़ ज्ञान प्राप्त किया और अनेक धर्म-ग्रन्थों का अध्ययन किया। वह कुशल घुड़सवार भी थे। वह श्री गुरु रामदास साहिब के ज्योति-जोत समाने के बाद 18 वर्ष की आयु में गुरुगद्दी पर विराजमान हुए।
बाह्य परिस्थितियां कभी उनकी अंतर अवस्था को प्रभावित करने में सफल नहीं हुईं। गुरु जी ने गुरुगद्दी के दावेदार अपने बड़े भ्राता पृथीचंद का आक्रोश ऐसे सहा जैसे कुछ घटित ही न हुआ हो। श्री गुरु ग्रंथ साहिब के संपादन का अति कठिन कार्य सरलता व ऐसी श्रेष्ठता से किया कि एक धर्म-ग्रंथ, जगत का अनुपम आदर्श बन गया। श्री अमृतसर साहिब नगर का प्रसार और श्री हरिमंदिर साहिब का निर्माण कराया, जो संसार का पवित्रतम स्थल बन गया।
शहादत की ऐसी अनूठी भावना सृजित की कि पूरा संसार आश्चर्यचकित रह गया। वास्तव में गुरु जी का मानव हित संकल्प ही ऐसा था, जिसमें व्याकुलता या पराजय का कोई स्थान नहीं था। गुरु साहिब अपने संकल्प के कारण ही अपने प्रत्येक मिशन में आजीवन सफल रहे। यह संकल्प था परमात्मा पर अटल विश्वास और सच हेतु अकाट्य प्रतिबद्धता।
गुरु जी का गुरुत्व काल 25 वर्ष का था, जिसमें उन्होंने आनंद ही आनंद बांटा। उन्होंने सर्वाधिक बाणी उच्चारण की, श्री गुरु रामदास साहिब के बनाए अमृत सरोवर को पक्का कराया, संतोखसर का कार्य पूर्ण कराया, तरनतारन ताल, रामसर बनवाया, लाहौर में बाउली आदि का निर्माण कराया। करतारपुर (जालंधर), तरनतारन साहिब, छेहरटा साहिब जैसे नगर बसाए।
उनकी महिमा सभी वर्गों में स्थापित हुई। इससे मुगल सत्ता चिंतित हो उठी। उसे अपने धर्म इस्लाम के प्रसार में बाधा नजर आने लगी। उस समय तक अकबर के बाद जहांगीर मुगल शासन के तख्त पर बैठ चुका था। वह अकबर की तुलना में अधिक कट्टर मुसलमान था।
जहांगीर को गुरु जी की बढ़ती लोकप्रियता पसंद नहीं थी। वह इस बात से भी नाराज था कि गुरु अर्जुन देव जी ने उसके भाई खुसरो की मदद की थी जबकि इसका कोई प्रमाण नहीं था।
उसने गुरु जी को लाहौर में 30 मई, 1606 ई. को भीषण गर्मी के दौरान ‘यासा ए सियासत’ कानून के तहत लोहे की गर्म तवी पर बिठाकर शहीद कर दिया। ‘यासा ए सियासत’ के अनुसार किसी व्यक्ति का रक्त धरती पर गिराए बिना उसे यातनाएं देकर शहीद किया जाता था। गुरु जी के शीश पर गर्म-गर्म रेत डाली गई।
जब गुरु जी का शरीर अग्नि के कारण बुरी तरह से जल गया तो आप जी को ठंडे पानी वाले रावी दरिया में नहाने के लिए भेजा गया, जहां गुरु जी का पावन शरीर रावी में अलोप हो गया। जहां गुरु जी ज्योति ज्योत समाए, उसी स्थान पर लाहौर में रावी नदी के किनारे गुरुद्वारा डेरा साहिब (जो अब पाकिस्तान में है) का निर्माण किया गया है।