श्रीमद्भगवद्गीता: सभी ‘परमेश्वर’ के अधीन

Edited By Jyoti,Updated: 14 May, 2022 11:03 AM

srimad bhagavad gita gyan in hindi

अनुवाद तथा तात्पर्य : हे पृथापुत्र! तीनों लोकों में मेरे लिए कोई भी कर्म नियत नहीं है, न मुझे किसी वस्तु का अभाव है और न आवश्यकता ही है। तो भी मैं नियतकर्म करने में तत्पर रहता हूं। परमेश्वर समस्त नियन्ताओं के नियन्ता

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श्रीमद्भगवद्गीता
यथारूप
व्या याकार :
स्वामी प्रभुपाद
साक्षात स्पष्ट ज्ञान का उदाहरण भगवद्गीता

श्रीमद्भगवद्गीता श्लोक-
न मे पार्थास्ति कर्तव्यं त्रिषु लोकेषु किञ्चन।
नानवाप्तमवाप्तव्यं वर्त एव च कर्मणि ।। 22।।

अनुवाद तथा तात्पर्य : हे पृथापुत्र! तीनों लोकों में मेरे लिए कोई भी कर्म नियत नहीं है, न मुझे किसी वस्तु का अभाव है और न आवश्यकता ही है। तो भी मैं नियतकर्म करने में तत्पर रहता हूं। परमेश्वर समस्त नियन्ताओं के नियन्ता हैं और विभिन्न लोकपालकों में सबसे महान हैं। सभी उनके अधीन हैं। सारे जीवों को परमेश्वर से ही विशिष्ट शक्ति प्राप्त होती है, जीव स्वयं श्रेष्ठ नहीं हैं।

परमेश्वर सभी देवताओं द्वारा पूज्य हैं और समस्त संचालकों के भी संचालक हैं। अत: वह समस्त भौतिक नेताओं तथा नियन्ताओं से बढ़कर हैं और सभी द्वारा आराध्य हैं। उनसे बढ़कर कोई नहीं है और वे ही समस्त कारणों के कारण हैं।

उनका शारीरिक स्वरूप सामान्य जीव जैसा नहीं होता। उनके शरीर तथा आत्मा में कोई अंतर नहीं है। वे परम हैं। उनकी सारी इंद्रियां दिव्य हैं। उनकी कोई भी इंद्रिय अन्य किसी इंद्रिय का कार्य स पन्न कर सकती है। अत: न तो कोई उनसे बढ़कर है, न ही उनके तुल्य है। उनकी शक्तियां बहुरूपिणी हैं, फलत: उनके सारे कार्य प्राकृतिक अनुक्रम के अनुसार स पन्न हो जाते हैं।

चूंकि भगवान में प्रत्येक वस्तु ऐश्वर्य से परिपूर्ण रहती है और पूर्ण सत्य से ओतप्रोत रहती है, अत: उनके लिए कोई कत्र्तव्य करने की आवश्यकता नहीं होती है। जिसे अपने कर्म का फल पाना है, उसके लिए कुछ न कुछ कर्म नियत रहता है परन्तु जो तीनों लोकों में कुछ भी प्राप्त करने की इच्छा नहीं रखता, उसके लिए निश्चय ही कोई कर्तव्य नहीं रहता।

फिर भी क्षत्रियों के नायक के रूप में भगवान कृष्ण कुरुक्षेत्र की युद्धभूमि में कार्यरत हैं, क्योंकि क्षत्रियों का धर्म है कि दीन-दुखियों को आश्रय प्रदान करें। यद्यपि वे शास्त्रों के विधि-विधानों से सर्वथा ऊपर हैं, फिर भी वे ऐसा कुछ भी नहीं करते जो शास्त्रों के विरुद्ध हो।

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