हवन के दौरान क्यों किया जाता है स्वाहा शब्द का उच्चारण

Edited By Jyoti,Updated: 01 Jun, 2021 01:50 PM

swaha kyo bolte hain

सनातन धर्म के कई तरह के धार्मिक अनुष्ठानों आदि के बारे में बताया है। जिनमें हवन और यज्ञ का विशेष महत्व है। नया घर हो, नया बिजनेज या फिर शादी

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सनातन धर्म के कई तरह के धार्मिक अनुष्ठानों आदि के बारे में बताया है। जिनमें हवन और यज्ञ का विशेष महत्व है। नया घर हो, नया बिजनेज या फिर शादी-ब्याह जैसा प्रत्येक कार्यक्रम में हवन व यज्ञ होता ही है। अक्सर आप ने देखा-सुना होगा कि हवन चाहे किसी भी पूर्ति के लिए किया जाए जब उसमें आहुतियां डाली जाती हैं तो "स्वाहा" शब्द का उच्चारण किया जाता है। मगर क्या आप जानते हैं कि आखिर क्यों हवन या यज्ञ आदि के दौरान "स्वाहा" शब्द दोहराया जाता है? अगर नही तो चलिए हम आपको बताते हैं कि इससे संबंधित कुछ खास जानकारी-

प्रचलित धार्मिक मान्यताओं के अनुसार असल में स्वाहा अग्नि देवी की पत्नी हैं। जिस कारण जब हवन के दौरान मंत्र  जप के बाद इनके नाम का उच्चारण किया जाता है। कहा जाता है स्वाहा का अर्थ होता है सही रीति से पहुंचाना। तो आम भाषा में इसका मतलब जरूरी पदार्थ को उसके प्रिय तक सुरक्षित पहुंचाना होता है। धर्म शास्त्री बताते हैं कि श्रीमद्भागवत गीता व शिव पुराण में इनसे संबंधित काफी उल्लेख पढ़ने सुनने को मिलता है। इसमें किए वर्णन के अनुसार मंत्र पाठ करते हुए स्वाहा कहकर हवन सामग्री भगवान को अर्पित किए जाने का विधान है। 

शास्त्रों के अनुसार यज्ञ चाहे किसी भी तरह की मनोकामना आदि के लिए किया जाए, अगर उसे देवता ग्रहण न करें तो वह यज्ञ पूर्ण नही माना जाता। अब सवाल ये है कि देवता इसे ग्रहण करते कैसे हैं, तो आपको बता दें देवताओं तक हवन तब पहुंचता है, जब हवन में आहुति डालते समय स्वाहा शब्द उच्चारते हैँ। जी हां, कहा जाता है अग्नि के द्वारा ही स्वाहा में माध्यम से हवन देवताओं को अर्पण किया जाता है। ऋग्वेद, यजुर्वेद आदि वैदिक ग्रंथों में अग्नि की महत्ता पर अनेक सूक्तों की रचनाएं हुई हैं।

इससे जुड़ी कथाओं के अनुसार, स्वाहा दक्ष प्रजापति की पुत्री थीं। जिनका विवाह अग्निदेव के साथ हुआ था। कहा जाता है अग्निदेव केवल अपनी पत्नी स्वाहा के माध्यम से ही हवन ग्रहण करते हैं तथा उनके माध्यम से यही हविष्य आह्वान किए गए देवता को प्राप्त होता है। 

इससे जुड़ी अन्य अन्य पौराणिक कथा के मुताबिक अग्निदेव की पत्नी स्वाहा के पावक, पवमान और शुचि नामक तीन पुत्र हुए। स्वाहा की उत्पत्ति से एक और रोचक कहानी के अनुसार, स्वाहा प्रकृति की ही एक कला थी, जिसका विवाह अग्नि के साथ देवताओं के आग्रह पर संपन्न हुआ था। भगवान श्रीकृष्ण ने स्वाहा को वरदान दिया था कि उन्हीं के माध्यम से देवता हविष्य को ग्रहण कर पाएंगे। 


 

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