शादी के लिए भगवान विष्णु ने लिया कर्ज, उतार रहे हैं भक्त

Edited By Updated: 04 Jul, 2025 03:16 PM

tirupati balaji temple tirumala

Tirupati Balaji Temple Tirumala: तिरुमला को वेंकट पहाड़ी अथवा शेषाचलम भी कहा जाता है। यह पहाड़ी सर्पाकार प्रतीत होती है जिसकी सात चोटियां हैं जो आदि शेष के फनों की प्रतीक मानी जाती हैं। इन सात चोटियों के नाम क्रमश:  शेषाद्रि, नीलाद्रि, गरुड़ादरी,...

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Tirupati Balaji Temple Tirumala: तिरुमला को वेंकट पहाड़ी अथवा शेषाचलम भी कहा जाता है। यह पहाड़ी सर्पाकार प्रतीत होती है जिसकी सात चोटियां हैं जो आदि शेष के फनों की प्रतीक मानी जाती हैं। इन सात चोटियों के नाम क्रमश:  शेषाद्रि, नीलाद्रि, गरुड़ादरी, अंजनद्री, वृषभाद्रि, नारायणाद्री और वेंकटाद्रि हैं। तिरुपति बालाजी मंदिर प्राचीन दक्षिण भारतीय वास्तुशिल्प का अनुपम उदाहरण है। इस मंदिर को प्राचीनकाल से पल्लव, पांड्या, चोल, विजयनगर और मैसूर के शासकों का संरक्षण प्राप्त रहा है। इस मंदिर में प्रतिवर्ष हजारों श्रद्धालु अपने केश कटवा कर भगवान को मनौती हेतु प्रस्तुत करते हैं। तिरुपति के लड्डू प्रसाद भी विश्व प्रसिद्ध हैं। यहां लगभग 25 हजार श्रद्धालु तीर्थयात्री प्रतिदिन भोजन तथा यह अनूठा प्रसाद नि:शुल्क पाते हैं।

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तिरुपति बालाजी भगवान विष्णु का ही स्वरूप हैं। आंध्र प्रदेश के चित्तूर जिले में तिरुपति बालाजी एक ऐसा मंदिर है जहां भगवान को सबसे अधिक धन, सोना, चांदी, हीरे-जवाहरात अर्पित किए जाते हैं। यह मंदिर भारत का सबसे धनी और संसार के सबसे धनी मंदिरों में से एक है। इस मंदिर में बालाजी की करीब 7 फीट ऊंची श्याम वर्ण का श्री विग्रह स्थापित है। वेंकटेश भगवान को कलयुग में बालाजी नाम से भी जाना जाता है। इस मंदिर के संबंध में बहुत सी कहानियां प्रचलित हैं। उन्हीं में से एक कहानी इस प्रकार है-

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भगवान विष्णु अपने बैकुंठ धाम में शयन कर रहे थे। भृगु ऋषि पधारते हैं। भगवान गहरी नींद में होने के कारण ऋषि के स्वागत में तत्पर नहीं हो पाते। क्रोध में आकर ऋषि, भगवान की छाती पर पद-प्रहार कर बैठते हैं, तभी भगवान की आंखें खुलती हैं, वह तुरंत भृगु ऋषि के चरण-कमल हथेलियों से सहलाते हुए पूछते हैं, भगवान ! मेरी कठोर छाती से आपकी सुकोमल चरणों में चोट तो नहीं आई ?

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यह सुनते ही ऋषि पानी-पानी होकर भगवान की विशाल हृदयता को नमन कर उठते हैं।

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देवी लक्ष्मी इस दृष्टांत को देखकर क्रोधित हो गई और विष्णु लोक को छोड़कर तपस्या में लीन हो गई। चिरकाल तक तपस्या करने के उपरांत उन्होंने अपनी देह का त्याग किया और फिर एक गरीब ब्राह्मण के घर जन्म लिया। भगवान विष्णु को जब पता चला की लक्ष्मी जी के पिता उनका विवाह करने के लिए वर तलाश कर रहे हैं तो वह उनसे विवाह करने की इच्छा से ब्राह्मण के पास गए। 

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ब्राह्मण ने अपनी पुत्री का हाथ उनके हाथ में देने के लिए बहुत सारे धन की मांग की। जब से देवी लक्ष्मी विष्णु लोक को छोड़कर गई थी तब से भगवान भी लक्ष्मी हीन हो गए थे। अपनी पत्नी को पुनः: पाने के लिए भगवान ने देवताओं के कोषाध्यक्ष कुबेर देव से धन मांगा।

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कुबेर धन देने को तो तैयार हो गए लेकिन उसने शर्त रखी की जब तक आप मेरा कर्ज न चुका दें आप केरल में रहेंगे। अन्य मान्यता के अनुसार भगवान विष्णु ने कुबेर से कहा था की वे कलयुग के समापन तक ब्याज सहित उनका धन चुका देंगे। तभी से तिरुपति अर्थात भगवान विष्णु वहां विराजित हैं। कहते हैं कि भक्तों द्वारा अर्पित धन, कुबेर देव को प्राप्त होता है और भगवान विष्णु का कर्ज कम होता है। कहते हैं जितना चढ़ावा चढ़ाएंगे, उसका दस गुना वापस करते हैं तिरुपति के बालाजी। 

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