Ujjain Mahakaleshwar: क्या सच में महाकाल बिना बुलाए किसी को नहीं बुलाते ? जानें उज्जैन यात्रा का रहस्य

Edited By Updated: 16 Nov, 2025 11:12 AM

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Ujjain Mahakaleshwar: कहते हैं उज्जैन वही जाता है, जिसे महाकाल स्वयं बुलाते हैं। उनके आदेश के बिना उज्जैन जाना संभव नहीं। गत दिनों उज्जैन जाने और महाकालेश्वर के दर्शन का अति सौभाग्य प्राप्त हुआ।  उज्जैन रेलवे स्टेशन से लगभग 15 मिनट की दूरी पर स्थित...

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Ujjain Mahakaleshwar: कहते हैं उज्जैन वही जाता है, जिसे महाकाल स्वयं बुलाते हैं। उनके आदेश के बिना उज्जैन जाना संभव नहीं। गत दिनों उज्जैन जाने और महाकालेश्वर के दर्शन का अति सौभाग्य प्राप्त हुआ।  उज्जैन रेलवे स्टेशन से लगभग 15 मिनट की दूरी पर स्थित महाकाल के प्रांगण में पहुंचते ही प्रतीत होता है, जैसे किसी दिव्यलोक में पहुंच गए हों।  मंदिर प्रांगण में प्रवेश करने के लिए कई द्वार हैं, इनमें सबसे भव्य और नवनिर्मित त्रिवेणी द्वार है, जहां महाकाल कॉरिडोर भी बनाया गया है। प्रवेश करते ही भगवान गणेश की भव्य प्रतिमा के दर्शन होते हैं, जिस उपरान्त भगवान शिव के विभिन्न रूपों की भव्य प्रतिमाएं स्थापित की गई हैं। मंदिर में प्रवेश करने लिए गेट नम्बर 1 अवंतिका द्वार सबसे पुराना है।

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द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से एक महाकालेश्वर का मुख दक्षिण की ओर है, जिसको यमराज की दिशा भी कहा जाता है। मान्यता है कि महाकाल के दर्शन करने के उपरान्त जीवन एक बार पुन: शून्य से शुरू होता है। पिछले सब पाप महाकाल हर लेते हैं और भक्तों को नए सिरे से जीवन प्रारम्भ करने की प्रेरणा देते हैं।
महाकाल के दर्शन करके बाहर प्रांगण में निकलते हैं तो भगवान ओम्कारेश्वर ज्योतिर्लिंग के साथ कई अन्य मंदिर हैं।

प्रांगण में विभिन्न स्थानों पर बड़ी-बड़ी एल.ई.डी. स्क्रीन्स लगी हुई हैं जहां भक्तगण महाकाल की आरती देख सकते हैं। हमें सुबह की प्रथम आरती ‘भस्म आरती’ की टिकट भी मिल गई थी, जिसके लिए पंजीकरण करवाना बेहद आवश्यक है और लगभग दो महीने पहले ही ऑनलाइन तरीके से पंजीकरण करना पड़ता है।
अन्यथा यहां पहुंच कर एक दिन पूर्व ऑफलाइन तरीके से भस्म आरती की टिकट के लिए आवेदन करना पड़ता है।

सुबह ‘भस्म आरती’ से लेकर रात्रि ‘शयन आरती’ तक भक्तगण विभिन्न आरतियों में बैठ कर भगवान महाकाल का आशीर्वाद प्राप्त कर सकते हैं। मंदिर में लड्डुओं का भोग प्रसाद भी मंदिर बोर्ड द्वारा उपलब्ध करवाया जाता है, जिनमें महाकाल को चढ़ाए जाने वाले बेसन के लड्डू व रागी, गुड़ तथा देसी घी के लड्डू भी भक्तगण खरीद सकते हैं। अन्न प्रसादम के लिए नि:शुल्क कूपन मिलते हैं, जिन्हें प्राप्त कर भक्तगण मंदिर प्रांगण में स्थित भोजनालय में अन्न प्रसाद ग्रहण कर सकते हैं।

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महाकाल प्रांगण के नजदीक ही मां हरसिद्धि, बड़े गणेश जी, बैकुंठ धाम मंदिर, चार धाम मंदिर तथा शिप्रा नदी पर बना हुआ राम घाट व भगवान चित्रगुप्त का प्राचीन मंदिर स्थित है। मां हरसिद्धि के प्रांगण में होने वाली संध्या आरती तो दैवीय शक्ति का अहसास करवाती है। इसी प्रकार मंदिर से कुछ दूर ऋण मुक्तेश्वर महादेव, भृतहरी गुफा, गढ़ कलिका शक्ति पीठ, स्थिरमन गणेश भगवान, काल भैरव, सिद्धवट, मंगलनाथ मंदिर तथा संदीपनी आश्रम स्थित हैं।

कहते हैं ऋण मुक्तेश्वर के दर्शन मात्र से किसी भी प्रकार का ऋण समाप्त हो जाता है। वहीं मान्यता है कि वनवास के दौरान माता सीता के कहने पर मन की स्थिरता एवं शान्ति के लिए भगवान राम द्वारा स्थिरमन गणेश जी की स्थापना की गई थी, जहां आज स्थिरमन गणेश मंदिर है। इसी प्रकार सिद्धवट मंदिर में मां
पार्वती द्वारा अपने हाथों से लगाया गया वट वृक्ष आज भी शिप्रा नदी के किनारे हरा-भरा खड़ा है।

मान्यताओं के अनुसार, भगवान कार्तिकेय  द्वारा ताड़कासुर का वध करने के उपरान्त मां पार्वती द्वारा उन्हें इसी वट वृक्ष के नीचे भोजन करवाया गया था।
यहां श्रद्धालुओं द्वारा पूर्वजों का पिंड दान भी किया जाता है। कुल मिला कर उज्जैन न केवल महाकाल की भूमि है बल्कि  हिन्दू इतिहास के स्वर्णिम काल का वह जीता-जागता शहर है, जो आज भी वैसे ही खड़ा है, जैसे सैंकड़ों-हजारों साल पहले खड़ा था। —मंगत राम महाजन, कठुआ

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