उत्पन्ना एकादशी: मंत्र जाप के बाद इस आरती से करें श्री हरि का वंदन

Edited By Jyoti,Updated: 22 Nov, 2019 11:48 AM

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समस्त एकादशी तिथियों की तरह उत्पन्ना एकादशी का भी हिंदू धर्म में कास महत्व है। बता साल में पड़ने वाली 24 एकादशी तिथियों में श्री हरि यानि भगवान विष्णु जी की पूजा का विधान होता है।

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समस्त एकादशी तिथियों की तरह उत्पन्ना एकादशी का भी हिंदू धर्म में कास महत्व है। बता साल में पड़ने वाली 24 एकादशी तिथियों में श्री हरि यानि भगवान विष्णु जी की पूजा का विधान होता है। यूं तो प्रत्येक एकादशी तिथि का अपना अलग महत्व है परंतु माना जाता है देवशयनी व देवउठनी एकादशी के बाद उत्पन्ना एकादशी को अधिक महत्व दिया जाता है। बता दें मार्गशीर्ष मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को उत्पन्न एकादशी के नाम से जाना जाता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार उत्‍पन्ना एकादशी के दिन भगवान विष्‍णु ने मुरसुरा नाम के असुर का वध किया था। जिसकी खुशी मनाते हुए देवताओं ने उत्‍पन्ना एकादशी मनाई थी। ज्योतिष मान्यता के मुताबिक इस एकादशी में भगवान विष्‍णु के साथ माता एकादशी का भी विधि-विधान से पूजन किया जाता है। साथ ही साथ इनके कुछ खास मंत्रो का जप करना लाभदायक साबित होता। इन चमत्कारी मंत्रों के बारे में मान्यता है कि इन्हें विधि वत जपने से जातक के जीवन की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। तो आइए जानते हैं कौन से हैं वे मंत्र तथा साथ ही जानते हैं इन मंत्रों को जपने के बाद गाई जाने वाली आरती भी
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उत्पन्ना एकादशी पर इन श्री विष्णु मंत्रों का सुबह एवं शाम को तुलसी की माला से 108 बार जाप करें-
ॐ ह्रीं कार्तविर्यार्जुनो नाम राजा बाहु सहस्त्रवान, यस्य स्मरेण मात्रेण ह्रतं नष्टं च लभ्यते।।

ॐ ह्रीं ह्रीं श्री लक्ष्मी वासुदेवाय नम:।।

ॐ श्रीं, ऊं ह्रीं श्रीं, ऊं ह्रीं श्रीं क्लीं

वित्तेश्वराय: नमः।।

ॐ नारायणाय विद्महे वासुदेवाय धीमहि तन्नो विष्णु प्रचोदयात्।।
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय।।

समस्त समस्याओं से मुक्ति के लिए
ॐ आं संकर्षणाय नम:।।
ॐ अं प्रद्युम्नाय नम:।।
ॐ अ: अनिरुद्धाय नम:।।
ॐ नारायणाय नम:।।

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भगवान विष्णु जी के समक्ष श्रद्धापूर्वक गाएं ये आरती-
ॐ जय जगदीश हरे, स्वामी जय जगदीश हरे।
भक्त जनों के संकट, दास जनों के संकट, क्षण में दूर करें।
ॐ जय जगदीश हरे।।

जो ध्यावे फल पावे, दुःखबिन से मन का, स्वामी दुःखबिन से मन का।
सुख सम्पति घर आवे, सुख सम्पति घर आवे, कष्ट मिटे तन का।।
ॐ जय जगदीश हरे।।

मात पिता तुम मेरे, शरण गहूं किसकी, स्वामी शरण गहूं मैं किसकी।
तुम बिन और न दूजा, तुम बिन और न दूजा, आस करूं मैं जिसकी।।
ॐ जय जगदीश हरे।

तुम पूरण परमात्मा, तुम अन्तर्यामी, स्वामी तुम अन्तर्यामी।
पारब्रह्म परमेश्वर, पारब्रह्म परमेश्वर, तुम सब के स्वामी।।
ॐ जय जगदीश हरे।।
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तुम करुणा के सागर, तुम पालनकर्ता, स्वामी तुम पालनकर्ता।
मैं मूरख फलकामी मैं सेवक तुम स्वामी, कृपा करो भर्ता।।
ॐ जय जगदीश हरे।।

तुम हो एक अगोचर, सबके प्राणपति, स्वामी सबके प्राणपति।
किस विधि मिलूं दयामय, किस विधि मिलूं दयामय, तुमको मैं कुमति।।
ॐ जय जगदीश हरे।।

दीन–बन्धु दुःख–हर्ता, ठाकुर तुम मेरे, स्वामी रक्षक तुम मेरे।।
अपने हाथ उठाओ, अपने शरण लगाओं द्वार पड़ा तेरे।।
ॐ जय जगदीश हरे।।

विषय–विकार मिटाओ, पाप हरो देवा, स्वमी पाप हरो देवा।
श्रद्धा भक्ति बढ़ाओ, श्रद्धा भक्ति बढ़ाओं, सन्तन की सेवा।।
ॐ जय जगदीश हरे।।

यह आरती, जो कोई नर गावे। स्वामी जो कोई नर गावे।
कहत शिवानन्द स्वामी, सुख संपत्ति पावे॥
ॐ जय जगदीश हरे।।

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