Utpanna Ekadashi: इस व्रत का फल हजारों यज्ञों से भी अधिक है, पढ़ें कथा

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 20 Nov, 2022 07:56 AM

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आज यानी 20 नवंबर को उत्पन्ना एकादशी का शुभ दिन है। धर्म शास्त्रों के मतानुसार, इस व्रत का फल हजारों यज्ञों से भी अधिक है। वैसे तो यह व्रत सभी को करना चाहिए, न कर सके तो व्रत की कथा का श्रवण और श्री कृष्ण मंदिर के दर्शन अवश्य करें।

Utpanna Ekadashi 2022: आज यानी 20 नवंबर को उत्पन्ना एकादशी का शुभ दिन है। धर्म शास्त्रों के मतानुसार, इस व्रत का फल हजारों यज्ञों से भी अधिक है। वैसे तो यह व्रत सभी को करना चाहिए, न कर सके तो व्रत की कथा का श्रवण और श्री कृष्ण मंदिर के दर्शन अवश्य करें। वर्तमान में मार्गशीर्ष अथवा अगहन माह चल रहा है। शास्त्रों के अनुसार इस माह में भगवान श्रीकृष्ण की भक्ति का बहुत महत्व है। यह महीना उन्हीं को समर्पित है। इस माह में पड़ने वाली कृष्ण पक्ष की एकादशी को उत्पन्ना एकादशी के नाम से जाना जाता है।

Utpanna Ekadashi: आज के दिन प्रकट हुई थी एकादशी, जानें महत्वपूर्ण बातें

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Utpanna Ekadashi vrat Katha उत्पन्ना एकादशी की कथासतयुग में एक महा भयंकर दैत्य था। उसका नाम मुर था। उस दैत्य ने इन्द्र आदि देवताओं पर विजय प्राप्त कर उन्हें उनके स्थान से गिरा दिया। तब देवेन्द्र ने महादेव जी से प्रार्थना की, " हे शिव-शंकर ! हम सब देवता मुर दैत्य के अत्याचारों से दु:खित हो, मृत्युलोक में अपना जीवन व्यतीत कर रहे हैं। आप कृपा कर इस विपत्ति से बाहर आने का उपाय बतलाएं।"
 
शंकर जी बोले," इस समस्या का समाधान केवल श्री विष्णु जी की शरण में जाने से होगा।"
 
इन्द्र तथा अन्य देवता महादेव जी के वचनों को सुनकर क्षीर सागर जाकर भगवान श्री विष्णु से मुर दैत्य के अत्याचारों से मुक्त होने के लिए विनती करने लगे। श्री विष्णु जी बोले की," यह कौन सा दैत्य है, जिसने देवताओं को भी जीत लिया है।"
 
देवराज इन्द्र बोले," उस दैत्य की ब्रह्मा वंश में उत्पत्ति हुई थी। उसकी राजधानी चन्द्रावती है। उस चन्द्रावती नगरी में वह मुर नामक दैत्य निवास करता है। जिसने अपने बल से समस्त विश्व को जीत लिया और सभी देवताओं पर उसने राज कर लिया। इस दैत्य ने अपने कुल में इन्द्र, अग्नि, यम, वरूण, चन्द्रमा, सूर्य आदि लोकपाल बनाए हैं। वह स्वयं सूर्य बनकर सभी को तपा रहा है और स्वयं ही मेघ बनकर जल की वर्षा कर रहा है। अत: आप उस दैत्य से हमारी रक्षा करें।"

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इन्द्र देव के ऐसे वचन सुनकर भगवान श्री विष्णु बोले," देवताओं मैं तुम्हारे शत्रुओं का शीघ्र ही संघार करूंगा। अब आप सभी चन्द्रावती नगरी को चलिए।"
 
दैत्य और देवताओं का युद्ध होने लगा। जब दैत्यों ने भगवान श्री विष्णु जी को युद्ध भूमि में देखा तो उन पर अस्त्रों-शस्त्रों का प्रहार करने लगे। भगवान श्री विष्णु मुर को मारने के लिए जिन-जिन शास्त्रों का प्रयोग करते, वे सभी उसके तेज से नष्ट होकर उस पर पुष्पों के समान गिरने लगे। भगवान श्री विष्णु उस दैत्य के साथ सहस्त्र वर्षों तक युद्ध करते रहे परन्तु उस दैत्य को न जीत सके।
 
अंत में विष्णु जी शान्त होकर विश्राम करने की इच्छा से बद्रियाकाश्रम में एक लम्बी गुफा में शयन करने के लिए चले गए। दैत्य भी उस गुफा में यह विचार कर चला गया कि आज मैं श्री विष्णु को मार कर अपने सभी शत्रुओं पर विजय प्राप्त कर लूंगा। उस समय गुफा में एक अत्यन्त सुन्दर कन्या उत्पन्न हुई़ और दैत्य के सामने आकर युद्ध करने लगी। दोनों में देर तक युद्ध हुआ। उस कन्या ने उसको धक्का मारकर मूर्छित कर दिया और उठने पर उस दैत्य का सिर काट दिया। वह दैत्य सिर कटने पर मृत्यु को प्राप्त हुआ।

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उसी समय श्री विष्णु जी की निद्रा टूटी तो उस दैत्य को किसने मारा वे ऐसा विचार करने लगे। तभी एक अति सुंदर कन्या के वचन सुनाई दिए वह बोली," यह दैत्य आपको मारने के लिये तैयार था। तब मैंने आपके शरीर से उत्पन्न होकर इसका वध किया है।"

भगवान श्री विष्णु ने उस कन्या का नाम एकादशी रखा क्योंकि वह एकादशी के दिन श्री विष्णु के शरीर से उत्पन्न हुई थी इसलिए इस दिन को उत्पन्ना एकादशी के नाम से जाना जाता है। इस व्रत का पालन करने से मनुष्य को सभी सिद्धियां प्राप्त होती हैं और कोई भी मनोरथ अधूरा नहीं रहता।

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