Edited By Niyati Bhandari,Updated: 10 Jun, 2025 06:51 AM

Vat Savitri Vrat 2025: वट सावित्री व्रत और बरगद का पेड़, जिससे वटवृक्ष भी कहा जाता है। बरगद काल के विरुद्ध खड़ा वृक्ष है। बरगद का पेड़ सिर्फ लंबी उम्र के लिए पूज्य नहीं है, बल्कि इसे काल-रोधक माना गया है। वटवृक्ष की विशेषता यह है कि वह कभी मरता नहीं...
शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
Vat Savitri Vrat 2025: वट सावित्री व्रत और बरगद का पेड़, जिससे वटवृक्ष भी कहा जाता है। बरगद काल के विरुद्ध खड़ा वृक्ष है। बरगद का पेड़ सिर्फ लंबी उम्र के लिए पूज्य नहीं है, बल्कि इसे काल-रोधक माना गया है। वटवृक्ष की विशेषता यह है कि वह कभी मरता नहीं है बल्कि फैलता है। उसकी जड़ें ऊपर से नीचे उतरती हैं, जैसे समय उल्टा बह रहा हो। वह एक ही समय में वृक्ष भी है और अपने आप में वन भी है। तभी तो सावित्री जैसी नारी, जो पति को मृत्यु से वापस लाने का संकल्प लेती है, वह उस शक्ति के साक्षी के रूप में बरगद को चुनती है क्योंकि यह मृत्यु के पार जीवन का प्रतीक है। बरगद का वृक्ष त्रिदेव का गूढ़ रूप है। लोकमान्यता कहती है बरगद की जड़ से ब्रह्मा का सृजन हुआ है। तने से विष्णु का जो पालन करते हैं। डालियां, हवा में लहराते तंतु महेश्वर भगवान शिव का संहार और मुक्ति का द्वार है।

सावित्री का पति सत्यवान मृत्यु के किनारे खड़ा था और वटवृक्ष का पूजन करते हुए सावित्री त्रिदेव को जगाकर उस मृत्यु को मोड़ती है। यह एक स्त्री द्वारा त्रिदेव को चेतन करने का काव्यात्मक रूप है। वटवृक्ष स्त्री-शक्ति की परीक्षा भूमि है। बरगद एक ऐसा वृक्ष है, जिसके नीचे बैठने पर विचार स्थिर हो जाते हैं। यह वृक्ष उस स्त्री की धैर्य, तप और प्रतिज्ञा की परीक्षा का मंच बनता है, जो अपने प्रेम के लिए यमराज तक से भिड़ जाती है। यह सिर्फ व्रत नहीं, बल्कि एक आध्यात्मिक युद्ध है, जिसमें एक स्त्री प्रकृति की सबसे पुरानी शक्ति वटवृक्ष की छाया में अपने संकल्प से मृत्यु को भी मोड़ देती है।

वट स्मृति की जड़ें बरगद वह वृक्ष है, जिसमें पिछली पीढ़ियों की चेतना सजीव रहती है। यह मान्यता है कि जिन वटवृक्षों के नीचे महिलाएं व्रत करती हैं, वहां पूर्वजों की ऊर्जा सहायता करती है। सावित्री का व्रत सिर्फ पति की रक्षा नहीं करता वह वंश की स्मृति और भविष्य की पीढ़ी की रक्षा का प्रतीक बनता है।

वटवृक्ष और सावित्री एक समान ऊर्जा का संतुलन करते हैं। वटवृक्ष स्थिरता, काल और जड़त्व को संबोधित करता है। सावित्री चेतना, गति और प्राण को संबोधित करती हैं। जब वटवृक्ष और सावित्री दोनों एक साथ मिलते हैं, तब जीवन और मृत्यु का संतुलन बनता है। व्रत का अर्थ सिर्फ खाना न खाना नहीं, बल्कि अपने भीतर की सावित्री को जगाना है। जो अपने प्रेम से मृत्यु को भी परास्त कर सके। वट सावित्री व्रत में बरगद का पूजन केवल प्रतीक नहीं है, बल्कि यह एक ऊर्जा-संलयन है, जहां नारी का प्रेम, तप और जड़ों की शक्ति एक हो जाती है।
