क्या है ओरछा में स्थापित श्री राम की प्रतिमा का इतिहास?

Edited By Updated: 10 Nov, 2019 04:18 PM

what is the history of the idol of shri ram established in orchha

09 नवंबर, 2019 ऐसा दिन जो शायद अब से एक ऐतिहासिक दिन माना जाएगा। अब ज़ाहिर सी बात है आप सभी लोग जानते हैं इसका कारण क्या है।

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09 नवंबर, 2019 ऐसा दिन जो शायद अब से एक ऐतिहासिक दिन माना जाएगा। अब ज़ाहिर सी बात है आप सभी लोग जानते हैं इसका कारण क्या है। जी, हां सुप्रीम कोर्ट की तरफ़ आया अयोध्या के राम मंदिर का फैसला आने वाले वर्षों में इस दिन को खास बनाएगा। बता दें 40 दिन लगातार सुप्रीम कोर्ट में दोनों पक्षों की सुनवाई के बाद बीते दिन शनिवार के दिन अयोध्या के राम मंदिर पर फैसला सुनाया गया। जिसका निर्णय ये लिया गया की अयोध्या में जिस ज़मीन पर हिंदू-मुस्लिम पक्ष में विवाद चल रहा था उसकी विवादित 2.77 एकड़ जमीन रामलला को दी जाए तथा अयोध्या में मस्जिद निर्माण के लिए सुन्नी वक्फ बोर्ड को 5 एकड़ भूमि आबंटित की जाए। इस फैसले से अयोध्या के साथ-साथ पूरे देशभर में जश्न मनाया गया।
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इसी ऐतिहासिक दिन को मद्देनज़र हम आपके लाएं अयोध्या से जुड़ी कुछ खास जानकारी। जिसमें हम आपको बताएंगे कि अयोध्या के साथ-साथ रामलला का अोरछा से भी गहरा रिश्ता है। तो आईए शुरू करते अयोध्या और ओरछा से जुड़े तथ्य को जानने का सिलसिला- 

जहां अयोध्या में आज भी रामलला की बाल लीलाओं की जीवंत स्मृतियां है तो वहीं बताया जाता है कि ओरछा में श्री राम राजा के रूप में विराजमान हैं। यहां इन्हें चार पहर की आरती के दौरान राजसी वैभव के साथ पहरे पर खड़े सिपाही सशस्त्र सलामी देते हैं। .यहां के लोगों का कहना है कि श्री राम यहां के जनजीवन की सांसों में धड़कते हैं। साथ ही वो बताता हैं कि अयोध्या और ओरछा का नाता लगभग 600 वर्ष पुराना है। परंतु आज भी ऐसे बहुत से लोग हैं जो इससे रूबरू नहीं है। कई प्रचलित किंवदंतियों के अनुसार 16 वीं शताब्दी में ओरछा के बुंदेला शासक मधुकरशाह की महारानी कुंवरि गणेश अयोध्या से रामलला को ओरछा लाई थी। उस समय से जुड़ी ये प्रचलित किंवदंति महज एक धार्मिक कथा नहीं, बल्कि श्री राम व ओरछा की तारों को उन सवालों से जोड़ती है जो समय-समय पर अखबारों की सुर्खियां बनीं। जिससे ये सवाल भी पैदा हुए कि कहीं अयोध्या की राम जन्म भूमि की असली मूर्ति ओरछा के रामराजा मंदिर में विराजमान तो नहीं? 
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यही कारण जब-जब अयोध्या के राम सुर्खियों में आए, ओरछा के राजा राम भी चर्चा में आए। दरअसल कुछ पौराणिक कथाओं के अनुसार ओरछा के शासक मधुकरशाह कृष्ण भक्त थे और उनकी महारानी कुंवरि गणेश, राम उपासक। भक्ति की परस्पर विरोधी उपासना ही दोनों के बीच अक्सर विवाद का कारण बन जाती। एक बार मधुकर शाह ने रानी को वृंदावन जाने का प्रस्ताव द‍िया पर उन्होंने विनम्रतापूर्वक उसे अस्वीकार करते हुए अयोध्या जाने की ठान ली। इसी बात से नाराज़ हो व रानी पर व्यंग्य करते हुए राजा ने उन्हें कहा कि अगर तुम्हारे राम सच में हैं तो उन्हें अयोध्या से ओरछा लाकर दिखाओ। अपने आराध्य के प्रति किए गए व्यंग्य से महारानी कुंवरि अयोध्या के लिए रवाना हो गईं और वहां जाकर उन्होंने लगातार 21 दिन तक अयोध्या में 21 दिन श्री राम की तपस्या पर उनके प्रकट न होने पर उन्होंने सरयू नदी में छलांग लगा दी। यहां की प्रचलित कथाओं व मान्यताओं के अनुसार महारानी की भक्ति को देखकर ही भगवान श्री राम नदी के जल में ही उनकी गोद मे आ गए। श्री राम के साक्षात दर्शन करने के बाद उन्होंने श्री राम को अयोध्या से ओरछा चलने का आग्रह किया तो उन्होंने यानि भगवान राम ने उनके समक्ष तीन शर्तें रख दीं।

जिसमें पहली शर्त थी क‍ि मैं यहां से जाकर जिस जगह बैठ जाऊंगा, वहां से नहीं उठूंगा, दूसरी शर्त में श्री राम ने कहा क‍ि मैं ओरछा में राजा के रूप विराजित होऊंगा और इसके बाद क‍िसी दूसरे की सत्ता नहीं रहेगी। तीसरी और आख़िरी शर्त में उन्होंने खुद को बाल रूप में पैदल एक खास पुष्य नक्षत्र में साधु संतों को साथ ले जाने को कहा। महारानी कुंवरि द्वारा अपनी शर्ते मनवाने के बाद रामराजा ओरछा आ गए। जिसके बाद से भगवान श्री राम यहां राजा के रूप में विराजमान हैं। कहा जाता है भगवान राम के अयोध्या और ओरछा दोनों स्थानों पर रहने की पुष्टि रामराजा मन्दिर में लिखा दोहा आज भी करता है।

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"रामराजा सरकार के दो निवास हैं खास दिवस ओरछा रहत है रैन अयोध्या वास।"

रामराजा के अयोध्या से ओरछा आने की कहानी जितनी पौराणिक मान्यताओं को पुष्टि करती है, उतनी ही इतिहास के उस युग से भी तार जोड़ती है जब एक समय भारत में मंदिर और मूर्तियों को सुरक्षित बचाना मुश्किल हो रखा था। ऐसा लोक मान्यता है कि विदेशी आक्रांताओं द्वारा मंदिरों और मूर्तियों को नुकसान पहंचाने के डर से अयोध्या के संतों ने जन्मभूमि में विराजमान श्रीराम के विग्रह को जल समाधि देकर बालू में दबा दिया था। अयोध्या के संतों को यह भरोसा था कि मधुकर शाह की हिंदूवादी सोच के बीच राम जन्मभूमि का श्रीराम का यह विग्रह ओरछा में पूरी तरह सुरक्षित रहेगा। इसीलिए उनकी महारानी कुंवरि गणेश अयोध्या पहुंची और संतों से मिलकर विग्रह को ओरछा ले लाई।

उपरोक्त कथा के अनुसार कई दिन तक अयोध्या में रुकने के बाद जब श्रीराम, महारानी को नहीं मिले तो उन्होंने सरयू नदी में छलांग लगा दी थी, तब उन्हें जल में प्रकट होकर श्री राम जी ने दर्शन दिए, इस संदर्भ को इतिहास से जोड़ते हुए संतों का कहना है कि उस काल में मंदिरों व प्रतिमाओं पर आक्रांताओं के हो रहे हमले से बचने के लिए अयोध्या के संतों ने राम जन्मभूमि में विराजमान श्री राम की प्रतिमा को सरयू नदी में जल समाधि देकर बालू से ढक दिया था यही प्रतिमा रानी कुंवरि गणेश ओरछा लेकर आई थीं। ओरछा में भगवान रामराजा के रसोई में विराजमान होने पर इतिहासकारों का कहना है कि  रामराजा के लिए ओरछा के मंदिर का निर्माण करवाया गया था, परंतु उन्हें मंदिर में विराजमान नहीं किया गया। जिसका मुख्य कारण सुरक्षा था।
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रजवाड़ों की महिलाएं जिस रसोई में रहती हैं, उसमें अधिक सुरक्षा और कही नहीं हो सकती। इसलिए मन्दिर में विराजमान न करके उन्हें रसोई घर मे विराजमान कराया गया।  अयोध्या में श्री राम की जीवंत स्मृतियां भले ही विवाद का विषय हों लेकिन ओरछा की स्मृतियों में वह यहां के जनजीवन में हैं, धड़कनों में बसते हैं. कहीं कोई विवाद नहीं. अयोध्या में कोई भी विवाद हो कोई भी फैसला पर ओरछा में राम की उपस्थ‍ित‍ि ठीक उसी तरह निर्विवाद है जैसी कभी अयोध्या में हुआ करती थी। ओरछा के लोगों का कहना है कि यहां के श्री राम हिन्दुओं के भी हैं और मुसलमानों के भी। यहां की सबसे बड़ी खासियत ये है कि यहां श्री राम को चार बार की आरती में सशस्त्र सलामी गार्ड ऑफ ऑनर दी जाती है क्योंकि राम यहां राजा के रूप में विराजे हैं।

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