Edited By Ashutosh Chaubey,Updated: 12 May, 2025 01:26 PM

शुक्र ग्रह के लिए 1972 में लॉन्च किया गया एक रूसी अंतरिक्ष यान अब 53 साल बाद धरती पर लौट आया है। इस मिशन का नाम था 'कोसमोस 482', जो सोवियत संघ की एक महत्वाकांक्षी योजना थी।
नेशनल डेस्क: शुक्र ग्रह के लिए 1972 में लॉन्च किया गया एक रूसी अंतरिक्ष यान अब 53 साल बाद धरती पर लौट आया है। इस मिशन का नाम था 'कोसमोस 482', जो सोवियत संघ की एक महत्वाकांक्षी योजना थी। हाल ही में इसकी धरती पर अनियंत्रित वापसी दर्ज की गई है। हालांकि, वैज्ञानिक अब तक इसकी सटीक गिरने की जगह का पता नहीं लगा सके हैं।
क्या था कोसमोस 482 मिशन?
'कोसमोस 482' को 31 मार्च 1972 को सोवियत संघ ने शुक्र ग्रह की सतह पर उतरने के मकसद से भेजा था। यह यान उस दौर में बने टाइटेनियम से ढंके एक गोलाकार लैंडर के साथ लॉन्च हुआ था, जिसका वजन करीब 495 किलोग्राम और आकार लगभग एक मीटर था। लेकिन प्रक्षेपण के दौरान तकनीकी खराबी के चलते यह यान पृथ्वी की कक्षा से बाहर नहीं निकल सका। इसका अधिकांश हिस्सा समय के साथ वायुमंडल में जलकर खत्म हो गया, लेकिन लैंडर जैसा मजबूत हिस्सा पृथ्वी की कक्षा में बना रहा और आखिरकार 53 साल बाद यह धरती पर गिरा है।
कहां गिरा यान, क्या मलबा धरती तक पहुंचा?
रूस ने दावा किया है कि 'कोसमोस 482' हिंद महासागर में गिरा है। हालांकि यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी (ESA) और अन्य ट्रैकिंग एजेंसियां इस पर स्पष्ट नहीं हैं। जर्मनी स्थित एक रडार स्टेशन भी इस यान के संकेतों को पकड़ नहीं सका। इसका मतलब यह है कि यान किस जगह गिरा, इसका अभी तक कोई सटीक रिकॉर्ड नहीं है। वैज्ञानिकों के अनुसार यान का अधिकांश हिस्सा वायुमंडल में जलकर राख हो सकता है। हालांकि इसके लैंडर की मजबूती को देखते हुए कुछ हिस्सों के धरती तक पहुंचने की संभावना को नकारा नहीं जा सकता।
क्या था इस यान की खासियत?
कोसमोस 482 को शुक्र ग्रह की सतह के लिए डिजाइन किया गया था। शुक्र, हमारे सौर मंडल का सबसे गर्म ग्रह है, जहां सतह का तापमान 470 डिग्री सेल्सियस से अधिक होता है। इसी कारण, इस यान को बेहद मजबूत और ऊष्मारोधी बनाया गया था। यही वजह है कि इसका लैंडर पृथ्वी की कक्षा में इतने लंबे समय तक सुरक्षित बना रहा।
अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रिया और वैज्ञानिकों की चिंता
अमेरिकी अंतरिक्ष कमांड, जो हर महीने सैकड़ों सैटेलाइट्स और अंतरिक्ष यानों की वापसी की निगरानी करता है, उसने भी कोसमोस 482 पर विशेष ध्यान दिया। इसकी अनियंत्रित वापसी के चलते वैज्ञानिकों को चिंता थी कि इसका मलबा कहीं आबादी वाले क्षेत्र में न गिरे। हालांकि अब तक किसी नुकसान की खबर नहीं आई है, पर विशेषज्ञों का मानना है कि इससे यह स्पष्ट होता है कि दशकों पुराने अंतरिक्ष मलबे आज भी हमारे वातावरण के लिए जोखिम बने हुए हैं। डच वैज्ञानिक मार्को लैंगब्रोक ने व्यंग्य में कहा, "अगर यह हिंद महासागर में गिरा, तो इसे केवल व्हेल ने ही देखा होगा।"

अंतरिक्ष संधि और रूस की ज़िम्मेदारी
संयुक्त राष्ट्र की एक संधि के तहत, कोई भी अंतरिक्ष मलबा चाहे वह कहीं भी गिरे, उसकी ज़िम्मेदारी उस देश की होती है जिसने उसे लॉन्च किया हो। इसलिए, 'कोसमोस 482' के किसी भी हिस्से की जिम्मेदारी आज भी रूस की ही मानी जाएगी।