पाकिस्तान की बढ़ी टेंशन! तालिबान पर जमकर बरसा तुर्किए, दोस्ती की कोशिशों को लग सकता है झटका

Edited By Updated: 26 May, 2025 02:33 PM

turkey expressed its anger on taliban

तुर्किए और पाकिस्तान, दोनों इस्लामी देश, अक्सर एक-दूसरे के करीबी माने जाते हैं। लेकिन इस बार तुर्किए ने ऐसा बयान दे डाला है जिससे न सिर्फ तालिबान बल्कि पाकिस्तान की चिंता भी बढ़ गई है।

नेशनल डेस्क: तुर्किए और पाकिस्तान, दोनों इस्लामी देश, अक्सर एक-दूसरे के करीबी माने जाते हैं। लेकिन इस बार तुर्किए ने ऐसा बयान दे डाला है जिससे न सिर्फ तालिबान बल्कि पाकिस्तान की चिंता भी बढ़ गई है। दरअसल इस्तांबुल में एक अहम बैठक के दौरान तुर्किए ने अफगानिस्तान में तालिबान शासन की कड़ी आलोचना की। खास बात ये रही कि तुर्किए ने सीधे तौर पर आतंकवाद, महिलाओं के अधिकारों और लोकतंत्र के अभाव पर तालिबान को घेरा।

तुर्किए ने तालिबान को सुनाई खरी-खोटी

तुर्किए ने साफ कहा कि अफगानिस्तान में आज भी आतंकी संगठनों की गतिविधियां जारी हैं और ये स्थिति ठीक नहीं है। तुर्किए ने तालिबान से अपील की कि वो आतंकवाद पर रोक लगाए और ऐसी सरकार बनाए जो सभी अफगानों को प्रतिनिधित्व दे, लोकतांत्रिक हो और मानवाधिकारों का सम्मान करे।
महिलाओं के खिलाफ हो रहे अत्याचारों पर तुर्किए ने दो टूक कहा कि ये इस्लाम की शिक्षाओं के खिलाफ है और ऐसे व्यवहार को किसी हाल में स्वीकार नहीं किया जा सकता।

पाकिस्तान के लिए बढ़ेगी मुश्किलें?

इसी वक्त पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ तुर्किए की यात्रा पर हैं और वे दोनों देशों के रिश्ते मजबूत करने की कोशिश कर रहे हैं। लेकिन तुर्किए का तालिबान के खिलाफ यह तीखा रुख पाकिस्तान की रणनीति के आड़े आ सकता है। पाकिस्तान लंबे समय से तालिबान से रिश्ते सुधारने और अपने क्षेत्रीय प्रभाव को बढ़ाने की कोशिश कर रहा है। इसके लिए वह चीन जैसे देशों को साथ लेकर चल रहा है। लेकिन तुर्किए की इस आलोचना से तालिबान भड़क सकता है और इसकी गाज पाकिस्तान की ‘मुलायम कूटनीति’ पर गिर सकती है।

तालिबान का रिएक्शन अभी बाकी

अब सबकी नजर तालिबान के रुख पर टिकी है। अफगानिस्तान के सर्वोच्च नेता अखुंजदा ने हाल ही में बयान दिया था कि अफगानिस्तान में सब कुछ इस्लामी सिद्धांतों के तहत चल रहा है और देश शांति की ओर बढ़ रहा है। हालांकि ज़मीनी हकीकत कुछ और ही बयां करती है। महिलाओं की शिक्षा पर पाबंदी, लोकतांत्रिक ढांचे का अभाव और कट्टर धार्मिक शासन की वजह से तालिबान की अंतरराष्ट्रीय मान्यता अब तक अधूरी है। दुनियाभर के ज्यादातर देश तालिबान शासन को मान्यता नहीं दे रहे और अब तुर्किए जैसी मुस्लिम-बहुल देश की आलोचना से तालिबान की साख और गिरी है।

 

 

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