पाकिस्तान में मानवता शर्मसारः ईशनिंदा के आरोप में नेत्रहीन ईसाई युवक पर जुल्म, झूठे केस में गिरफ्तार

Edited By Updated: 03 Nov, 2025 01:51 PM

visually impaired christian man arrested on blasphemy charges in pakistan

एक नेत्रहीन ईसाई व्यक्ति पर ईशनिंदा का आरोप पाकिस्तान के अल्पसंख्यकों की असुरक्षित स्थिति और न्यायिक विफलता की एक और झलक है। यह मामला केवल एक व्यक्ति का नहीं, बल्कि आस्था और मानवाधिकार के टकराव का प्रतीक बन गया है।

Islamabad: पाकिस्तान में धार्मिक असहिष्णुता और ईशनिंदा कानूनों के दुरुपयोग की एक और चौंकाने वाली मिसाल सामने आई है। लाहौर के मॉडल टाउन पार्क से गिरफ्तार 49 वर्षीय नेत्रहीन ईसाई व्यक्ति नदीम मसीह पर पैगंबर मोहम्मद का अपमान करने का आरोप लगाया गया है। परिजनों का कहना है कि यह आरोप पूरी तरह झूठा है और पार्किंग कॉन्ट्रैक्टर के साथ पैसों के विवाद के चलते नदीम को फंसाया गया है। पुलिस अधिकारी मुहम्मद याकूब के मुताबिक, एक पार्किंग कॉन्ट्रैक्टर की शिकायत पर नदीम को पाकिस्तान दंड संहिता की धारा 295-C के तहत गिरफ्तार किया गया है  यह वही धारा है जिसके तहत ईशनिंदा का दोषी पाए जाने पर मौत या आजीवन कारावास की सजा दी जाती है। नदीम के वकील जावेद सहोत्रा ने बताया कि FIR में कई गंभीर त्रुटियाँ हैं और वे अदालत में इसे चुनौती देंगे। उनका कहना है कि पुलिस ने हिरासत में नदीम के साथ मारपीट की, जबकि उसके पैर में पहले से लोहे की रॉड लगी हुई है। 

 

मामले पर USCIRF की नज़र
नदीम की मां ने बताया कि उनका बेटा पूरी तरह नेत्रहीन है और किसी का अपमान करने का सवाल ही नहीं उठता। उन्होंने रोते हुए कहा “मैंने पहले ही एक बेटे को खो दिया है, अब नदीम ही मेरा सहारा है। वे सिर्फ इसलिए उसे फंसा रहे हैं क्योंकि वो ईसाई है और गरीब है।” मानवाधिकार संगठनों के साथ-साथ संयुक्त राष्ट्र और अमेरिकी आयोग ऑन इंटरनेशनल रिलीजियस फ्रीडम (USCIRF) भी इस मामले पर नज़र बनाए हुए हैं। अगर नदीम मसीह पर आरोप साबित होते हैं, तो यह पाकिस्तान में धार्मिक स्वतंत्रता और न्याय प्रणाली पर गंभीर सवाल खड़े करेगा।

 

ईशनिंदा कानून का काला सच

  • पाकिस्तान में ईशनिंदा कानूनों का दुरुपयोग लंबे समय से एक गंभीर मानवाधिकार चिंता का विषय है।
  • धारा 295-B: कुरान की बेअदबी पर आजीवन कारावास
  • धारा 295-C: पैगंबर मोहम्मद के अपमान पर मौत या आजीवन कारावास
  • धारा 298-A से 298-C: धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने पर तीन से दस साल तक की जेल
  • इन कानूनों का अक्सर अल्पसंख्यक समुदायों, खासकर ईसाइयों और अहमदियों, के खिलाफ दुरुपयोग किया जाता है।
  • ह्यूमन राइट्स वॉच और एमनेस्टी इंटरनेशनल कई बार चेतावनी दे चुके हैं कि ये कानून “न्याय के बजाय प्रतिशोध का हथियार” बन गए हैं।

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