मकर संक्रांति पर क्यों बनाई जाती है खिचड़ी, जानें कैसे हुआ इस परंपरा का आरंभ

Edited By Punjab Kesari,Updated: 13 Jan, 2018 02:52 PM

khichdi parva on makar sankranti

मकर संक्रांति सूर्य उपासना का पर्व है। भगवान सूर्य को दिव्य आयु, आरोग्य, ऐश्वर्य, धन, सुख, परिवार, इच्छा विकास से मोक्ष तक का कारक माना गया है। सूर्य के उदयकाल में किया गया स्नान, दान-पुण्य उत्तम फलों को देने वाला है।

मकर संक्रांति सूर्य उपासना का पर्व है। भगवान सूर्य को दिव्य आयु, आरोग्य, ऐश्वर्य, धन, सुख, परिवार, इच्छा विकास से मोक्ष तक का कारक माना गया है। सूर्य के उदयकाल में किया गया स्नान, दान-पुण्य उत्तम फलों को देने वाला है। तिल, गरम वस्त्र, खिचड़ी, चावल, सब्जी आदि दान-पुण्य करने से अक्षय पुण्यों की प्राप्ति होती है। अन्य दिनों की तुलना में आज किया गया दान-पुण्य कई गुना अधिक लाभ दिलाता है।


मकर संक्रांति के दिन प्रत्येक घर में खिचड़ी बनाई जाती है और सूर्य देव को प्रसन्न करने के लिए उन्हें भोग स्वरूप चढ़ाई जाती है। लोक मान्यता के अनुसार इस दिन खिचड़ी बनाने की परंपरा का आरंभ भगवान शिव ने किया था और उत्तर प्रदेश के गोरखपुर से मकर संक्रांति के मौके पर खिचड़ी बनाने की परंपरा का आरंभ हुआ था। उत्तर प्रदेश में मकर संक्रांति को खिचड़ी पर्व भी कहा जाता है। मान्यता है की बाबा गोरखनाथ जी भगवान शिव का ही रूप थे। उन्होंने ही खिचड़ी को भोजन के रूप में बनाना आरंभ किया।

 
पौराणिक कहानी के अनुसार खिलजी ने जब आक्रमण किया तो उस समय नाथ योगी उन का डट कर मुकाबला कर रहे थे। उनसे जुझते-जुझते वह इतना थक जाते की उन्हें भोजन पकाने का समय ही नहीं मिल पाता था। जिससे उन्हें भूखे रहना पड़ता और वह दिन ब दिन कमजोर होते जा रहे थे।

 
अपने योगियों की कमजोरी को दूर करने लिए बाबा गोरखनाथ ने दाल, चावल और सब्जी को एकत्र कर पकाने को कहा। बाबा गोरखनाथ ने इस व्यंजन का नाम खिचड़ी रखा। सभी योगीयों को यह नया भोजन बहुत स्वादिष्ट लगा। इससे उनके शरीर में उर्जा का संचार हुआ। 

 
आज भी गोरखपुर में बाबा गोरखनाथ के मंदिर के समीप मकर संक्रांति के दिन से खिचड़ी मेला शुरू होता है। यह मेला बहुत दिनों तक चलता है और इस मेले में बाबा गोरखनाथ को खिचड़ी का भोग अर्पित किया जाता है और भक्तों को प्रसाद रूप में दिया जाता है।

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