'कोई आपराधिक इरादा नहीं था'- कहकर नाबालिक लड़की को चूमने वाले आरोपी को कोर्ट ने किया बरी

Edited By Updated: 10 Sep, 2025 06:32 PM

accused acquitted in kissing case

महाराष्ट्र के ठाणे की एक विशेष अदालत ने तीन-वर्षीय एक बच्ची को 2021 में गाल पर चूमकर कथित छेड़छाड़ करने के एक मामले में एक व्यक्ति को बरी कर दिया।

नेशनल डेस्क: महाराष्ट्र के ठाणे की एक विशेष अदालत ने तीन-वर्षीय एक बच्ची को 2021 में गाल पर चूमकर कथित छेड़छाड़ करने के एक मामले में एक व्यक्ति को बरी कर दिया। अदालत ने कहा कि यह आपराधिक कृत्य नहीं माना जा सकता क्योंकि ‘‘बच्चों के प्रति स्नेह रखने वाला कोई भी व्यक्ति स्नेहवश ऐसा कर सकता है।'' अदालत ने आरोपी को संदेह का लाभ देते हुए कहा कि आरोपी के कृत्य में स्पष्ट आपराधिक मंशा नहीं थी और अभियोजन पक्ष उसके खिलाफ आरोप साबित करने में विफल रहा।

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अदालत के 22 अगस्त को सुनाए गए आदेश में यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (पॉक्सो) अधिनियम से जुड़े मामलों की सुनवाई करने वाली विशेष न्यायाधीश रूबी यू मालवंकर ने 54-वर्षीय ओमप्रकाश रामबचन गिरि को बरी कर दिया। गिरि पर नौ जनवरी 2021 को दो अलग-अलग मौकों पर बच्ची को गले लगाने और चूमने का आरोप था। पुलिस ने गिरि के खिलाफ पॉक्सो अधिनियम और भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 354 (महिला की मर्यादा भंग करने के इरादे से हमला या बल प्रयोग) के तहत मामला दर्ज किया था।

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अदालत ने कहा, ‘‘जिस कथित कृत्य के लिए मुकदमा चलाया गया, उसे हर मामले में अनुचित स्पर्श या ‘बैड टच' की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता। संबंधित समय पर पीड़िता की उम्र को देखते हुए, बच्चों के प्रति स्नेह रखने वाला कोई भी व्यक्ति उसे गोद में उठा सकता है या स्नेहवश उसके गाल पर चूम सकता है।'' अदालत ने कहा, ‘‘जब तक इस तरह का कृत्य बच्चे को नुकसान नहीं पहुंचाता या कोई अजनबी व्यक्ति बुरी नीयत से ऐसा नहीं करता, तब तक हमारे देश में, इस तरह का व्यवहार वास्तव में आपत्तिजनक या आपराधिक नहीं माना जाता। इसलिए इस मामले में भी, चूंकि आरोपी पूरी तरह से अजनबी नहीं था और उसी इलाके का निवासी था, इसे पूरी तरह से आपराधिक कृत्य नहीं कहा जा सकता।''

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अदालत ने यह भी कहा कि कथित घटना के दौरान बच्ची दर्द से नहीं रोई। न्यायाधीश ने कहा, ‘‘इन सभी परिस्थितियों में पीड़ित बच्ची की मर्यादा भंग होने का तत्व अनुपस्थित है और स्नेहपूर्ण कृत्य को आपराधिक कृत्य नहीं माना जा सकता।'' इन निष्कर्षों के आधार पर अदालत ने आरोपी को संदेह का लाभ देते हुए बरी कर दिया।

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