Edited By Anu Malhotra,Updated: 01 Nov, 2025 12:50 PM

भारत के बैंकिंग परिदृश्य में एक और मेगा बदलाव आने वाला है। सरकार छोटे सरकारी बैंकों को बड़े बैंकों में विलीन करने की तैयारी कर रही है। नीति आयोग की सिफारिश के बाद यह कदम उठाया जा रहा है, जिसका मकसद बैंकिंग प्रणाली को मजबूत करना और वैश्विक...
नेशनल डेस्क: भारत के बैंकिंग परिदृश्य में एक और मेगा बदलाव आने वाला है। सरकार छोटे सरकारी बैंकों को बड़े बैंकों में विलीन करने की तैयारी कर रही है। नीति आयोग की सिफारिश के बाद यह कदम उठाया जा रहा है, जिसका मकसद बैंकिंग प्रणाली को मजबूत करना और वैश्विक प्रतिस्पर्धा के लिए तैयार करना है।
किसका अस्तित्व खतरे में?
इस मेगा मर्जर के तहत इंडियन ओवरसीज बैंक (IOB), सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया (CBI), बैंक ऑफ इंडिया (BOI) और बैंक ऑफ महाराष्ट्र (BoM) का अस्तित्व समाप्त हो जाएगा। इन बैंकों के खाताधारकों के लिए बैंकिंग प्रक्रिया थोड़ी चुनौतीपूर्ण हो सकती है। उन्हें नए बैंक के तहत चेकबुक, पासबुक और अन्य कागजी कार्यवाही बदलनी होगी।
प्रस्तावित विलय की प्रक्रिया
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, विलय का ड्राफ्ट ‘रिकॉर्ड ऑफ डिस्कशन’ तैयार हो चुका है और इसे अब कैबिनेट और प्रधानमंत्री कार्यालय में भेजा जाएगा। अगर मंजूरी मिलती है, तो वित्त वर्ष 2026-27 में इस मेगा मर्जर को पूरा किया जा सकता है।
विलय से संभावित फायदे और नुकसान
छोटे बैंकों की वजह से बढ़ती लागत और लगातार बढ़ता NPA बैंकिंग प्रणाली पर दबाव डालता है। विलय से बैंकिंग नेटवर्क मजबूत होगा, कर्ज बांटने की क्षमता बढ़ेगी और बैंकों की बैलेंस शीट सुदृढ़ होगी। बैंकिंग कार्यप्रणाली तेज होगी और ग्राहकों को बेहतर सेवा मिल सकेगी। हालांकि, इससे पहले 2017 से 2020 के बीच 10 सरकारी बैंकों का मर्जर करके 4 बड़े बैंक बनाए जा चुके हैं, जिससे सरकारी बैंकों की संख्या 27 से घटकर 12 रह गई थी।
विलय के बाद सरकारी बैंकिंग का नया नक्शा
यदि यह मेगा मर्जर तय समय पर हो जाता है, तो देश में केवल 4 बड़े सरकारी बैंक बचे रहेंगे:
खाताधारक और कर्मचारियों पर असर
विलय के बाद खाताधारकों को बैंकिंग कागजात बदलने में समय और प्रयास लगेगा। नई चेकबुक और पासबुक बनवानी होंगी। कर्मचारियों के बीच नौकरी पर चिंता की स्थिति हो सकती है, हालांकि सरकार ने आश्वासन दिया है कि मर्जर से नौकरियों पर नकारात्मक प्रभाव नहीं पड़ेगा।