Edited By Tanuja,Updated: 06 Dec, 2025 01:08 PM

G7 और EU ने रूस पर नया दबाव बढ़ाते हुए तेल-शिपिंग और “शैडो फ़्लीट” पर कड़े प्रतिबंधों का प्रस्ताव रखा है। ये कदम रूस की आय पर सीधा असर डालेंगे। पुतिन की भारत यात्रा के तुरंत बाद पश्चिम की यह कार्रवाई वैश्विक ऊर्जा राजनीति को बड़े स्तर पर प्रभावित कर...
International Desk: भारत से लौटते ही रूस पर पश्चिमी दबाव बढ़ाने की नई तैयारियाँ शुरू हो गई हैं। यूक्रेन युद्ध के बीच G7 और यूरोपीय संघ (EU) रूसी तेल पर लगी प्राइस कैप हटाकर उससे भी कठोर कदम की ओर बढ़ रहे हैं यानि रूस के तेल व्यापार में इस्तेमाल होने वाली पश्चिमी समुद्री सेवाओं (टैंकर, शिपिंग, बीमा) पर पूरी तरह प्रतिबंध। यह कदम पिछले सभी प्रतिबंधों से कहीं बड़ा माना जा रहा है और इसे रूस की युद्ध फंडिंग कमजोर करने की दिशा में अब तक का सबसे प्रभावी हथियार बताया जा रहा है।
रूस पर सीधा वार
रूस का लगभग एक-तिहाई तेल अभी भी यूरोपीय देशों की समुद्री सेवाओं पर निर्भर है।ग्रीस, माल्टा और साइप्रस के विशाल टैंकर बेड़े रूस से कच्चा तेल भारत और चीन तक पहुंचाते हैं।अगर प्रस्ताव लागू हुआ तो यह पूरा नेटवर्क रुक सकता है और रूस को वैश्विक बाजार तक पहुंचने के नए रास्ते खोजने पड़ेंगे। प्राइस कैप के बाद रूस ने पुराने, अनक्लियर मालिकाना हक वाले और बिना पश्चिमी बीमा वाली ‘शैडो फ्लीट’ खड़ी की थी। रॉयटर्स के अनुसार यह फ्लीट अब रूस के 70% से ज्यादा कच्चे तेल की ढुलाई कर रही है। लेकिन अगर G7–EU पूरा समुद्री नेटवर्क बंद कर देते हैं। तो रूस को इस शैडो फ्लीट का आकार और बढ़ाना होगा जिससे लागत बढ़ेगी, पारदर्शिता कम होगी, और समुद्री दुर्घटनाओं का खतरा बढ़ेगा।
2026 की शुरुआत पर बड़े प्रतिबंध की तैयारी
EU इसे अपने अगले बड़े प्रतिबंध पैकेज में शामिल करने पर गंभीरता से विचार कर रहा है, जो 2026 की शुरुआत में आ सकता है। लेकिन इसकी अंतिम मंजूरी इस बात पर निर्भर करेगी कि G7 में सर्वसम्मति बनती है या नहीं। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप प्राइस कैप रणनीति को बहुत प्रभावी नहीं मानते। इसलिए रूस–यूक्रेन वार्ता को ट्रंप किस दिशा में ले जाते हैं और रूस पर कितना दबाव डालना चाहते हैं। यह फैसला प्रतिबंध के भविष्य को निर्धारित करेगा।
2022 के बाद सबसे कठोर प्रस्ताव
पहले यूरोपीय संघ ने रूस से तेल आयात बंद किया। फिर प्राइस कैप लगी लेकिन समुद्री सेवाओं पर संपूर्ण प्रतिबंध सबसे अधिक प्रभाव डालने वाला कदम माना जा रहा है। यह रूस के वैश्विक तेल परिवहन को लगभग जकड़ने जैसा होगा। रूस ने अपनी रणनीति ऐसे क्षेत्रों में केंद्रित की जहाँ पश्चिमी नियंत्रण कम है, बिना पश्चिमी बीमा वाले जहाज, बिना साझा डेटा वाले मार्ग लगभग 70% शिपमेंट यही शैडो रूट अपनाती हैं।
रूस की तेल ढुलाई तीन हिस्सों में, फिनलैंड की CREA संस्था के अनुसार:
- 44%-प्रतिबंधित शैडो फ्लीट
- 18% -गैर-प्रतिबंधित शैडो जहाज
- 38% -G7–EU या ऑस्ट्रेलिया के टैंकर
- कुल 1,423 जहाज रूस–ईरान–वेनेजुएला के प्रतिबंधित तेल में शामिल हैं।