Edited By Sahil Kumar,Updated: 03 Nov, 2025 08:25 PM

विश्व मौसम विज्ञान संगठन (WMO) की रिपोर्ट के अनुसार, साल 2025 से 2029 के बीच धरती का औसत तापमान औद्योगिक काल (1850-1900) की तुलना में 1.5°C से अधिक रह सकता है। अगले पांच वर्षों में कम से कम एक साल अब तक के सबसे गर्म 2024 से भी अधिक गर्म होने की...
नेशनल डेस्कः विश्व मौसम विज्ञान संगठन (WMO) की ताज़ा रिपोर्ट ने ग्लोबल वार्मिंग को लेकर पूरी दुनिया को चेतावनी दी है। रिपोर्ट के मुताबिक, साल 2025 से 2029 के बीच धरती का औसत तापमान औद्योगिक काल (1850-1900) की तुलना में 1.5 डिग्री सेल्सियस से अधिक रहने की संभावना है। विशेषज्ञों का कहना है कि अगर तापमान में यह वृद्धि जारी रही, तो आने वाले साल न केवल अब तक के सबसे गर्म साबित होंगे, बल्कि इससे हीटवेव, सूखा, बर्फ पिघलना और समुद्र स्तर में बढ़ोतरी जैसी गंभीर जलवायु घटनाएं और भी तेज़ी से बढ़ेंगी।
दुनियाभर में तेजी से बढ़ता तापमान अब चिंता का बड़ा कारण बनता जा रहा है। विश्व मौसम विज्ञान संगठन (World Meteorological Organisation - WMO) की ताज़ा रिपोर्ट में चौंकाने वाला खुलासा हुआ है। रिपोर्ट के अनुसार, साल 2025 से 2029 के बीच धरती का औसत तापमान 1850-1900 के मुकाबले 1.5 डिग्री सेल्सियस से अधिक रहने की आशंका है। यही नहीं, अगले पांच सालों में से कम-से-कम एक साल अब तक के सबसे गर्म साल 2024 से भी अधिक गर्म हो सकता है।
2024 में पहली बार पार हुई 1.5°C की सीमा
रिपोर्ट बताती है कि साल 2024 में वैश्विक औसत तापमान पहली बार औद्योगिक काल से पहले के स्तर से 1.5°C अधिक दर्ज किया गया। इसका मतलब है कि पेरिस जलवायु समझौते के तहत तय की गई तापमान सीमा अब अस्थायी रूप से पार हो चुकी है।
तीन से चार गुना तेज़ी से बढ़ने की संभावना
WMO के अनुसार, 2025-2029 के दौरान वैश्विक औसत तापमान 1.2°C से 1.9°C के बीच बढ़ सकता है। आर्कटिक क्षेत्र में यह गर्मी वैश्विक औसत से तीन से चार गुना तेज़ी से बढ़ने की संभावना है। वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि हर साल 0.1°C की वृद्धि भी खतरनाक साबित हो सकती है, क्योंकि इससे हीटवेव, सूखा, ग्लेशियरों का पिघलना और समुद्र स्तर में वृद्धि जैसी घटनाएं और तेज़ी से बढ़ेंगी। बढ़ता तापमान मानव जीवन, कृषि, जल संसाधनों और पारिस्थितिकी तंत्र पर गंभीर प्रभाव डाल सकता है।
भारत सहित दक्षिण एशिया में जलवायु परिवर्तन का असर
रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत सहित दक्षिण एशिया में जलवायु परिवर्तन का असर और अधिक तीव्र होगा। इस क्षेत्र में हीटवेव, भारी वर्षा और ग्लेशियरों के तेजी से पिघलने की घटनाएं बढ़ने की संभावना है। इसका सीधा असर खेती, जल की उपलब्धता और लोगों की जीवनशैली पर पड़ेगा।
वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि यदि ग्लोबल वार्मिंग पर जल्द नियंत्रण नहीं किया गया तो आने वाले वर्षों में इसके दुष्प्रभाव और भी गंभीर हो सकते हैं। उन्होंने अपील की है कि लोग ग्रीन एनर्जी को अपनाएं और ज्यादा से ज्यादा पेड़ लगाकर पर्यावरण संरक्षण में योगदान दें।