Edited By Mansa Devi,Updated: 05 Nov, 2025 06:00 PM

टेक्नोलॉजी की दुनिया में Google एक नया प्रयोग करने जा रहा है। कंपनी अब केवल धरती पर ही नहीं, बल्कि अंतरिक्ष में भी अपने AI डेटा सेंटर स्थापित करने की तैयारी कर रही है। इसे ‘Project SunCatcher’ नाम दिया गया है। इस प्रोजेक्ट के तहत Google लो-अर्थ...
नेशनल डेस्क: टेक्नोलॉजी की दुनिया में Google एक नया प्रयोग करने जा रहा है। कंपनी अब केवल धरती पर ही नहीं, बल्कि अंतरिक्ष में भी अपने AI डेटा सेंटर स्थापित करने की तैयारी कर रही है। इसे ‘Project SunCatcher’ नाम दिया गया है। इस प्रोजेक्ट के तहत Google लो-अर्थ ऑर्बिट में घूमने वाले सैटेलाइट्स बनाएगा, जो सूरज की रोशनी से बिजली पैदा करके AI चिप्स को चलाएंगे।
Project SunCatcher क्या है?
‘Project SunCatcher’ का मकसद अंतरिक्ष में सौर ऊर्जा से चलने वाले AI डेटा सेंटर बनाना है। इन सैटेलाइट्स में Google के टेंसर प्रोसेसिंग यूनिट्स (TPU) लगे होंगे। हर सैटेलाइट अपने सोलर पैनल से बिजली पैदा करेगा और आपस में जुड़े रहकर AI प्रोसेसिंग का काम संभालेगा। इसका उद्देश्य धरती पर बढ़ती AI ऊर्जा की मांग को अंतरिक्ष से पूरी करना है।
लॉन्चिंग और टेस्टिंग की योजना
रिपोर्ट के अनुसार, Google Planet Labs के साथ मिलकर काम कर रहा है। 2027 की शुरुआत में दो टेस्ट सैटेलाइट लॉन्च किए जाएंगे। ये टेस्ट सैटेलाइट्स हार्डवेयर, कनेक्टिविटी और पावर जनरेशन की क्षमता जांचने के लिए होंगे। अंतरिक्ष में सूरज की रोशनी 24 घंटे उपलब्ध रहती है, जिससे बैटरी की जरूरत भी काफी कम हो जाएगी।
AI की बढ़ती डिमांड और ऊर्जा संकट
AI की दुनिया तेजी से बढ़ रही है। अगले पांच सालों में AI डेटा सेंटर की क्षमता पाँच गुना बढ़ानी पड़ सकती है। AI सर्वर, चैटबॉट, वीडियो जेनरेशन और डेटा एनालिटिक्स के लिए भारी मात्रा में बिजली की आवश्यकता होती है। सिर्फ सर्वर ही लगभग 60% बिजली इस्तेमाल करते हैं, जबकि कूलिंग सिस्टम 7-30% बिजली लेते हैं। ऐसे में अंतरिक्ष से चलने वाला डेटा सेंटर धरती पर बिजली बचाने में मददगार साबित होगा।
अंतरिक्ष क्यों?
सौर ऊर्जा का सबसे बड़ा फायदा यह है कि अंतरिक्ष में सूरज की रोशनी लगातार मिलती है। सही ऑर्बिट में सोलर पैनल धरती की तुलना में 8 गुना अधिक ऊर्जा पैदा कर सकते हैं। न रात, न बादल, न मौसम की बाधा। Google का कहना है कि सूरज की ऊर्जा इंसानों द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली कुल बिजली से 100 ट्रिलियन गुना ज्यादा है। इसका मतलब है कि AI के लिए ऊर्जा की कोई कमी नहीं होगी।