भगवंत मान की कैबिनेट में 6 अनुसूचित जाति के मंत्रियों की शामिली: भारतीय राजनीति में कमजोर वर्गों के सशक्तिकरण का एक सकारात्मक संकेत

Edited By Updated: 30 Sep, 2024 02:51 PM

inclusion of 6 sc ministers in bhagwant mann s cabinet

पंजाब में अनुसूचित जातियां सबसे शक्तिशाली और बड़ा वोट बैंक है, लेकिन जब सत्ता में हिस्सेदारी की बात आती है तो उन्हें अक्सर नजरअंदाज किया जाता रहा है। परिंतु जब से भगवंत मान के नेतृत्व वाली आम आदमी पार्टी की सरकार ने राज्य में सत्ता संभाली है, हालात...

नेशनल डेस्क: पंजाब में अनुसूचित जातियां सबसे शक्तिशाली और बड़ा वोट बैंक है, लेकिन जब सत्ता में हिस्सेदारी की बात आती है तो उन्हें अक्सर नजरअंदाज किया जाता रहा है। परिंतु जब से भगवंत मान के नेतृत्व वाली आम आदमी पार्टी की सरकार ने राज्य में सत्ता संभाली है, हालात बदल गए हैं। समाज के कमजोर और हाशिए पर पड़े वर्गो की आवाज अब केबिनेट में शामिल 16 में से 6 मंत्रियों के रुप में सुनी और महसूस की जा रही है।

ये मंत्री अब वे मामुली चेहरे नहीं है जिनके पास सत्ता के नाम पर मामुली विभाग और कम शक्ति होती है, बल्कि ये राज्य सरकार के प्रमुख विभागों को संभालने वाले शक्तिशाली मंत्री है। मंत्रिमंडल में वित्त विभाग हरपाल चीमा, खा और नागरिक आपूर्ति विभाग लाल चंद कटारुचक्क, लोत निर्मान विभाग हरभजन सिंह ई.टी.ओ, समाजिक न्याय विभाग डा. बलजीत कौर, सथानिए निकाय विभाग डा. रवजोत और बागवानी विभाग महिंदर भगत जैसे प्रमुख मंत्री शामिल हैं।

इनमें से अधिकांश मंत्रियों का शायद ही पिछली सरकारों की तुलना में कोई मजबूत राजनीतिक या पारिवारिक आधार हो, जहां सत्ता में बैठे लोग अपने करीबी रिश्तेदारों को ही नवाजते थे। कांग्रेस में चौधरी परिवार लगभग 100 साल तक सत्ता के लाभ लेता रहा, जबकि अकाली दल में धन्ना सिंह गुलशन, चरणजीत सिंह अटवाल, ग्रदेव सिंह बादल और गुलजार सिंह रणीके जैसे नेताओं के परिवारों ने सत्ता भोगने के लिए कुर्सी का संगीतमयी खेल खेला। लेकिन आम आदमी पार्टी की सरकार इसमें बड़ा बदलाव लाई है क्योंकि आम परिवारों से उठे लोगों के माध्यम से समाज का सशक्तिकरण सुनिश्चित किया जा रहा है।

2003 में 91वें संवेधानिक संशोधन अधिनियम के बाद से जिसमें कहा गया है कि मंत्री परिषद में मुख्यमंत्री समेत मंत्रियों की कुल संख्या विधानसभा की कुल संख्या के 15% से अधिक नहीं होनी चाहिए। कुल 18 में से केवल 2 या 3 मंत्री ही राज्य मंत्रिमंडल का हिस्सा बनते थे। उदाहरण के तौर पर 2007 तक कैप्टन अमरेंद्र सिंह के शासन में 3 अनुसूचित जाति के नेता चौधरी जगजीत सिंह, महिंदर सिंह के. पी. और सरदूल सिंह मंत्री थे। इसी तरह अकाली दल के कार्यकाल" में 2007 से 2017 तक 3 एस.सी. नेता चुन्नी लाल भगत, गुलजार सिंह रणीके और सोहन सिंह ठंडल मंत्री रहे।

कैप्टन अमरेंद्र सिंह के 2017 वाले कार्यकाल में अनुसूचित जातियों के नेता साधु सिंह धर्मसोत, अरुणा चौधरी और चरणजीत सिंह चन्नी मंत्री थे, जबकि चरणजीत सिंह चन्नी के नेतृत्व वाली सरकार में अरुणा चौधरी और राजकुमार वेरका मंत्री थे। राज्य में करीब 40% वोट शेयर रखने वाला यह वर्ग हमेशा प्रभावित रहा क्योंकि सत्ता में उनकी भागीदारी केवल 10% या उससे भी कम थी। उनके संघर्षों को मत्रियों द्वारा हल किया जाना संभव नहीं था क्योंकि उन्हें मामूली विभागों में सीमित कर दिया गया था। उनके समुदाय के नेता महज दिखावटी चेहरे बने रहे जिनके पास अपने समुदाय को ऊपर उठाने के लिए कोई शक्ति नहीं थी।

'आप' ने नए युग की शुरूआत की
इनमें से कुछ को बड़ी जिम्मेदारी सौंपी गई है और दुनिया को यह दिखाने का मौका दिया है कि एक आम आदमी क्या कर सकता है।' आप' ने वास्तव में एक नए युग की शुरूआत की है, जहां आम आदमी राजा है और अपनी किस्मत को बदलने की पूरी ताकत रखता है। यह वास्तव में भारतीय राजनीति में एक उज्ज्वल पहलू है क्योंकि यह उन लोगों को अधिक शक्ति देने का संकेत है जो राजनीतिक क्षेत्र में महत्वपूर्ण हैं लेकिन जो अब तक इससे वंचित रहे हैं।

यह वास्तव में बाबा साहेब डॉ. बी. आर. अंबेडकर के सपने को साकार करने की दिशा में एक कदम है, जिन्होंने एक बार कहा था, "राजनीतिक लोकतंत्र तब तक काम नहीं कर सकता जब तक इसकी बुनियाद सामाजिक लोकतंत्र न हो। सामाजिक लोकतंत्र का क्या मतलब है? इसका मतलब है एक जीवन शैली जो स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व को जीवन के सिद्धांतों के रूप में मान्यता देती है। अनुसूचित जातियों के सशक्तिकरण के लिए 'आप' का यह कदम निश्चित रूप से बाबा साहेब द्वारा कल्पना किए गए सामाजिक लोकतंत्र के लक्ष्य को प्राप्त करने की दिशा में एक कदम है।

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