Edited By Mehak,Updated: 11 Jun, 2025 01:23 PM

सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम फैसले में उत्तराखंड सरकार को फटकार लगाते हुए साफ कहा कि दो बालिग व्यक्ति अगर आपसी सहमति और परिवार की रजामंदी से साथ रहना चाहते हैं, तो सरकार को इसमें हस्तक्षेप करने का कोई अधिकार नहीं है। यह टिप्पणी एक मुस्लिम युवक और हिंदू...
नेशनल डेस्क : सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम फैसले में उत्तराखंड सरकार को फटकार लगाते हुए साफ कहा कि दो बालिग व्यक्ति अगर आपसी सहमति और परिवार की रजामंदी से साथ रहना चाहते हैं, तो सरकार को इसमें हस्तक्षेप करने का कोई अधिकार नहीं है। यह टिप्पणी एक मुस्लिम युवक और हिंदू लड़की की शादी के मामले में दी गई, जिसमें युवक छह महीने से जेल में बंद था।
क्या है मामला?
अमान सिद्दीकी उर्फ अमन चौधरी, नामक मुस्लिम युवक को उत्तराखंड पुलिस ने गिरफ्तार किया था। आरोप था कि उसने अपनी धार्मिक पहचान छिपाकर एक हिंदू लड़की से शादी की और उत्तराखंड फ्रीडम ऑफ रिलीजन एक्ट, 2018 और भारतीय न्याय संहिता, 2023 के तहत उस पर मामला दर्ज किया गया। अमान ने पहले उत्तराखंड हाईकोर्ट में जमानत के लिए याचिका दाखिल की थी, लेकिन उसे राहत नहीं मिली। इसके बाद उसने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया।
सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी
जस्टिस बी. वी. नागरत्ना और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा की बेंच ने सुनवाई करते हुए कहा, 'राज्य सरकार को इस दंपति के साथ रहने पर कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए, क्योंकि दोनों बालिग हैं और अपने फैसले खुद ले सकते हैं। साथ ही, उनकी शादी परिवार की रजामंदी से हुई है। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि उनके खिलाफ चल रही आपराधिक कार्यवाही उनके साथ रहने में कोई बाधा नहीं बन सकती।'
शादी के बाद शुरू हुआ विरोध
याचिकाकर्ता अमान के वकील ने कोर्ट को बताया कि यह अरेंज मैरिज थी, जो दोनों परिवारों की रजामंदी से हुई थी। शादी के कुछ समय बाद कुछ स्थानीय संगठन और लोग इसका विरोध करने लगे और पुलिस में शिकायत दर्ज कर दी गई। अमान की ओर से बताया गया कि उसने शादी के अगले ही दिन एक एफिडेविट भी जमा किया, जिसमें कहा गया कि उसने अपनी पत्नी पर धर्म परिवर्तन का कोई दबाव नहीं डाला। दोनों अपनी-अपनी आस्था का पालन करने के लिए स्वतंत्र हैं।
कोर्ट से मिली राहत
कोर्ट को यह भी बताया गया कि यदि अमान को जमानत मिल जाती है, तो यह दंपती अपने परिवारों से अलग रहकर शांति से जीवन व्यतीत करना चाहता है। इन सभी तथ्यों को ध्यान में रखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता को तुरंत जमानत देने का आदेश जारी कर दिया।