10वीं क्लास में 73 प्रतिशत नंबर लाने के बाद भी छात्रा ने किया सुसाइड, एक और छात्र ने भी दे दी जान

Edited By Updated: 17 May, 2025 07:32 AM

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महाराष्ट्र के नांदेड़ जिले से बेहद चौंकाने वाली और दुखद खबरें सामने आई हैं। मात्र दो दिनों के भीतर दो अलग-अलग छात्र-छात्राओं ने आत्महत्या कर ली, जिससे न केवल उनके परिवार, बल्कि पूरा समाज स्तब्ध है।

नेशनल डेस्क: महाराष्ट्र के नांदेड़ जिले से बेहद चौंकाने वाली और दुखद खबरें सामने आई हैं। मात्र दो दिनों के भीतर दो अलग-अलग छात्र-छात्राओं ने आत्महत्या कर ली, जिससे न केवल उनके परिवार, बल्कि पूरा समाज स्तब्ध है। 

पहली घटना: 10वीं की छात्रा रोशनी पगारे ने खत्म की अपनी जिंदगी
सांगवी इलाके के अंबानगर में रहने वाली 15 वर्षीय रोशनी पगारे ने 10वीं बोर्ड परीक्षा में 73 प्रतिशत अंक लाए थे। वह पढ़ाई में होशियार मानी जाती थी और सावित्रीबाई फुले स्कूल की छात्रा थी। मगर उसे उम्मीद थी कि वह 80-85% अंक हासिल करेगी। अपेक्षा के मुताबिक अंक न आने से वह इतनी निराश हुई कि 14 मई को अपने घर में पंखे से लटककर जान दे दी।

परिजनों का कहना है कि रिजल्ट आने के बाद से वह बहुत शांत हो गई थी और किसी से ज़्यादा बात नहीं कर रही थी। रोशनी की मौत ने यह दिखा दिया कि केवल अंक ही बच्चों की आत्म-छवि को कितना प्रभावित कर सकते हैं, और यह भी कि उन्हें मानसिक रूप से संभालने के लिए हमारे पास कितनी कम व्यवस्था है।

दूसरी घटना: नर्सिंग छात्र पुनीत वाटेकर ने गोदावरी नदी में कूदकर दी जान
इसके अगले ही दिन यानी 15 मई को गोदावरी नदी से पुनीत विनोदराव वाटेकर नामक नर्सिंग छात्र का शव बरामद हुआ। वह 12 मई से लापता था। 20 वर्षीय पुनीत अमरावती जिले के शिरसोली गांव का रहने वाला था और नांदेड़ के खुपसरवाड़ी स्थित मेमोरियल स्कूल ऑफ नर्सिंग में अंतिम वर्ष का छात्र था।

पुनीत की बहन श्वेता और अन्य छात्रों ने आरोप लगाया है कि कॉलेज के शिक्षकों द्वारा असाइनमेंट और परीक्षा फॉर्म को लेकर अत्यधिक मानसिक दबाव डाला जा रहा था। उन्होंने यह भी कहा कि शिक्षकों का व्यवहार अपमानजनक और तिरस्कारपूर्ण था, जिससे पुनीत मानसिक रूप से टूट चुका था। इस घटना के बाद छात्रों ने कॉलेज के बाहर धरना प्रदर्शन किया और दोषी शिक्षकों पर कार्रवाई की मांग की। वजीराबाद पुलिस ने आकस्मिक मौत का मामला दर्ज किया है और आगे की जांच जारी है।

क्या कहना है समाज और प्रशासन का?
इन दोनों मामलों ने साफ कर दिया है कि शिक्षा के नाम पर बच्चों पर डाले जा रहे मानसिक दबाव कितने घातक साबित हो सकते हैं। यह सिर्फ अंक, असाइनमेंट या पढ़ाई की बात नहीं है – यह उस सामाजिक और मानसिक दबाव की भी कहानी है जिसमें आज का युवा घुट रहा है।
  

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