'नाना नहीं, चाचा नहीं...' चंदा को मामा ही क्यों कहते हैं? आखिर क्या है इसके पीछे का रहस्य

Edited By Updated: 25 Jul, 2025 11:19 AM

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हम सभी ने बचपन से ही किताबों में, लोरियों में चंदा को मामा कहते हुए सुना है। भारतीय संस्कृति और पौराणिक कथाओं में चंद्रमा को 'चंदा मामा' कहने की एक लंबी परंपरा रही है। क्या कभी आपने इस बारे में सोचा है कि चंदा को मामा ही क्यों कहा, क्यों चाचा, नाना...

नेशनल डेस्क: हम सभी ने बचपन से ही किताबों में, लोरियों में चंदा को मामा कहते हुए सुना है। भारतीय संस्कृति और पौराणिक कथाओं में चंद्रमा को 'चंदा मामा' कहने की एक लंबी परंपरा रही है। क्या कभी आपने इस बारे में सोचा है कि चंदा को मामा ही क्यों कहा, क्यों चाचा, नाना या भाई क्यों नहीं कहा जाता? चलिए आज हम आपके इसी सवाल का जवाब विस्तार से देते हैं।

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पौराणिक कथाओं में है 'मामा' कहने का रहस्य

चंद्रमा को 'मामा' कहे जाने के पीछे एक गहरी पौराणिक मान्यता छिपी है। हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, जब देवताओं और दानवों ने समुद्र मंथन किया था, तो उससे एक-एक करके 14 अनमोल रत्न निकले थे। इन रत्नों में देवी लक्ष्मी भी थीं, जो धन, समृद्धि और ऐश्वर्य की देवी मानी जाती हैं। इन सभी 14 रत्नों को एक-दूसरे का भाई-बहन माना जाता है। चंद्रमा भी इन्हीं 14 रत्नों में से एक थे।

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चूंकि देवी लक्ष्मी को हम सभी 'मां' के रूप में पूजते हैं, तो इस नाते उनके भाई चंद्रमा को स्वाभाविक रूप से हमारा 'मामा' कहा जाने लगा। यह संबंध एक परिवार के रिश्ते की तरह ही देखा जाता है, जहाँ मां के भाई को मामा कहा जाता है। यही वजह है कि चंद्रमा को अक्सर प्रेम और आदर के साथ 'चंदा मामा' कहकर संबोधित किया जाता है।

शरद पूर्णिमा पर विशेष है चंद्रमा की महिमा

चंद्रमा का महत्व सिर्फ पौराणिक कथाओं तक ही सीमित नहीं है, बल्कि यह हमारी पूजा-पाठ और लोक परंपराओं में भी गहराई से जुड़ा है। देवी लक्ष्मी जहां समृद्धि, सौंदर्य और शांति की प्रतीक हैं, वहीं चंद्रमा शीतलता, सौम्यता और मन की शांति का प्रतीक है। कई बार चंद्रमा की पूजा को धन और समृद्धि से भी जोड़ा जाता है।

उदाहरण के लिए शरद पूर्णिमा का त्योहार बहुत ख़ास होता है। इस दिन चंद्रमा अपनी सोलह कलाओं से युक्त होता है और माना जाता है कि इसकी किरणें अमृत बरसाती हैं। लोग इस दिन खीर बनाकर चंद्रमा की रोशनी में रखते हैं। ऐसा माना जाता है कि चंद्रमा की किरणें खीर में पड़कर उसे अमृतमयी बना देती हैं, जिससे घर में सुख-समृद्धि आती है और देवी लक्ष्मी की विशेष कृपा प्राप्त होती है। इस दिन देवी लक्ष्मी और चंद्रमा, दोनों की पूजा का विधान है।

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बच्चों की कविताओं और लोरी में चंदा मामा का प्यार

चंद्रमा का यह प्यारा रिश्ता बच्चों के मन में भी गहरा प्रभाव डालता है। दादी-नानी के मुँह से या स्कूल की किताबों में भी हम सबने 'चंदा मामा' के बारे में खूब सुना है। बचपन में पढ़ी गई कई कविताएं आज भी हमें याद हैं, जैसे:

  • "हठ कर बैठा चांद एक दिन, माता से यह बोला... सिला दो माँ मुझे ऊन का मोटा एक झिंगोला।"
  • बच्चों की सबसे लोकप्रिय लोरी में से एक, "चंदा मामा दूर के, पूए पकाएं बूर के..."

ये कविताएं बच्चों को हमेशा से आकर्षित करती रही हैं और उनके मन में चंद्रमा के प्रति एक विशेष लगाव पैदा करती हैं। 'चंदा मामा' शब्द ही बच्चों के लिए एक स्नेह और अपनेपन का प्रतीक बन गया है।

 

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