शुगर के मरीजों के लिए Good News! मिल गया डायबिटीज का समाधान, अब एक ही इंजेक्शन से ठीक हो जाएगी बीमारी, जानें कैसे?

Edited By Updated: 23 Nov, 2025 12:47 PM

stem cell therapy can cure diabetes relief in just one injection

टाइप-1 डायबिटीज के मरीजों के लिए यह अब तक आजीवन इंसुलिन इंजेक्शन लेने की मजबूरी रही है क्योंकि यह एक ऑटोइम्यून बीमारी है जिसमें शरीर खुद अपनी इंसुलिन बनाने वाली बीटा-कोशिकाओं को नष्ट कर देता है लेकिन चिकित्सा विज्ञान ने हाल ही में एक बड़ी सफलता...

नेशनल डेस्क। टाइप-1 डायबिटीज के मरीजों के लिए यह अब तक आजीवन इंसुलिन इंजेक्शन लेने की मजबूरी रही है क्योंकि यह एक ऑटोइम्यून बीमारी है जिसमें शरीर खुद अपनी इंसुलिन बनाने वाली बीटा-कोशिकाओं को नष्ट कर देता है लेकिन चिकित्सा विज्ञान ने हाल ही में एक बड़ी सफलता हासिल की है। स्टेम-सेल थेरेपी (Stem-Cell Therapy) इस बीमारी के इलाज में एक संभावित गेम-चेंजर बनकर उभरी है जिससे दुनिया भर के मरीज़ों और डॉक्टरों में नई उम्मीद जगी है।

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VX-880 ट्रायल ने बदली ज़िन्दगी

इस नई तकनीक की सफलता का एक जीवंत उदाहरण एमांडा स्मिथ हैं। उन्हें 2015 में टाइप-1 डायबिटीज का पता चला था लेकिन स्टेम-सेल आधारित क्लिनिकल ट्रायल VX-880 में शामिल होने के बाद उनकी ज़िंदगी बदल गई। दो साल से वह कोई इंसुलिन इंजेक्शन नहीं ले रही हैं। यह संभव हुआ लैब में तैयार की गई इंसुलिन-उत्पादक कोशिकाओं के ट्रांसप्लांटेशन से। येल स्कूल ऑफ मेडिसिन के विशेषज्ञ डॉ. केवन हेरॉल्ड अभी इसे पूर्ण इलाज कहने से बच रहे हैं लेकिन मानते हैं कि शोध बिल्कुल सही दिशा में है।

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कैसे काम करती है स्टेम-सेल थेरेपी? 

स्टेम-सेल्स शरीर की ऐसी बहुमुखी कोशिकाएं होती हैं जिनमें किसी भी तरह की विशिष्ट कोशिका में बदलने की क्षमता होती है। वैज्ञानिक इन स्टेम-सेल्स को लैब में इस तरह से प्रोग्राम करते हैं कि वे बिल्कुल प्राकृतिक बीटा-सेल्स की तरह काम करना शुरू कर दें जो इंसुलिन का उत्पादन करती हैं। इन तैयार कोशिकाओं को फिर मरीज के शरीर में ट्रांसप्लांट कर दिया जाता है।

 

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इन नई कोशिकाओं के कारण शरीर अपने स्तर पर फिर से इंसुलिन बनाना शुरू कर देता है। इससे ब्लड शुगर का उतार-चढ़ाव कम होता है और मरीज की बाहरी इंसुलिन पर निर्भरता काफी कम हो जाती है। यह थेरेपी सिर्फ लक्षणों को नहीं बल्कि बीमारी की जड़ को खत्म करने की दिशा में काम करती है।

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चिकित्सा चुनौतियां और जोखिम 

हालांकि यह खोज क्रांतिकारी है पर इसमें कुछ चिकित्सा चुनौतियां भी हैं:

शरीर ट्रांसप्लांट की गई नई कोशिकाओं को अस्वीकार (रिजेक्ट) न कर दे इसके लिए मरीजों को इम्यून-सप्रेशन (प्रतिरक्षा दमन) की दवाइयां लेनी पड़ती हैं। इन दवाओं से संक्रमण का जोखिम बढ़ जाता है। यह अभी स्पष्ट नहीं है कि ये नई कोशिकाएं मरीज के शरीर में कितने साल तक प्रभावी रूप से काम कर पाएंगी। शोधकर्ता अब ऐसे तरीके खोज रहे हैं जिसमें जेनेटिक एडिटिंग या अन्य उपायों से शरीर इन सेल्स को बिना इम्यून-सप्रेशन दवाओं के ही अपना मान ले।

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गेम-चेंजर क्यों है यह खोज?

यदि स्टेम-सेल आधारित इलाज सफलतापूर्वक व्यापक रूप से लागू हो जाता है तो यह कई मायनों में गेम-चेंजर साबित होगा:

टाइप-1 मरीजों को रोजाना इंजेक्शन नहीं लगाने होंगे।

ब्लड शुगर कंट्रोल आसान होगा।

बीमारी से जुड़ी गंभीर जटिलताओं (किडनी, आंखें, नर्व्स डैमेज) का खतरा कम होगा।

बच्चों और किशोरों के जीवन की गुणवत्ता (Life Quality) बहुत बेहतर होगी।

इसके अतिरिक्त इस तकनीक का उपयोग भविष्य में हार्ट, लिवर और न्यूरोलॉजिकल डिजीज जैसी अन्य बीमारियों के इलाज में भी किया जा सकता है।

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