न्यूज चैनलों की डिबेट पर सुप्रीम कोर्ट ने जताई चिंता, कहा- एंकर बोलते हैं...स्पीकर को कर देते हैं म्यूट

Edited By Updated: 16 Sep, 2020 02:00 PM

supreme court expressed concern over debate on news channels

सुप्रीम कोर्ट ने कहा इलेक्ट्रानिक मीडिया के नियमन (Regulation) की जरूरत है क्योंकि अधिकांश चैनल सिर्फ TRP की दौड़ में लगे हैं और यह ज्यादा सनसनीखेज की ओर जा रहा है। जस्टिस धनंजय वाई चंद्रचूड़, जस्टिस इन्दु मल्होत्रा और जस्टिस के एम जोसेफ की पीठ ने...

नेशनल डेस्कः सुप्रीम कोर्ट ने कहा इलेक्ट्रानिक मीडिया के नियमन (Regulation) की जरूरत है क्योंकि अधिकांश चैनल सिर्फ TRP की दौड़ में लगे हैं और यह ज्यादा सनसनीखेज की ओर जा रहा है। जस्टिस धनंजय वाई चंद्रचूड़, जस्टिस इन्दु मल्होत्रा और जस्टिस के एम जोसेफ की पीठ ने मंगलवार को न्यूज चैनलों के डिबेट पर तल्ख टिप्पणी की। कोर्ट ने कहा कि चैनलों में हो रही डिबेट चिंता का विषय है। कोर्ट ने कहा कि इन डिबेट में ऐसी बातें होती है जो मानहानि वाली हैं। शीर्ष कोर्ट ने कहा कि ज्यादातर समय ऐसा होता है कि सिर्फ एंकर ही बोलते रहते हैं, सवाल पूछते रहते हैं और स्पीकर को म्यूट कर देते हैं, ऐसे में मीडिया में सेल्फ रेग्युलेशन की व्यवस्था होनी चाहिए। पीठ ने यह सख्त टिप्पणी सुदर्शन टीवी के कार्यक्रम ‘बिन्दास बोल' के प्रोमो को लेकर उठे सवालों पर सुनवाई के दौरान की।

 

पीठ ने टिप्पणी की कि इंटरनेट को नियमित करना मुश्किल है लेकिन अब इलेक्ट्रानिक मीडिया का नियमन करने की आवश्यकता है। पीठ ने कहा, ‘‘प्रिंट मीडिया की तुलना में इलेक्ट्रानिक मीडिया ज्यादा ताकतवर हो गया है और प्रसारण से पहले प्रतिबंध के पक्षधर नहीं रहे हैं। 'पीठ ने कहा, आज लोग भले ही अखबार नहीं पढ़े लेकिन इलेक्ट्रानिक मीडिया जरूर देखते हैं।'' पीठ ने कहा, ‘‘समाचार पत्र पढ़ने में हो सकता है मनोरंजन नहीं हो लेकिन इलेक्ट्रानिक मीडिया में कुछ मनोरंजन भी है।'' पीठ ने कुछ मीडिया हाउस द्वारा की जा रही आपराधिक मामलों की तफतीश का भी जिक्र किया।

 

पीठ ने कहा, ‘जब पत्रकार काम करते हैं तो उन्हें निष्पक्ष टिप्पणी के साथ काम करने की आवश्यकता है। आपराधिक मामलों की जांच देखिए, मीडिया अक्सर जांच के एक ही हिस्से को केन्द्रित करता है।'' पीठ ने न्यूज ब्राडकास्टर्स एसोसिएशन के वकील से सवाल किया, ‘‘आप कर क्या रहे हैं? हम आपसे जानना चाहते हैं कि लेटर हेड के अलावा भी क्या आपका कोई अस्तित्व है। मीडिया में जब अपराध की समानांतर तफतीश होती है और प्रतिष्ठा तार तार की जा रही होती है , तो आप क्या करते हैं?'' पीठ ने कहा कि कुछ चीजों को नियंत्रित करने के लिए कानून को सभी कुछ नियंत्रित नहीं करना है।

 

दूसरी ओर, केन्द्र ने पत्रकारिता की स्वतंत्रता की हिमायत करते हुए कोर्ट से कहा कि प्रेस को नियंत्रित करना किसी भी लोकतंत्र के लिए घातक होगा। इस पर न्यायमूर्ति धनंजय वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति इन्दु मल्होत्रा और न्यायमूर्ति के एम जोसेफ की पीठ ने स्पष्ट किया कि वह मीडिया पर सेन्सरशिप लगाने का सुझाव नहीं दे रहा है लेकिन मीडिया में किसी न किसी तरह का स्वत: नियंत्रण होना चाहिए।

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