दो पूर्व सीजेआई कॉलेजियम के समर्थन में आए, बोले- न्यायपालिका...

Edited By Yaspal,Updated: 18 Mar, 2023 09:18 PM

two former cjis came in support of the collegium said  judiciary

भारत के पूर्व प्रधान न्यायाधीश एस. ए. बोबडे ने संवैधानिक अदालतों में न्यायाधीशों की नियुक्ति में प्रधान न्यायाधीश और कॉलेजियम की प्रधानता का शनिवार को समर्थन किया, हालांकि उन्होंने यह भी कहा कि कार्यपालिका की राय भी महत्वपूर्ण है

नेशनल डेस्कः भारत के पूर्व प्रधान न्यायाधीश एस. ए. बोबडे ने संवैधानिक अदालतों में न्यायाधीशों की नियुक्ति में प्रधान न्यायाधीश और कॉलेजियम की प्रधानता का शनिवार को समर्थन किया, हालांकि उन्होंने यह भी कहा कि कार्यपालिका की राय भी महत्वपूर्ण है। जस्टिस बोबडे ने यह भी कहा कि उन्होंने भारतीय न्यायपालिका के प्रमुख के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान न्यायिक प्रक्रिया में किसी भी कार्यकारी हस्तक्षेप को न तो देखा है, न ही महसूस किया है। उन्होंने कहा कि न्यायपालिका के कार्य में कार्यपालिका केवल अपने अनुकूल पीठों के गठन के माध्यम से ही हस्तक्षेप कर सकती है, लेकिन ऐसा नहीं होता है। उन्होंने कहा कि न्यायाधीशों का रोस्टर सीजेआई स्वतंत्र रूप से बगैर किसी दबाव के तैयार करते हैं।

जस्टिस बोबडे ने 18 नवंबर, 2019 को 47वें सीजेआई के रूप में शपथ ली थी और 23 अप्रैल, 2021 को वह सेवानिवृत्त हुए थे। ‘इंडिया टुडे कॉन्क्लेव' में अपने सम्बोधन में उन्होंने कहा कि कार्यपालिका, विधायिका और न्यायपालिका अपने कार्यों और शक्तियों की दृष्टि से अलग जरूर हैं, लेकिन उनके इरादे और उद्देश्य कतई अलग नहीं हैं। उन्होंने कहा, ‘‘मैं इसे पूरी तरह से वैध मानता हूं कि कौन न्यायाधीश बनने जा रहा है, इसमें कार्यपालिका की महत्वपूर्ण रुचि है। इस तथ्य के अलावा कि वे कार्यपालिका हैं और सरकार के अंगों में से एक हैं, वे किसी भी अदालत में सबसे बड़े मुकदमेबाज भी हैं।'' उन्होंने कहा कि कार्यपालिका की राय महत्वपूर्ण है, क्योंकि इसमें न्यायाधीश की गतिविधियों पर खुफिया ब्यूरो की रिपोर्ट भी होती है और कार्यपालिका अदालत को यह बताने की सबसे अच्छी स्थिति में होती है कि यह एक उपयुक्त उम्मीदवार नहीं है।

जस्टिस बोबडे ने कहा कि न्यायपालिका के प्रमुख के रूप में उनके 18 महीने के कार्यकाल के दौरान सुप्रीम कोर्ट में किसी भी न्यायाधीश की नियुक्ति नहीं की जा सकी, क्योंकि कॉलेजियम आम सहमति पर नहीं पहुंच सका। जब उनसे शीर्ष अदालत के एक वरिष्ठ वकील के उस बयान के बारे में पूछा गया कि न्यायाधीश मोदी सरकार से डरे हुए हैं और "गत्यावरोध" को लेकर अनिच्छुक हैं, तो उन्होंने सीधे जवाब देने से इनकार कर दिया। जस्टिस बोबडे ने कहा कि राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (एनजेएसी) ने सामाजिक कार्यकर्ताओं और प्रतिष्ठित लोगों सहित सभी प्रकार की राय को व्यापक प्रतिनिधित्व प्रदान किया और सर्वोच्च न्यायालय इससे सहमत नहीं था और उसने उस कानून को रद्द कर दिया।

अयोध्या भूमि विवाद पर फैसला देने वाली संविधान पीठ का हिस्सा रहे जस्टिस बोबडे ने कहा कि राजनीति शब्द किसी भी चीज़ से जुड़ा हो सकता है, लेकिन उन्होंने अयोध्या मामले में कोई भी राजनीति महसूस नहीं की। जस्टिस बोबडे से जब पूछा गया कि अयोध्या विवाद से निपटने के दौरान क्या उन्होंने कोई अतिरिक्त दबाव महसूस किया, तो उन्होंने इसका नकारात्मक जवाब दिया। सेवानिवृत्त पूर्व न्यायाधीश ने जनवरी 2018 में शीर्ष अदालत के तत्कालीन चार न्यायाधीशों द्वारा आयोजित विवादास्पद संवाददाता सम्मेलन को सर्वोच्च न्यायालय के इतिहास की सबसे दुर्भाग्यपूर्ण घटनाओं में से एक करार दिया।

 

Related Story

Trending Topics

none
Royal Challengers Bangalore

Gujarat Titans

Match will be start at 21 May,2023 09:00 PM

img title img title

Everyday news at your fingertips

Try the premium service

Subscribe Now!