Edited By Rohini Oberoi,Updated: 17 Oct, 2025 03:49 PM

माउंट एवरेस्ट पर सर एडमंड हिलेरी और तेनजिंग नोर्गे की 1953 की पहली सफल चढ़ाई में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले पर्वतारोही और पोर्टर कांचा शेरपा का 92 वर्ष की आयु में निधन हो गया है। नेपाल पर्वतारोहण संघ ने पुष्टि की है कि कपन (काठमांडू) स्थित उनके...
नेशनल डेस्क। माउंट एवरेस्ट पर सर एडमंड हिलेरी और तेनजिंग नोर्गे की 1953 की पहली सफल चढ़ाई में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले पर्वतारोही और पोर्टर कांचा शेरपा का 92 वर्ष की आयु में निधन हो गया है। नेपाल पर्वतारोहण संघ ने पुष्टि की है कि कपन (काठमांडू) स्थित उनके आवास पर उन्होंने अंतिम सांस ली। कांचा शेरपा उस ऐतिहासिक अभियान दल के अंतिम जीवित सदस्य थे। उनका निधन पर्वतारोहण के एक युग के अंत को चिह्नित करता है जहां सैकड़ों गुमनाम नायकों ने एवरेस्ट फतह को संभव बनाया था।
इतिहास के सफर का हिस्सा
कांचा शेरपा का जन्म 1933 में नेपाल के नामचे गांव में हुआ था। वह अक्सर मज़ाक में कहते थे कि उन्हें अपनी सही जन्मतिथि भी याद नहीं है क्योंकि उस दौर में गांवों में जन्म का कोई आधिकारिक रिकॉर्ड नहीं रखा जाता था।

युवावस्था में अपने परिवार का पेट पालने के लिए काम की तलाश में उन्हें पांच दिनों तक पैदल चलकर भारत के दार्जिलिंग पहुंचना पड़ा था। इसी तलाश ने उन्हें पर्वतारोहण की दुनिया में ला दिया। हिलेरी और नोर्गे के ऐतिहासिक अभियान में कुल 35 पर्वतारोही और सैकड़ों कुली शामिल थे। कांचा शेरपा ने इस विशाल टीम में एक पोर्टर और गाइड के रूप में काम किया। उन्होंने लगभग 60 पाउंड (27 किलोग्राम) वजन का सामान ढोया, खतरनाक रास्तों में रस्सियां बांधीं और टीम का मार्गदर्शन किया।
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जीत का जश्न अंतिम बेस कैंप पर
कांचा शेरपा का काम भले ही शिखर तक पहुंचना नहीं था लेकिन वह अंतिम बेस कैंप तक हिलेरी और नोर्गे के साथ रहे। 29 मई 1953 को जब दोनों ने एवरेस्ट की चोटी फतह की तो कांचा और बाकी टीम के सदस्यों ने खुशी में नाचकर और गले मिलकर इस जीत का ज़ोरदार जश्न मनाया था। 2011 में एक इंटरव्यू में कांचा ने इस अनुभव को याद करते हुए कहा था, "यह काम कठिन था लेकिन मुझे अच्छा अनुभव मिला। मुझे अच्छे कपड़े मिले और सम्मान भी।"

एवरेस्ट के बाद की ज़िंदगी
1970 तक कांचा ने पर्वतारोहण से जुड़ा काम जारी रखा लेकिन एक भयानक हिमस्खलन के बाद उनकी पत्नी अंग लखपा शेरपा ने उनसे यह काम छोड़ने की गुजारिश की। इसके बाद उन्होंने एक ट्रेकिंग कंपनी में काम करना शुरू किया जहां वह पर्यटकों को सुरक्षित और कम ऊंचाई वाले रास्तों पर ले जाते थे। वह अक्सर पर्वतों को बचाने और स्थानीय अर्थव्यवस्था पर बात करते थे: "अगर हम पर्वतों को बचाने के लिए पर्यटकों को रोक देंगे तो हमारे पास करने को कुछ नहीं बचेगा, बस आलू उगाएंगे और खाते रहेंगे।"