जिसे विरासत में मिलने वाली थी 40,000 करोड़ की दौलत...वह सारा साम्राज्य ठुकरा कर बन गया भिक्षु

Edited By Updated: 17 Jul, 2024 09:38 AM

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मलयेशिया के तीसरे सबसे धनी व्यक्ति अनंदा कृष्णन के बेटे वेन अजाह्न सिरिपान्यो भिक्षु बनने के लिए अपनी अरबों की संपत्ति और ऐशो-आराम की जिंदगी छोड़ दी। सिरिपान्यो ने 18 साल की उम्र में थाईलैंड की यात्रा के दौरान अस्थायी रूप से भिक्षु बनने का निर्णय...

नेशनल डेस्क:  मलयेशिया के तीसरे सबसे धनी व्यक्ति अनंदा कृष्णन के बेटे वेन अजाह्न सिरिपान्यो भिक्षु बनने के लिए अपनी अरबों की संपत्ति और ऐशो-आराम की जिंदगी छोड़ दी। सिरिपान्यो ने 18 साल की उम्र में थाईलैंड की यात्रा के दौरान अस्थायी रूप से भिक्षु बनने का निर्णय लिया था, लेकिन यह अनुभव स्थायी हो गया। अब वे थाईलैंड-म्यांमार सीमा के पास स्थित डाओ डम मठ के अभिषिक्त प्रमुख हैं।

सिरिपान्यो की मां थाई राजघराने से संबंधित हैं। इसके अलावा वेन अजाह्न सिरिपान्यो ने अपनी शिक्षा यूके में पूरी की और आठ भाषाएं बोलते हैं।  उनके पिता आनंद कृष्णन टैलीकॉम दिग्गज रहे हैं। उनकी संपत्ति लगभग 40,000 करोड़ रुपए है। सिरिपान्यो को अपने पिता के विशाल कारोबारी साम्राज्य का उत्तराधिकारी बनना था। लेकिन, उन्होंने सब कुछ त्याग दिया और सादगी का जीवन चुना। बेटे सिरिपान्यो ने 18 साल की उम्र में संन्यास ले लिया था।

चेन्नई सुपर किंग्स के प्रमोटर रहे हैं आनंद कृष्णन
आनंद कृष्णन को एके के नाम से भी जाना जाता है। टैलीकॉम, मीडिया, तेल और गैस, रियल एस्टेट और सैटेलाइन जैसे कई बड़े बिजनेस है। उनकी कंपनियों में एयरसेल भी शामिल थी। वहीं एयरसेल जो कभी आईपीएल टीम चेन्नई सुपर किंग्स की प्रायोजक थी। - अपनी संपत्ति के कारण कृष्णन मलेशिया के सबसे अमीर व्यक्तियों में से एक हैं। इतना ही नहीं आनंद कृष्णन चेन्नई सुपर किंग्स के प्रमोटर रहे हैं। 

ब्रिटेन में हुआ पालन-पोषण
जिस बेटे को विरासत में सारी दौलत मिलने वाली थी वह दो दशक से भी अधिक समय से सादगी का जीवन जी रहा है। सिरिपान्यो ने उस सारी दौलत का त्याग कर दिया जो उन्हें विरासत में मिलने वाली थी। एक भिक्षु के रूप में वह जंगल में रहने लगे। वह थाईलैंड के दताओ डम मठ के मठाधीश हैं। भिक्षु अपनी मां की ओर से थाई शाही परिवार के वंशज हैं। सिरिपान्यो  का पालन-पोषण उनकी 2 बहनों के साथ ब्रिटेन में हुआ था। 

 रिपोर्ट्स के अनुसार, एक रिट्रीट के दौरान 'मजे के लिए' साधु जीवन अपनाया था। हालांकि, यह अस्थायी प्रयास उनके जीवन में स्थायी बन गया। अपने पिता के करोड़ों के साम्राज्य को चलाने के बजाय सिरिपान्यो ने सादगी का जीवन जीने और भीख मांगने का फैसला किया।

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