‘सोफिया कुरैशी’ और ‘व्योमिका सिंह’ : भारतीय बेटियों की हुंकार

Edited By Updated: 13 May, 2025 05:31 AM

sophia qureshi and vyomika singh  the roar of indian daughters

सोफिया कुरैशी और व्योमिका सिंह। ये दो नाम जिन्हें सेना ने अपनी प्रैस कांफ्रैंसों में बड़ी भूमिका दी। ये दोनों महिलाएं भारतीय सेना में बड़ी अधिकारी हैं। सोफिया के यहां पीढिय़ों से लोग सेना में हैं। उनके पिता ने कहा कि अपनी बेटी पर गर्व है। पाकिस्तान...

सोफिया कुरैशी और व्योमिका सिंह। ये दो नाम जिन्हें सेना ने अपनी प्रैस कांफ्रैंसों में बड़ी भूमिका दी। ये दोनों महिलाएं भारतीय सेना में बड़ी अधिकारी हैं। सोफिया के यहां पीढिय़ों से लोग सेना में हैं। उनके पिता ने कहा कि अपनी बेटी पर गर्व है। पाकिस्तान को नष्ट कर देना चाहिए। व्योमिका के यहां कोई सेना में नहीं था, लेकिन बताया जाता है कि वह बचपन से ही वायु सेना में जाना चाहती थीं। जब महिलाओं को सेना में परमानैंट कमीशन देने की बात आई थी, तो उच्चतम न्यायालय ने भी सोफिया कुरैशी की भूमिका को सराहा था। सोफिया अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी भारतीय सेना की टुकड़ी का नेतृत्व कर चुकी हैं।

आपको याद होगा कि एक समय , भारत में सेना में स्त्रियों को नहीं रखा जाता था। वे अधिक से अधिक डाक्टर, नर्स की भूमिका में होती थीं। तब वे फाइटर प्लेन नहीं उड़ाती थीं। न ही थल सेना में उनकी कोई जगह थी। कोई माने या न माने, जब से नरेंद्र मोदी सत्ता में आए हैं, उन्होंने महिलाओं को रणनीतिक और महत्वपूर्ण भूमिकाएं देने में चाहे वह राजनीतिक हो अथवा सामाजिक, अग्रणी भूमिका निभाई है। उन्होंने भारत की स्त्री शक्ति को हमेशा सैलिब्रेट भी किया है। इसके बदले में महिलाओं ने हमेशा उनकी झोली को वोटों से भरा है। दशकों से संसद में महिला आरक्षण बिल लटका पड़ा था। उसे इस बहाने या उस बहाने कभी चर्चा में नहीं लाया जाता था, लेकिन सरकार के प्रयत्नों से इसे पास कराया जा सका है।

पिछले दिनों अफगानिस्तान का एक वीडियो देख रही थी, जिसमें एक आदमी पाकिस्तान का यह कह कर मजाक उड़ा रहा था कि तुम भारत का क्या कर लोगे। वहां की तो महिलाओं ने ही तुम्हें हरा दिया। हालांकि इस मजाक में यह सोच भी अंतॢनहित है कि महिलाओं के वश का युद्ध मैदान नहीं, चौका-चूल्हा ही है। जबकि वास्तविक रूप में महिलाएं घर भी संभाल सकती हैं, बच्चे भी पाल सकती हैं, उन्हें जन्म भी दे सकती हैं, नौकरी भी कर सकती हैं, अभिनय के क्षेत्र में भी झंडे गाड़ सकती हैं और युद्ध के मोर्च पर भी सफल हो सकती हैं।

हमारे देश में इंदिरा गांधी 1966 में प्रधानमंत्री बनी थीं। जबकि अमरीका जो दुनिया को लोकतंत्र और महिला अधिकारों का पाठ पढ़ाता रहता है, वहां आज तक कोई भी महिला राष्ट्रपति नहीं बनी है बल्कि वोट देने के अधिकार प्राप्त करने तक के लिए वहां महिलाओं को 70 साल तक संघर्ष करना पड़ा था। हमारे यहां तो ऐसा कुछ नहीं करना पड़ा। आजादी के संघर्ष के नायकों ने महिलाओं की शक्ति को बहुत पहले ही पहचान लिया था। 

आज भारत में महिलाओं की तरक्की की रफ्तार बहुत तेज है। जिस बड़े मीडिया हाऊस में इस लेखिका ने जीवन भर काम किया, वहां जब नौकरी शुरू की थी, तब उंगलियों पर गिनने लायक महिलाएं थीं और जब वहां से मुक्त हुई तो विभिन्न विभागों में आधी से अधिक महिलाएं उपस्थित थीं। यह एक मौन क्रांति भी है। जिन देशों में महिला अधिकारों की बहुत वकालत होती है, वहां भी शायद ऐसा नहीं है। आज हर जगह बाजारों में, सड़कों पर, हवाई जहाजों में , रेल में, दफ्तरों में, मीडिया में, महिलाएं ही महिलाएं दिखाई देती हैं। वे बड़ी से बड़ी और छोटी से छोटी भूमिकाओं को अंजाम देती हैं। वे आर्थिक विशेषज्ञ हैं। हैल्थ एक्सपर्ट्स हैं, तमाम बड़े केंद्रों की मुखिया हैं। यह कोई मामूली बात नहीं है। यही हमारी शक्ति भी है। 

बहुत से मोर्चे ऐसे हैं जिन पर महिलाओं के लिए अभी और नीतियां चाहिएं। जैसे कि उनके प्रति होने वाले तरह-तरह के अपराध। उन्हें बहुत-सी जगहों पर शिक्षा से वंचित करना। मासूम कंधों पर छोटे भाई-बहनों की जिम्मेदारी डालना। कम उम्र में विवाह। कम उम्र में मां बनना। बहुत से स्थानों पर पर्याप्त चिकित्सा सुविधाएं न होना। आवागमन के साधनों की कमी। लड़कियों के ड्राप आऊट रेटस। महिलाओं के लिए रोजगार की अधिक व्यवस्था। उनके लिए बनाए गए कानूनों का सही तरीके से इस्तेमाल। कानूनों की जानकारी।

हालांकि इन मसलों पर समाज की सोच बदल रही है। महिलाएं पढ़ें-लिखें, आत्मनिर्भर बनें यह सोच गांव-गांव जा पहुंची है। 2001 की जनगणना में बताया गया था कि लड़कियों को पढ़ाना चाहिए, वे रोजगारशुदा हों, इस बारे में एक आम सहमति बन चली है।  इसीलिए गांवों और कस्बोंं से  लड़कियां बड़े शहरों की तरफ रुख कर रही हैं। यदि उनके आसपास ही शिक्षा और रोजगार की पर्याप्त सुविधाएं हों, तो शहरों की तरफ माइग्रेशन घट सकता है।  

भारत ने इन दोनों महिलाओं को प्रस्तुत करके यह भी दिखाया कि यहां स्त्री-पुरुष में कोई भेद नहीं है। यहां तक कि सेना में भी उनकी प्रमुख भूमिका है। इसके अलावा दुनिया के सामने यह प्रस्तुत करना भी है कि यहां हिंदू -मुसलमान का भी कोई भेद  नहीं है। जैसा कि पाकिस्तान विश्व पटल पर प्रचार करता रहता है। हम सब जानते हैं कि युद्ध कोई नहीं चाहता, लेकिन अगर ऊपर आन ही पड़े तो उससे बचा भी नहीं जा सकता। युद्ध में महिलाएं भी बड़ी भूमिका निभा सकती हैं, इसका प्रमाण सोफिया कुरैशी, व्योमिका सिंह और उन जैसी सैंकड़ों महिलाएं ही हैं।-क्षमा शर्मा
 

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