Edited By jyoti choudhary,Updated: 27 Sep, 2025 04:15 PM

सरकार ने गैर-बासमती चावल के निर्यात को लेकर एक नया नियम लागू किया है। अब इस अनाज के निर्यात के लिए कॉन्ट्रैक्ट का रजिस्ट्रेशन अनिवार्य होने के साथ-साथ 8 रुपए प्रति टन का शुल्क भी देना होगा। इस कदम का उद्देश्य भारतीय चावल को ‘इंडिया ब्रांड’ के रूप...
बिजनेस डेस्कः सरकार ने गैर-बासमती चावल के निर्यात को लेकर एक नया नियम लागू किया है। अब इस अनाज के निर्यात के लिए कॉन्ट्रैक्ट का रजिस्ट्रेशन अनिवार्य होने के साथ-साथ 8 रुपए प्रति टन का शुल्क भी देना होगा। इस कदम का उद्देश्य भारतीय चावल को ‘इंडिया ब्रांड’ के रूप में वैश्विक स्तर पर पहचान दिलाना है।
अभी तक विदेशों में जब स्थानीय आयातक भारतीय चावल को पैक करते थे, तो उसकी भारतीय पहचान कम हो जाती थी। सरकार का मानना है कि यह शुल्क और रजिस्ट्रेशन की व्यवस्था ब्रांड वैल्यू बढ़ाने में मदद करेगी।
हालांकि बासमती चावल पर फीस बढ़ाने को लेकर पहले इंडस्ट्री में मतभेद रहे थे लेकिन गैर-बासमती चावल के तीनों प्रमुख निर्यातक संघों ने इस नए कदम का समर्थन किया है। द राइस एक्सपोर्टर्स एसोसिएशन, छत्तीसगढ़ के अध्यक्ष मुकेश जैन ने कहा कि यह निर्णय सभी स्टेकहोल्डर्स की सहमति से लिया गया है और उम्मीद है कि इसके अच्छे परिणाम सामने आएंगे।
क्या होगा फायदा?
अब किसी भी शिपमेंट से पहले वाणिज्य मंत्रालय के तहत आने वाले एपीडा (APEDA) के साथ अनुबंध का पंजीकरण अनिवार्य होगा। इस कदम से सरकार को निर्यात पर बेहतर नियंत्रण मिलेगा और निर्यात नीति में पारदर्शिता और एकरूपता आएगी। हालांकि, इसका व्यापार पर तुरंत कोई बड़ा असर नहीं पड़ेगा, केवल निर्यातकों की लागत थोड़ी बढ़ जाएगी।
इंडियन राइस एक्सपोर्टर्स फेडरेशन (IREF) ने इस फैसले का स्वागत किया है और कहा है कि इससे निर्यात प्रक्रिया में स्पष्टता आएगी। भारत पहले से ही दुनिया का सबसे बड़ा चावल निर्यातक देश है, और जानकारों का मानना है कि इस कदम से बासमती और गैर-बासमती दोनों तरह के चावल के निर्यात में संतुलन बनाने में मदद मिलेगी।