Edited By jyoti choudhary,Updated: 23 May, 2025 12:17 PM

भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने मार्च 2025 में विदेशी मुद्रा बाज़ार में भारी मात्रा में डॉलर की खरीदारी की, जिससे इसकी शुद्ध खरीद चार वर्षों के उच्चतम स्तर पर पहुंच गई। यह कदम बैंकिंग प्रणाली में तरलता (Liquidity) बढ़ाने और रुपए को मजबूत बनाए रखने की...
बिजनेस डेस्कः भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने मार्च 2025 में विदेशी मुद्रा बाज़ार में भारी मात्रा में डॉलर की खरीदारी की, जिससे इसकी शुद्ध खरीद चार वर्षों के उच्चतम स्तर पर पहुंच गई। यह कदम बैंकिंग प्रणाली में तरलता (Liquidity) बढ़ाने और रुपए को मजबूत बनाए रखने की रणनीति का हिस्सा है।
25 अरब डॉलर के फॉरेक्स स्वैप
जनवरी से मार्च तिमाही के दौरान, RBI ने तीन बार डॉलर-रुपया खरीद-बिक्री फॉरेक्स स्वैप किए, जिनकी कुल राशि 25 बिलियन डॉलर रही। इनमें से दो बड़े स्वैप, हर एक 10 बिलियन डॉलर के मार्च महीने में पूरे किए गए। इस तरह के स्वैप में RBI रुपए देकर डॉलर खरीदता है, जिससे रुपए की तरलता बढ़ती है।
मार्च में 14.4 अरब डॉलर की शुद्ध खरीद
RBI के मासिक बुलेटिन के अनुसार, मार्च में केंद्रीय बैंक ने कुल 41.5 बिलियन डॉलर खरीदे और 27.2 बिलियन डॉलर बेचे, जिससे शुद्ध खरीद 14.4 बिलियन डॉलर रही। यह जून 2021 के बाद की सबसे बड़ी मासिक शुद्ध खरीद है। जबकि फरवरी में RBI ने 1.6 बिलियन डॉलर की शुद्ध बिक्री की थी। मार्च के दौरान, भारतीय रुपया डॉलर के मुकाबले 2.3% मजबूत हुआ, जो इस हस्तक्षेप की प्रभावशीलता को दर्शाता है।
फॉरवर्ड बुक में गिरावट
मार्च के अंत तक RBI की फॉरवर्ड सेल पोजिशन घटकर 84.4 बिलियन डॉलर रह गई, जो फरवरी में 88.7 बिलियन डॉलर थी। यह गिरावट दर्शाती है कि RBI को अब इन शॉर्ट डॉलर पोजिशन को या तो रोल ओवर करना होगा या न्यूट्रलाइज, ताकि सिस्टम की तरलता पर विपरीत असर न हो।
क्या आगे डॉलर बेचना पड़ सकता है?
IDFC फर्स्ट बैंक की प्रमुख अर्थशास्त्री गौरा सेन गुप्ता के अनुसार, यदि RBI ने मार्च में 20 बिलियन डॉलर का स्वैप नहीं किया होता, तो शुद्ध आंकड़ा नकारात्मक हो सकता था। उन्होंने कहा कि RBI की रणनीति सीधे बैंकिंग सिस्टम की लिक्विडिटी को प्रभावित करती है और रेपो दर में कटौती का असर पहुंचाने के लिए RBI फिलहाल आगे कोई बड़ा बदलाव नहीं करेगा।
विशेषज्ञों का मानना है कि जब ये फॉरवर्ड डॉलर डील परिपक्व होंगी, तो RBI को डॉलर बेचने पड़ सकते हैं, जिससे रुपए की तरलता घटेगी और विदेशी मुद्रा भंडार पर भी असर पड़ सकता है।