₹10, ₹20, ₹50 के नोटों की भारी किल्लत, लोगों को हो रही दिक्कत, AIRBEA ने उठाया मुद्दा

Edited By Updated: 15 Dec, 2025 05:28 PM

severe shortage of 10 20 and 50 notes causing difficulties for people

अखिल भारतीय रिजर्व बैंक कर्मचारी संघ (AIRBEA) ने छोटे मूल्य वाले नोटों की देशभर में 'गंभीर किल्लत' पर चिंता जताते हुए सोमवार को कहा कि इससे आम लोगों को बहुत मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है और छोटे कारोबार भी प्रभावित हो रहे हैं। एआईआरबीईए ने...

बिजनेस डेस्कः अखिल भारतीय रिजर्व बैंक कर्मचारी संघ (AIRBEA) ने छोटे मूल्य वाले नोटों की देशभर में 'गंभीर किल्लत' पर चिंता जताते हुए सोमवार को कहा कि इससे आम लोगों को बहुत मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है और छोटे कारोबार भी प्रभावित हो रहे हैं। एआईआरबीईए ने भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) को भेजे एक पत्र में दावा किया कि 10, 20 और 50 रुपए के नोट की उपलब्धता देश के कई हिस्सों, खासकर कस्बों एवं ग्रामीण इलाकों में लगभग नगण्य है। हालांकि इन इलाकों में 100, 200 और 500 रुपये के नोट आसानी से मिल रहे हैं। 

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कर्मचारी संघ ने आरबीआई के मुद्रा प्रबंधन विभाग के प्रभारी डिप्टी गवर्नर टी. रबी शंकर को लिखे पत्र में कहा कि एटीएम से निकलने वाले अधिकतर नोट उच्च मूल्य के ही होते हैं। इसके अलावा बैंकों की शाखाएं भी ग्राहकों को छोटे मूल्य के नोट नहीं उपलब्ध करा पा रही हैं। रिजर्व बैंक कर्मचारियों के संगठन ने कहा कि ऐसी स्थिति में लोगों को स्थानीय परिवहन, किराने की खरीद और अन्य दैनिक जरूरतों के लिए नकद में लेनदेन कर पाना खासा मुश्किल हो गया है। एआईआरबीईए ने कहा कि डिजिटल भुगतान को बढ़ावा दिए जाने के बावजूद चलन में मौजूद कुल मुद्रा लगातार बढ़ रही है। 

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कर्मचारी संघ के मुताबिक, डिजिटल भुगतान रोजमर्रा की जरूरतों के लिए नकद पर निर्भर बड़ी आबादी का पूरी तरह विकल्प नहीं बन सकता है। इसके अलावा छोटे मूल्य वाले नोटों की जगह सिक्कों के उपयोग की कोशिशें भी पर्याप्त उपलब्धता न होने के कारण सफल नहीं हो पाई हैं। एआईआरबीईए ने इस मामले में केंद्रीय बैंक से तत्काल हस्तक्षेप की मांग करते हुए कहा कि वाणिज्यिक बैंकों और आरबीआई काउंटरों के जरिये छोटे मूल्य के नोटों का पर्याप्त प्रसार सुनिश्चित किया जाए। इसके अलावा, सिक्कों के व्यापक प्रचलन के लिए ‘कॉइन मेला' दोबारा शुरू करने का सुझाव भी दिया गया है। सिक्कों के इस मेले को पंचायतों, सहकारी संस्थाओं, क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों और स्वयं सहायता समूहों के साथ मिलकर आयोजित किया जा सकता है।

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