Edited By Jyoti,Updated: 23 Oct, 2021 04:44 PM

संस्कार हमारे जीवन में अदृश्य रूप से निर्माण का कार्य करते हैं। संस्कार ही व्यक्ति एवं समाज में चेतना लाते हैं। संस्कारों से सम्पन्न मनुष्य हीरे की भांति अपने मूल्य को निर्धारित करता है।
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संस्कार हमारे जीवन में अदृश्य रूप से निर्माण का कार्य करते हैं। संस्कार ही व्यक्ति एवं समाज में चेतना लाते हैं। संस्कारों से सम्पन्न मनुष्य हीरे की भांति अपने मूल्य को निर्धारित करता है। संस्कारित व्यक्ति ही चरमोत्कर्ष तक पहुंचने की क्षमता रखता है। ऐसा व्यक्ति ही कुसंस्कारों से समाज का संहारक बन सकता है।
इस परिपेक्ष्य में जो 16 संस्कार हमारी संस्कृति में निर्धारित किए गए हैं वे ये हैं : 1. गर्भाधान, 2. पुंसवन, 3. सीमन्तोनयन, 4. जातकर्म, 5. नामकरण, 6. निष्क्रमण, 7. अन्नप्राशन, 8. चूड़ाकर्म, 9. कर्णवेध, 10. विद्यारम्भ, 11. उपनयन, 12. वेदारम्भ, 13. केशांत अथवा गोदान, 14. समावर्तन, 15. विवाह, 16. अंत्येष्टि संस्कार।
‘विष्णु सहस्रनाम’ का तात्पर्य
कइयों के मन में यह प्रश्न उठता है कि विष्णु सहस्रनाम में कई नाम ऐसे हैं जिनके अर्थ समझ नहीं आते। वे किस प्रकार से भगवान विष्णु के नाम हैं : जैसे मरीचि, दमन, हंस, सुपर्ण, भजगोत्तम, हिरण्यनाभ, सुतपा, पद्मनाभ, प्रजापति, संधाता आदि।
इसका उत्तर है कि मरीचि का अर्थ होता है तेजस्वियों से भी परम तेज स्वरूप। दमन का अर्थ है प्रमाद करने वाली प्रजा को यम आदि के रूप में दमन करने वाले। हंस का अर्थ है पितामह ब्रह्मा को वेद का ज्ञान कराने के लिए हंस रूप धारण करने वाले। सुपर्ण अर्थात सुंदर पंखवाले गरुड़ स्वरूप। भजगोत्तम का अर्थ होता है सर्पों में श्रेष्ठ शेषनाग के रूप। हिरण्यनाभ का अर्थ है हितकारी और रमणीय नाभि वाले। सुपता का अर्थ है बदरिकाश्रम में नर नारायण रूप से सुंदर तप करने वाले। पद्मनाभ अर्थात कमल के समान सुंदर नाभि वाले, प्रजापति जैसा कि सर्वविदित है सम्पूर्ण प्रजाओं के पालनकत्र्ता। इसी प्रकार संधाता का अर्थ हुआ पुरुषों को उनके कर्मों के फलों से संयुक्त करने वाले।
इस प्रकार विष्णु सहस्रनाम में विष्णु भगवान के एक हजार नाम उनके अर्थ के अनुरूप हैं।