84 lakh yonia: जानें, चौरासी लाख योनियों का विश्वास सच या झूठ ?

Edited By Updated: 19 May, 2024 09:09 AM

84 lakh yonia

योनि या जन्म के शब्द को एक रूपक के रूप में प्रयुक्त करते हैं। यदि गौर से देखा जाए तो बहुत से लोग ‘मानव योनि’ में होते हुए भी हमें किसी जानवर, परिंदे अथवा निर्जीव वस्तु की याद दिलाते हैं।

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84 lakh yonia: योनि या जन्म के शब्द को एक रूपक के रूप में प्रयुक्त करते हैं। यदि गौर से देखा जाए तो बहुत से लोग ‘मानव योनि’ में होते हुए भी हमें किसी जानवर, परिंदे अथवा निर्जीव वस्तु की याद दिलाते हैं।

‘‘उदाहरणार्थ ?’’ किसी ने प्रश्न किया।

‘‘उदाहरणार्थ वे हजारों लोग जो बेहद मजबूर, गरीब तथा निस्सहाय हैं, जिनकी कोई बुक्कत नहीं, जिन्हें समाज या राजनीति में कोई नहीं पूछता, कीड़ों-मकोड़ों की भांति हैं इसलिए कहा जा सकता है कि उन्हें कीड़ों या मकौड़ों की योनि मिली है। वे लोग जो सदैव जलते रहते हैं- कभी ईर्ष्या की आग में, कभी क्रोध की आग में, उन्हें ईंधन या कोयले की योनि मिली है। लकड़ी की भांति जल कर वे कोयला बन जाते हैं और कोयले की भांति जल कर राख।’’

‘‘किसी व्यक्ति के वे दोस्त जिनकी उसने सहायता की थी परंतु जिन्होंने अपना मतलब निकल जाने के बाद अपनी आंखें फेर ली थीं, आदमी होते हुए भी तोते हैं क्योंकि वे तोता चश्म सिद्ध हुए हैं। इसी प्रकार जो क्लर्क हैं, किसी प्राइमरी स्कूल में पढ़ाते हैं या डाकघर कर्मचारी हैं, उन्हें कोल्हू के बैल की योनि मिली है। सुबह से शाम तक सख्त मेहनत करना उनकी दिनचर्या है तथा आराम उनकी किस्मत में नहीं। यदि इस श्रेणी में समाचारपत्रों के संपादकों को तथा अन्य पत्रकारों को भी शामिल कर लिया जाए तो अनुचित नहीं होगा।’’

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‘‘कम्युनिस्ट देशों में जिन कैदियों को पत्थर ढोने तथा पत्थर तोड़ने का दंड दिया जाता है। वे आदमी होते हुए भी गधे या खच्चर हैं जिनसे सारा दिन सख्त मेहनत का काम लिया जाता है परंतु जिनके आगे शाम को घटिया किस्म की घास या चारा डाल दिया जाता है।’’

‘‘जो आदमी मित्र होने के बावजूद आपको क्षति पहुंचाता है, वह आदमी की सूरत में आस्तीन का सांप है क्योंकि उस पर यह मिसरा बिल्कुल सच साबित होता है : बनाया था जिसे अपना, वह मार आसतीं निकला !’’

‘‘और फिर यह तो हर व्यक्ति जानता है कि जो व्यक्ति मूर्ख होता है उसे हम उल्लू अथवा खर-दिमाग कहते हैं। जो अव्वल दर्जे का मक्कार होता है वह लूम्बड़ कहलाता है और जो हर समय भौंकता रहता है और काटने को दौड़ता है उसे कुत्ता कहा जाता है। स्पष्टत: वे इंसान हैं लेकिन वास्तव में जानवर हैं।’’

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‘‘भर्तृहरि ने कहा है कि जो व्यक्ति साहित्य, संगीत और कला में रुचि नहीं लेता, वह सींग तथा दुम के बिना जानवर है। दूसरे शब्दों में वैसे तो उसे आदमी समझा जाता है परंतु वह जानवर की योनि भोग रहा है।’’

‘‘जो व्यक्ति हमेशा दूसरों का खून पीता है, उसे जोंक की योनि मिलती है, जो लोग हमेशा एक जगह रहते हैं तथा किसी कीमत पर भी उस स्थान को छोड़ने के लिए तैयार नहीं होते, उन्हें दरख्तों की योनि मिलती है। जो व्यक्ति हद से ज्यादा निर्मम सिद्ध होते हैं, वे इंसानों की शक्ल में भेड़िए तथा चीते हैं। जो हमेशा मक्कारी तथा चालाकी से काम लेते हैं, वे लोमड़ी हैं। जो हमेशा अंधाधुंध दूसरों की नकल करते हैं, उन्हें भेड़ें कहा जा सकता है। भारी-भरकम व्यक्ति हाथी और भारी-भरकम महिलाएं हथनियां हैं। फिजूल बातें बना-बना कर दूसरों का दिमाग चाटने वाले कौए हैं तो बक-बक या टर-टर करने वाले मेंढक।’’

मतलब यह है कि जिस व्यक्ति में इंसानियत नहीं, वह इंसान होते हुए भी जानवर हैं। कहने को तो हम सब आदमी हैं लेकिन आदमियों की भी किस्में होती हैं। बकौल हाली :
आदमी जानवर, फरिश्ता, खुदा,
आदमी की हैं सैंकड़ों किस्में।
इस दृष्टिकोण से यदि ‘योनियों’ के विश्वास को देखा जाए तो यह शत-प्रतिशत सच मालूम होता है।

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