Bhishma Pitamah Niti : स्त्रियों के बारे में कही गई 3 बातें, जो हर व्यक्ति को जाननी चाहिए

Edited By Updated: 30 Dec, 2025 01:41 PM

bhishma pitamah niti

Bhishma Pitamah Niti : महाभारत के अनुशासन पर्व में जब भीष्म पितामह शरशय्या पर लेटे हुए थे, तब उन्होंने युधिष्ठिर को धर्म, राजनीति और समाज के संचालन के लिए जो उपदेश दिए, उन्हें भीष्म नीति के नाम से जाना जाता है।

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Bhishma Pitamah Niti : महाभारत के अनुशासन पर्व में जब भीष्म पितामह शरशय्या पर लेटे हुए थे, तब उन्होंने युधिष्ठिर को धर्म, राजनीति और समाज के संचालन के लिए जो उपदेश दिए, उन्हें भीष्म नीति के नाम से जाना जाता है। भीष्म का मानना था कि किसी भी समाज की उन्नति और पतन वहां की स्त्रियों की स्थिति पर निर्भर करता है। स्त्रियों के सम्मान और अधिकारों को लेकर भीष्म ने तीन ऐसी गूढ़ बातें बताई थीं, जो आज के समय में भी उतनी ही प्रासंगिक हैं। आइए इन तीन महत्वपूर्ण सिद्धांतों को विस्तार से समझते हैं:

Bhishma Pitamah Niti

जहां स्त्रियों का सम्मान होता है, वहां देवता वास करते हैं
भीष्म पितामह ने युधिष्ठिर से कहा था कि जिस कुल या परिवार में स्त्रियों का आदर होता है, वहां देवता प्रसन्न रहते हैं और सुख-समृद्धि का वास होता है। इसके विपरीत, जिस घर में स्त्रियों का निरादर होता है, वहां किए गए सभी शुभ कार्य और दान-पुण्य निष्फल हो जाते हैं। भीष्म नीति के अनुसार, यदि कोई स्त्री अपमानित होकर रोती है या अपने परिवार को शाप देती है, तो वह परिवार समूल नष्ट हो जाता है। भीष्म ने स्पष्ट किया था कि स्त्रियों की आंखों से निकलने वाला आंसू किसी भी साम्राज्य को भस्म करने की शक्ति रखता है। उन्होंने स्त्रियों को घर की 'लक्ष्मी' माना था। उनका मानना था कि स्त्री के प्रसन्न रहने से ही घर में धन-धान्य की वृद्धि होती है। यदि घर की लक्ष्मी दुखी है, तो वहां दरिद्रता और कलह का प्रवेश निश्चित है।

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स्त्रियों की प्रसन्नता और परिवार की रक्षा
भीष्म नीति की दूसरी महत्वपूर्ण बात स्त्रियों की मानसिक और भावनात्मक स्थिति से जुड़ी है। भीष्म ने कहा था कि स्त्रियों को हमेशा प्रसन्न रखना चाहिए, क्योंकि उनकी प्रसन्नता से ही वंश की वृद्धि और रक्षा होती है। भीष्म का तर्क था कि एक स्त्री ही संतान को संस्कार देती है। यदि वह स्वयं मानसिक रूप से प्रताड़ित या दुखी होगी, तो आने वाली पीढ़ी कभी भी सुदृढ़ और संस्कारी नहीं हो सकती। भीष्म ने इस बात पर जोर दिया था कि पिता को अपनी पुत्री को भी पुत्र के समान ही स्नेह और शिक्षा देनी चाहिए। उन्होंने युधिष्ठिर को समझाया कि स्त्रियों का अधिकार केवल घर की चहारदीवारी तक सीमित नहीं होना चाहिए, बल्कि उनके निर्णय लेने की क्षमता का भी सम्मान होना चाहिए।

कन्या का दान और विवाह संबंधी नियम
तीसरी महत्वपूर्ण बात जो भीष्म ने बताई, वह विवाह और कन्या के अधिकारों से संबंधित थी। भीष्म नीति के अनुसार, विवाह के समय कन्या की सहमति और उसकी गरिमा का ध्यान रखना अनिवार्य है।

भीष्म ने इसे अधर्म माना था कि किसी कन्या का विवाह उसकी इच्छा के विरुद्ध या किसी अयोग्य व्यक्ति से किया जाए। उन्होंने कहा था कि बलपूर्वक या लोभ में आकर किया गया कन्यादान पुण्य नहीं बल्कि पाप का कारण बनता है। भीष्म का मानना था कि विवाह केवल दो शरीरों का नहीं, बल्कि दो आत्माओं और दो परिवारों का मिलन है। इसमें स्त्री की भूमिका सबसे महत्वपूर्ण होती है क्योंकि वह दो कुलों को जोड़ती है। भीष्म ने युधिष्ठिर को परामर्श दिया कि स्त्रियों को समय-समय पर वस्त्राभूषण और मधुर वचनों से सम्मानित करना चाहिए।  

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