शास्त्रों का कहना है: तिलक लगाने वाले को कभी छू नहीं पाती ये बलाएं

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 18 Oct, 2019 07:36 AM

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मस्तक पर तिलक लगाना शुभ और मंगलकारी होता है। मस्तिष्क के मध्य ललाट (भौंहों के बीच) में जिस स्थान पर तिलक (टीका) लगाया जाता है वह भाग आज्ञा चक्र है। शास्त्रों का मत है कि पीनियल ग्रंथि को उद्दीप्त किया जाता है तो

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ

मस्तक पर तिलक लगाना शुभ और मंगलकारी होता है। मस्तिष्क के मध्य ललाट (भौंहों के बीच) में जिस स्थान पर तिलक (टीका) लगाया जाता है वह भाग आज्ञा चक्र है। शास्त्रों का मत है कि पीनियल ग्रंथि को उद्दीप्त किया जाता है तो मस्तिष्क के अंदर एक प्रकाश की अनुभूति होती है। ऋषि-मुनियों ने इसे कहा है कि पीनियल ग्रंथि के उद्दीपन से आज्ञाचक्र का उद्दीपन होगा।आज्ञाचक्र पर ध्यान केंद्रित करने पर भी साधक को पूर्ण शक्ति का आभास होने लगता है। इसे ‘चेतना’ केंद्र भी कहते हैं। सम्पूर्ण ज्ञान तथा चेतना का संचालक इसी ग्रंथि से होता है। ‘आज्ञाचक्र’ ही तृतीय नेत्र है। इसे दिव्य नेत्र से संबोधित किया जाता है। तिलक लगाने से आज्ञाचक्र जागृत होता है तथा मानसिकता से धार्मिकता में परिवर्तित हो जाता है।

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पुराणों के अनुसार हम मस्तिष्क से आवश्यकता से अधिक काम लेते हैं जिससे ज्ञान तंतुओं के विचारक केंद्र भृकुटि और ललाट के मध्य भाग में पीड़ा उत्पन्न हो जाती है जहां तिलक लगाते हैं। वह ज्ञान-तंतुओं को शीतलता प्रदान करता है। जो नित्य प्रात:काल स्नान के पश्चात चंदन का तिलक लगता है, उसे सिर दर्द नहीं होता।

तंत्र शास्त्र का मत है कि मस्तक में इष्ट देवता का स्वरूप है। हमारे इष्ट देव की स्मृति हमें सदैव बनी रहती है। इसी कारण से मस्तक में तिलक प्रतिदिन प्रात:काल स्नान के बाद लगाना चाहिए। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार काल पुरुष की गणना प्रथम राशि मेष से की गई है। इस राशि वाले लाल रंग का तिलक लगाएं। महर्षि पराशर के अनुसार काल पुरुष के मस्तक वाले स्थान में मेष राशि स्थित है, जिसका स्वामी मंगल ग्रह सिंदूरी लाल रंग का अधिष्ठाता है। लाल रंग राशि पथ की मेष राशि का ही रंग है। इसलिए इस रंग का तिलक मेष राशि वाले स्थान (मस्तक) पर लगाया जाता है। शास्त्रों का कहना है कि जो तिलक नहीं लगाता वह धर्म का अपमान सदैव करता है तथा देवतागण भी नाराज हो जाते हैं। 

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आयुर्वेद का सिद्धांत है कि कुमकुम त्वचा शोधन के लिए सर्वोत्तम औषधि है। इसका तिलक लगाने से मस्तिष्क तंतुओं में क्षीणता नहीं आती।

प्रयोग पारिजात के अनुसार तिलक के बिना सत्कर्म पूर्ण नहीं हो पाता और पूर्ण फल भी नहीं मिल पाता है। ब्राह्मणपुराण का मत है कि तिलक बैठकर लगाना चाहिए। अपनी-अपनी इच्छानुसार तिलक लगाएं। 

भविष्यपुराण का कहना है कि भगवान पर चढ़ाने से बचे हुए चंदन को ही लगाना चाहिए। तभी फल और लाभ प्राप्त हो सकता है।

देवीभागवत के अनुसार दोपहर से पहले जल मिलाकर भस्म या चंदन लगाना चाहिए। दोपहर के बाद जल न मिलाएं। शाम को सूखा ही चंदन का तिलक लगाना चाहिए।

क्रियासार का मत है कि भगवान का स्मरण करते हुए ललाट ग्रीवा, भुजाओं और हृदय में चंदन (तिलक) लगाएं।

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पद्यपुराण के मतानुसार-ब्राह्मणों को छ: अंगुल का तिलक लगाना चाहिए। क्षत्रियों को चार अंगुल, वैश्यों को दो अंगुल और अन्यों को एक ही अंगुल का तिलक लगाना चाहिए। (दे.भा.11/15/23) में भी चंदन लगाने का विधान है।

पुराणों के अनुसार-तिलक देवताओं का स्वरूप है। इसे लगाने से किसी भी प्रकार भय, कष्ट और रोग आदि नहीं होता है। 

रामचरितमानस के अनुसार-मां जानकी जी ने अपने मांग में सिंदूर लगाकर भगवान श्री रामचंद्र जी की लंबी उम्र की कामना की थी।
तिलक लगाने में सहायक हाथ की उंगलियों का भी विभिन्न प्रकार का महत्व एवं लाभ है-
अनामिका उंगली से तिलक या चंदन लगाने से धन वैभव, सुख-शांति सदैव मिलती है।

मध्यमा उंगली द्वारा तिलक लगाने से मनुष्य को आयु वृद्धि, ऐश्वर्य तथा शक्ति प्रदान करती है। 

तर्जनी उंगली से तिलक लगाने से मोक्ष और सम्मान प्राप्त होता है।

अंगूठे से तिलक लगाने से ख्याति और आरोग्य प्राप्त होता है। राजतिलक और विजय तिलक हमेशा अंगूठे से ही करने की परंपरा है। 

इससे सम्मान, दृढ़ता, तेजस्व और निष्ठा-प्रतिष्ठा सदैव मिलती है। 

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धार्मिक कर्मकांड, मांगलिक कार्यों और पूजा में तिलक लगाया जाता है। किसी भी पूजा-पाठ, यज्ञ अनुष्ठान आदि का शुभारंभ श्री गणेश से होता है। उसी प्रकार सबसे पहले बिना तिलक धारण किए हुए कोई भी पूजा और मांगलिक कार्य आरंभ नहीं होता है। धार्मिक मान्यता के अनुसार सूने मस्तक को अशुभ और असुरक्षित माना जाता है। इसलिए चंदन, कुमकुम, रोली, सिंदूर और भस्म का तिलक लगाकर उसको शुद्ध किया जाता है। मस्तक पर तिलक लगाना मंगलमयी और शुभकारी होता है। तिलक सात्विकता का सौंदर्य और प्रतीक है।    

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