सृष्टिकर्ता ब्रह्मा के एक सिर का विनाश कैसे हुआ जानने के लिए पढ़ें ये कथा

Edited By Updated: 15 Aug, 2017 02:15 PM

brahma ji religious story

शिव पुराण के अनुसार सृष्टि के प्रारंभ में ब्रह्मा व विष्णु में श्रेष्टता को लेकर विवाद हो गया। दोनों स्वयं को सबसे बड़ा सिद्ध करना चाहते थे। दोनों में से कौन अधिक बड़ा है इस बात पर बहस छिड गई।

शिव पुराण के अनुसार सृष्टि के प्रारंभ में ब्रह्मा व विष्णु में श्रेष्टता को लेकर विवाद हो गया। दोनों स्वयं को सबसे बड़ा सिद्ध करना चाहते थे। दोनों में से कौन अधिक बड़ा है इस बात पर बहस छिड गई। विवाद का फैसला करने के लिए परमेश्वर को साक्षी बनाया गया । उसी समय परमेश्वर शिव की माया से ज्योतिर्लिंग प्रकट हुआ अतः आकाशवाणी हुई कि ब्रह्मा व विष्णु में से जो भी ज्योतिर्लिंग का आदि अंत बता देगा वही बड़ा कहलाएगा।


ब्रह्मा ज्योतिर्लिंग को पकड़कर आदि का पता करने चल पड़े व विष्णु भी ज्योतिर्लिंग को पकड़कर अंत का पता करने चल पड़े । अत: दोनों विपरीत दिशा में शिवलिंग का छोर ढूढंने निकले । अत्यधित भ्रमण के उपरांत छोर न मिलने के कारण जब ज्योतिर्लिंग का आदि और अंत का पता नहीं चल सका। तब भगवान विष्णु लौट आए। ब्रह्मदेव भी सफल नहीं हुए थे । भगवान विष्णु ने कहा कि, नहीं मैं ज्योतिर्लिंग का अंत नहीं जान पाया हूं । तभी ब्रह्मदेव ने देखा कि केतकी फूल भी उनके साथ नीचे आ रहा है । ब्रह्मा ने केतकी के फूल को बहला फुसलाकर झूठ बोलने हेतु तैयार कर लिया और शिव-शंकर के पास पहुंच गए। ब्रह्मा ने कहा कि मुझे ज्योतिर्लिंग की उत्त्पत्ति का पता चल गया है । ब्रह्मा ने अपनी बात को सच साबित करने हेतु केतकी के फूल से गवाही दिलवाई। 


परंतु शिव-शंकर ब्रह्मदेव के झूठ को जान गए व ब्रह्मा का पांचवा सिर काट दिया । ब्रह्मा पंचमुख से चार मुख वाले हो गए । ब्रह्मा व विष्णु ने परमेश्वर शिव की स्तुति की, तब शिव-शंकर ने कहा कि "मैं ही सृष्टि का कारण, उत्पत्तिकर्ता और स्वामी हूँ । मैंने ही तुम दोनों को उत्पन्न किया है । केतकी अर्थात् केवड़ा के फूल ने झूठ बोला था तथा ब्रह्मदेव के झूठ में साथ दिया था अतः शिव ने दंडस्वरुप केतकी के फूल को अपनी पूजा से वर्जित कर दिया। अतः शिव पूजन में कभी केतकी का पुष्प नहीं चढ़ाया जाता।

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