Captain Gurbachan Singh Salaria Martyrdom Day: भारत मां का जांबाज लाल शहीद हो चुका था...

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 05 Dec, 2022 10:24 AM

captain gurbachan singh

भारतीय सेना विश्व की सबसे बेहतर सेनाओं में से एक है जिसके बहादुर और समर्पित जवानों ने देश पर विदेशी हमलों के साथ-साथ अन्य देशों में आए संकट के समय शांति सेना में शामिल होकर हर प्रकार की चुनौतियों का

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Captain Gurbachan Singh Salaria Martyrdom Day: भारतीय सेना विश्व की सबसे बेहतर सेनाओं में से एक है जिसके बहादुर और समर्पित जवानों ने देश पर विदेशी हमलों के साथ-साथ अन्य देशों में आए संकट के समय शांति सेना में शामिल होकर हर प्रकार की चुनौतियों का सामना करते हुए अपनी जान पर खेलते हुए दुश्मनों के छक्के छुड़ा दिए। कैप्टन गुरबचन सिंह सलारिया भी ऐसे ही एक बहादुर सिपाही थे।  29 नवम्बर, 1935 को शकरगढ़ (अब पाकिस्तान में) पंजाब के जनवल गांव में जन्मे गुरबचन के पिता मुंशी राम और माता धन देवी थीं। पिता ब्रिटिश भारतीय सेना में थे और बचपन से ही सेना की कहानियां सुनने वाले गुरबचन को कम उम्र में ही सेना में शामिल होने की प्रेरणा मिली।

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1947 में भारत विभाजन के परिणामस्वरूप उनका परिवार पंजाब के भारतीय भाग में गुरदासपुर जिले के जंगल गांव में बस गया। स्कूली पढ़ाई के बाद वह बेंगलूर में किंग जॉर्ज रॉयल मिलिट्री कॉलेज में भर्ती हुए और भारतीय सैन्य अकादमी से ट्रेनिंग लेने के बाद गोरखा राइफल्स में नियुक्त हुए। 

जून 1960 में कांगो गणराज्य बैल्जियम के शासन से आजाद हुआ तो वहां सेना में विद्रोह हो गया। कांगो सरकार ने संयुक्त राष्ट्र से मदद मांगी। शांति मिशन में कई देशों की सेनाएं शामिल थीं। मार्च से लेकर जून 1961 में ब्रिगेडियर के.ए.एस. राजा के नेतृत्व में 99वीं इन्फैन्ट्री ब्रिगेड के 3000 जवानों के साथ कैप्टन सलारिया भी कांगो पहुंच गए। 

5 दिसम्बर, 1961 को शांति मिशन के तहत सलारिया की बटालियन को 150 सशस्त्र पृथकतावादियों द्वारा एलिजाबेविले हवाई अड्डे का रोका गया मार्ग खोलने का कार्य सौंपा गया। उनकी रॉकेट लांचर टीम ने दुश्मन के बख्तरबंद वाहनों पर हमला किया लेकिन इन पर स्वचालित हथियारों से गोलाबारी शुरू हो गई। 

कैप्टन सलारिया और साथियों ने दुश्मनों पर संगीनों, खुखरी और हथगोलों से आक्रमण कर 40 दुश्मनों को मार डाला। इस दौरान विद्रोहियों की फायरिंग से दो गोलियां सलारिया के गर्दन को चीर गईं। वह गम्भीर रूप से जख्मी होते हुए भी दुश्मनों से लड़ते रहे। अंत में विजय तो हासिल हुई लेकिन भारत मां का एक जांबाज लाल शहीद हो चुका था। असाधारण नेतृत्व और अदम्य साहस के लिए 1962 में उन्हें मरणोपरांत सेना के उच्च कोटि की शूरवीरता एवं बलिदान के लिए प्रदान किए जाने वाले सबसे बड़े सम्मान परमवीर चक्र से सम्मानित किया।  

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