Chaitra Navratri 2020: मां ब्रह्मचारिणी की कृपा से पाएं विजय का वरदान

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 26 Mar, 2020 08:38 AM

chaitra navratri second day dedicated to maa brahmacharini

दधाना करपद्माभ्यामक्षमालाकमण्डलू। देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा।। मां दुर्गा की नव-शक्तियों का दूसरा स्वरूप है ब्रह्मचारिणी। यहां ‘ब्रह्म’ शब्द का अर्थ तपस्या है। ब्रह्मचारिणी अर्थात तप की चारिणी-तप का आचरण करने वाली। कहा भी है,...

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दधाना करपद्माभ्यामक्षमालाकमण्डलू। देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा।।

मां दुर्गा की नव-शक्तियों का दूसरा स्वरूप है ब्रह्मचारिणी। यहां ‘ब्रह्म’ शब्द का अर्थ तपस्या है। ब्रह्मचारिणी अर्थात तप की चारिणी-तप का आचरण करने वाली। कहा भी है, वेदस्तत्त्वं तपो ब्रह्म-वेद, तत्त्व और तप ‘ब्रह्म’ शब्द के अर्थ हैं। ब्रह्मचारिणी देवी का स्वरूप पूर्ण ज्योतिर्मय एवं अत्यंत भव्य है। इनके दाहिने हाथ में जप की माला एवं बाएं हाथ में कमंडलु रहता है।

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अपने पूर्व जन्म में जब यह हिमालय के पुत्री-रूप में उत्पन्न हुई थीं तब देवर्षि नारद के उपदेश से इन्होंने भगवान शंकर जी को पति रूप में प्राप्त करने के लिए अत्यंत कठिन तपस्या की थी। इसी दुष्कर तपस्या के कारण इन्हें तपश्चारिणी अर्थात ब्रह्मचारिणी नाम से  अभिहित किया गया। उन्होंने एक हजार वर्ष केवल फल-फूल खाकर व्यतीत किए थे। सौ वर्षों तक केवल शाक पर निर्वाह किया था। कुछ दिनों तक कठिन उपवास रखते हुए खुले आकाश के नीचे वर्षा और धूप के भयानक कष्ट सहे। इस कठिन तपश्चर्या के पश्चात् तीन हजार वर्षों तक केवल जमीन पर टूटकर गिरे हुए बेलपत्रों को खाकर वह अहर्निश भगवान शंकर की आराधना करती रहीं। इसके बाद उन्होंने सूखे बेलपत्रों को भी खाना छोड़ दिया। कई हजार वर्षों तक वह निर्जल और निराहार तपस्या करती रहीं। पत्तों (पर्ण) को भी खाना छोड़ देने के कारण उनका एक नाम ‘अपर्णा’ भी पड़ गया।

कई हजार वर्षों की इस कठिन तपस्या के कारण ब्रह्मचारिणी देवी का वह पूर्व जन्म का शरीर एकदम क्षीण हो उठा। वह अत्यंत ही कृशकाय हो गई थीं। उनकी यह दशा देखकर उनकी माता मेना अत्यंत दुखित हो उठीं। उन्होंने उन्हें उस कठिन तपस्या से विरत करने के लिए आवाज दी, ‘उ मा’, अरे! नहीं, ओ! नहीं! तब से देवी ब्रह्मचारिणी का पूर्व जन्म का एक नाम ‘उमा’ भी पड़ गया था।

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तीनों लोकों में देवता, ऋषि, सिद्धगण, मुनि सभी ब्रह्मचारिणी देवी की इस तपस्या को अभूतपूर्व पुण्यकृत बताते हुए उनकी सराहना करने लगे। अंत में पितामह ब्रह्मा जी ने आकाशवाणी के द्वारा उन्हें संबोधित करते हुए प्रसन्न स्वरों में कहा, ‘‘हे देवी! आज तक किसी ने ऐसी कठोर तपस्या नहीं की थी। ऐसी तपस्या तुम्हीं से संभव थी। तुम्हारे इस आलौकिक कृत्य की बहुत सराहना हो रही है। तुम्हारी मनोकामना सर्वतोभावेन परिपूर्ण होगी। भगवान चंद्रमौलि शिव जी तुम्हें पति रूप में प्राप्त होंगे। अब तुम तपस्या से विरत होकर घर लौट जाओ। शीघ्र ही तुन्हारे पिता तुम्हें बुलाने आ रहे हैं।’’

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मां दुर्गा जी का यह दूसरा स्वरूप भक्तों और सिद्धों को अनंतफल देने वाला है। इनकी उपासना से मनुष्य में तप, त्याग, वैराग्य, सदाचार, संयम की वृद्धि होती है। जीवन के कठिन संघर्षों में भी उसका मन कर्तव्य पथ से विचलित नहीं होता। मां ब्रह्मचारिणी देवी की कृपा से उसे सर्वत्र सिद्धि और विजय की प्राप्ति होती है।

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