Chhatrapati Shivaji Maharaj Jayanti: इतिहास के पन्नों से जानें छत्रपति शिवाजी महाराज की शौर्य गाथा

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 28 Mar, 2024 11:17 AM

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भारतीय इतिहास में कई ऐसे पराक्रमी राजा हुए जिन्होंने मातृभूमि की रक्षा के लिए जान की बाजी तक लगा दी लेकिन कभी दुश्मनों के आगे घुटने नहीं टेके। जब भी ऐसे राजाओं की बात होती है तो हमारी जुबां पर

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Chhatrapati Shivaji Maharaj: भारतीय इतिहास में कई ऐसे पराक्रमी राजा हुए जिन्होंने मातृभूमि की रक्षा के लिए जान की बाजी तक लगा दी लेकिन कभी दुश्मनों के आगे घुटने नहीं टेके। जब भी ऐसे राजाओं की बात होती है तो हमारी जुबां पर पहला नाम छत्रपति शिवाजी महाराज का ही आता है। उन्होंने मुगलों के विरुद्ध देशवासियों के मनोबल को मजबूत किया और ढलती हिन्दू तथा मराठा संस्कृति को नई संजीवनी दी। उन्होंने कौशल और योग्यता के बल पर मराठों को संगठित कर कई वर्ष औरंगजेब के मुगल साम्राज्य से संघर्ष किया। 1674 में उन्होंने मराठा साम्राज्य की स्थापना की, रायगढ़ में उनका राज्याभिषेक हुआ और वह छत्रपति बने।

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शिवाजी का जन्म 19 फरवरी, 1630 को शक्तिशाली सामंत राजा शहाजीराजे भोंसले के घर पुणे के जुत्रार गांव के पास शिवनेरी दुर्ग में हुआ था। माता जीजाबाई जाधवराव कुल में उत्पन्न असाधारण प्रतिभाशाली धार्मिक विचारों की महिला थीं। इनके बड़े भाई का नाम सम्भाजीराजे था। इनके दादा मालोजीराजे एक प्रभावशाली जनरल थे।

शिवाजी के जीवन पर माता-पिता का बहुत प्रभाव पड़ा। माता जीजाबाई एक साहसी, राष्ट्रप्रेमी और धार्मिक प्रवृत्ति की महिला थीं। उन्होंने अपने वीर पुत्र में बचपन से ही राष्ट्रप्रेम और नैतिकता की भावना कूट-कूट कर भरी जिसकी वजह से शिवाजी अपने जीवन के उद्देश्यों को हासिल करने में सफल होते चले गए और कई दिग्गज मुगल निजामों को पराजित कर मराठा साम्राज्य की नींव रखी। पिता शाहजी राजे भोसले ने पत्नी जीजाबाई और पुत्र शिवाजी महाराज की सुरक्षा और देखरेख की जिम्मेदारी दादोजी कोंडदेव के मजबूत कंधों पर छोड़ी थी। इनसे ही शिवाजी महाराज ने राजनीति एवं युद्ध कला की शिक्षा ली थी।

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बचपन में ही वह अपने आयु के बालकों को इकट्ठा कर उनके नेता बन कर युद्ध करने और किले जीतने का खेल खेला करते थे। इसके बाद वह वास्तव में किलों को जीतने लगे जिससे उनका प्रभाव धीरे-धीरे पूरे देश में पड़ने लगा और उनकी ख्याति बढ़ती चली गई। कम सैनिकों के बावजूद छापामार युद्ध में उनका कोई सानी नहीं था।

शिवाजी ने मुगल जनरल अफजल खां को चतुराई से मार डाला। वहीं शाइस्ता खान किसी तरह जान बचाकर भाग सका लेकिन शिवाजी महाराज के साथ हुई लड़ाई में उसको अपनी 4 उंगलियां खोनी पड़ीं। मुगल शासक औरंगेजेब से समझौते के बाद शिवाजी महाराज 9 मई, 1666 को अपने ज्येष्ठ पुत्र संभाजी और कुछ सैनिकों के साथ मुगल दरबार में पधारे। औरंगजेब ने शिवाजी महाराज और उनके बेटे को बंदी बना लिया लेकिन शिवाजी महाराज चतुराई से 13 अगस्त, 1666 को अपने बेटे के साथ फलों की टोकरी में छिपकर आगरा के किले से भाग निकले और 22 सितंबर, 1666 को रायगढ़ पहुंच गए।

अपने जीवन के आखिरी दिनों में वह अपने राज्य को लेकर काफी चिंतित रहने लगे थे, जिसकी वजह से उनका स्वास्थ्य बिगड़ता चला गया और लगातार 3 सप्ताह तक तेज बुखार में रहे, जिसके बाद 3 अप्रैल,1680 को उनका निधन हो गया।

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