Edited By Jyoti,Updated: 04 May, 2022 11:00 AM
रामकृष्ण परमहंस के मथुरा बाबू नाम के एक शिष्य थे। एक बार उन्होंने एक सुन्दर मंदिर बनवाया और उसमें भगवान की मूर्ति की स्थापना करवाई। मूर्ति को विभिन्न प्रकार के बेशकीमती वस्त्राभूषणों से सजाया गया।
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रामकृष्ण परमहंस के मथुरा बाबू नाम के एक शिष्य थे। एक बार उन्होंने एक सुन्दर मंदिर बनवाया और उसमें भगवान की मूर्ति की स्थापना करवाई। मूर्ति को विभिन्न प्रकार के बेशकीमती वस्त्राभूषणों से सजाया गया। दूर-दूर से लोग इस अनोखे मंदिर और मूर्ति के दर्शनार्थ आने लगे। तभी एक रात कुछ चोर मंदिर में घुसे और मूर्ति के सभी बेशकीमती आभूषणों को चुरा ले गए। सुबह जब लोगों ने देखा तो चारों ओर खबर आग की तरह फैल गई।
जब यह बात मथुरा बाबू को पता चली तो वह दौड़े-दौड़े मंदिर चले आए। भगवान की मूर्ति के सामने खड़े दुखी होकर बोले, ‘‘भगवान! आपके पास तो भयंकर हथियार हैं, जिनसे आपने कितने ही दुष्ट राक्षसों को मौत के घाट उतार दिया। फिर भी चोर आपके वस्त्राभूषण चोरी कर गए और आपने कुछ नहीं किया। आपसे तो हम मनुष्य अच्छे जो कम से कम थोड़ा बहुत विरोध तो कर ही लेते हैं।’’
रामकृष्ण परमहंस उस समय वहीं पास ही खड़े सब सुन रहे थे। वह मुस्कुराते हुए बोले, ‘‘मथुरा बाबू! भगवान को तुम्हारी तरह वस्त्राभूषणों का कोई लोभ-मोह नहीं, जो दिन-रात उनकी चौकीदारी करें और भगवान को कमी किस बात की है, जो उन तुच्छ गहनों के अपने अमोघ अस्त्रों का प्रयोग करें।’’ मथुरा बाबू ने शर्म से सिर झुका लिया।