Birthday Special: डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी को केंद्र सरकार ने दी सच्ची श्रद्धांजलि

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 06 Jul, 2022 08:10 AM

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6 जुलाई, 1901 को कलकत्ता में बहुमुखी प्रतिभा के धनी विख्यात शिक्षाविद सर आशुतोष मुखर्जी तथा जोगमाया के घर श्यामा प्रसाद मुखर्जी का जन्म हुआ।

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Dr. Shyama Prasad Mukherjee's birthday: 6 जुलाई, 1901 को कलकत्ता में बहुमुखी प्रतिभा के धनी विख्यात शिक्षाविद सर आशुतोष मुखर्जी तथा जोगमाया के घर श्यामा प्रसाद मुखर्जी का जन्म हुआ। 1922 में इनकी शादी संस्कारित और राष्ट्रप्रेमी सुधा देवी से हुई। इनके घर दो बेटियों सबिता एवं आरती और दो बेटों अनुतोष एवं देबातोष ने जन्म लिया। 1923 में कानून की पढ़ाई करने के पश्चात डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी इंगलैंड चले गए और 1926 में बैरिस्टर बनकर लौटे। अल्पायु में ही उल्लेखनीय सफलता अर्जित कर लीं और 1934 में 33 वर्ष की आयु में वह कलकत्ता विश्वविद्यालय के सबसे युवा कुलपति बन गए।

Who is Doctor Shyama Prasad Mukherjee: इनका कहना था कि सांस्कृतिक दृष्टि से हम सब एक हैं तथा धर्म के आधार पर विभाजन के वह कट्टर विरोधी थे। ब्रिटिश सरकार द्वारा प्रस्तावित पाकिस्तान में शामिल किए जा रहे बंगाल और पंजाब के विभाजन की मांग उठाकर इन्होंने वर्तमान बंगाल व पंजाब को बचा लिया। गांधी जी और सरदार पटेल के अनुरोध पर वह आजाद भारत के पहले मंत्रिमंडल में एक गैर-कांग्रेसी मंत्री के रूप में शामिल हुए और उन्हें उद्योग जैसा महत्वपूर्ण विभाग सौंपा गया। राष्ट्रवादी चेतना के चलते अन्य नेताओं से उनके मतभेद बराबर बने रहने के कारण उन्होंने मंत्रिमंडल से त्यागपत्र दे दिया और आर.एस.एस. प्रमुख श्री गोलवलकर (गुरु जी) से परामर्श करने के बाद 21 अक्तूबर, 1951 को  ‘भारतीय जनसंघ’ नामक राजनीतिक पार्टी का गठन किया और स्वयं इसके संस्थापक-अध्यक्ष बने।

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स्वतंत्र भारत के 1952 में हुए पहले संसदीय चुनाव में डा. मुखर्जी सहित 3 सांसद भारतीय जनसंघ से चुनकर आए। डा. मुखर्जी जम्मू-कश्मीर को भारत का पूर्ण और अभिन्न अंग बनाना चाहते थे। जम्मू-कश्मीर का अलग झंडा और अलग संविधान था। वहां का मुख्यमंत्री ‘वजीर-ए-आजम’ कहलाता था। वहां जाने के लिए परमिट लेना पड़ता था। संसद में अपने भाषण में डा. मुखर्जी ने धारा 370 समाप्त करने की भी जोरदार वकालत की। अगस्त 1952 में जम्मू की विशाल रैली में उन्होंने संकल्प व्यक्त किया था कि या तो जम्मू-कश्मीर को भारतीय संविधान प्राप्त करेंगे या फिर इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए अपना जीवन बलिदान कर दूंगा। वह 8 मई, 1953 को बिना परमिट लिए वह जम्मू-कश्मीर की यात्रा पर निकल पड़े। उन्हें गिरफ्तार कर नजरबंद कर लिया गया। 40 दिन जेल में बंद रहे और 23 जून, 1953 को सुबह 3.40 पर जेल के अस्पताल में रहस्यमयी परिस्थितियों में उनकी मृत्यु हो गई। इनकी मां ने मौत की जांच करवाने की मांग की लेकिन तत्कालीन सरकार ने इस पर ध्यान न दिया। अंतत : डा. मुखर्जी के संकल्प को पूरा करते हुए केंद्र सरकार ने 5 अगस्त, 2019 को धारा 370 को समाप्त कर उन्हें सच्ची श्रद्धांजलि दी।

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