Edited By Sarita Thapa,Updated: 20 Nov, 2025 03:15 PM

भारतीय संस्कृति और धर्म में मंदिर को साक्षात सकारात्मक ऊर्जा और पवित्रता का केंद्र माना जाता है। मंदिर में प्रवेश करने से पहले कई नियमों का पालन किया जाता है और उनमें से एक मुख्य नियम है कि भक्त को हमेशा दाहिना पैर (Right Foot) पहले अंदर रखना चाहिए।
Hindu Temple Rules: भारतीय संस्कृति और धर्म में मंदिर को साक्षात सकारात्मक ऊर्जा और पवित्रता का केंद्र माना जाता है। मंदिर में प्रवेश करने से पहले कई नियमों का पालन किया जाता है और उनमें से एक मुख्य नियम है कि भक्त को हमेशा दाहिना पैर (Right Foot) पहले अंदर रखना चाहिए। यह सिर्फ एक सामान्य रीति नहीं है, बल्कि इसके पीछे धार्मिक, आध्यात्मिक और प्रतीकात्मक कारण छिपे हैं जिनका उल्लेख हमारे प्राचीन शास्त्रों में मिलता है। तो आइए जानते हैं मंदिर में दाहिना पैर पहले रखकर हम किस प्रकार शुभता और ईश्वरीय आशीर्वाद को अपने जीवन में आमंत्रित करते हैं और शास्त्र इस परंपरा के बारे में क्या कहते हैं।
धार्मिक और आध्यात्मिक कारण
हिन्दू शास्त्रों और परंपराओं में दाहिने अंग को शुभ और सकारात्मकता का प्रतीक माना गया है। दाहिना भाग हमेशा सूर्य नाड़ी या पिंगला नाड़ी से जुड़ा होता है, जो सक्रियता, पौरुष और सकारात्मक ऊर्जा का प्रतिनिधित्व करती है। चूंकि मंदिर सकारात्मक ऊर्जा का केंद्र होता है, इसलिए दाहिना पैर पहले रखकर हम अपनी सकारात्मकता को उस पवित्र ऊर्जा से जोड़ते हैं। साथ ही दाहिना पैर विजय, प्रगति और आगे बढ़ने का प्रतीक है। मंदिर में प्रवेश करते समय दाहिना पैर पहले रखना यह दर्शाता है कि भक्त अपने जीवन में धर्म और सच्चाई की ओर प्रगति कर रहा है और बुराइयों पर विजय प्राप्त करना चाहता है। यह क्रिया देवता के प्रति सम्मान और श्रद्धा व्यक्त करने का एक तरीका भी है। यह भक्त की विनम्रता और समर्पण को दर्शाता है।

मनोवैज्ञानिक और वैज्ञानिक तर्क
मनुष्य की आदत होती है कि वह हमेशा अपने दाहिने हाथ से ही शुभ कार्य शुरू करता है। इसी आदत को मंदिर में प्रवेश के साथ जोड़कर एक सकारात्मक मानसिक संकल्प बनाया जाता है कि पूजा का यह कार्य सफलतापूर्वक और शुभ ढंग से पूर्ण होगा। वैज्ञानिक दृष्टिकोण से, जब हम कोई भी नया या महत्वपूर्ण कार्य शुरू करते हैं, तो दाहिना पैर पहले उठाने से शरीर में एक सकारात्मक ऊर्जा चक्र बनता है जो मन को शांत और एकाग्र करने में मदद करता है। दाहिना पैर पहले अंदर रखने का नियम हमें अस्थायी ठहराव देता है, जिससे हम मंदिर की पवित्रता के प्रति जागरूक होते हैं और पूरी चेतना के साथ ईश्वरीय उपस्थिति को महसूस करते हैं।
