Edited By Prachi Sharma,Updated: 15 May, 2025 07:17 AM
हकीम लुकमान का बचपन अभावों में बीता था। उन्हेें भरण-पोषण के लिए गुलामी भी करनी पड़ी। एक बार उनके मालिक ने ककड़ी खानी चाही। उसने लुकमान को ककड़ी लाने का आदेश दिया। लुकमान ककड़ी ले आए। मालिक ने ज्यों ही ककड़ी मुंह से लगाई उसे पता चल गया कि ककड़ी...
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Inspirational Context: हकीम लुकमान का बचपन अभावों में बीता था। उन्हेें भरण-पोषण के लिए गुलामी भी करनी पड़ी। एक बार उनके मालिक ने ककड़ी खानी चाही। उसने लुकमान को ककड़ी लाने का आदेश दिया। लुकमान ककड़ी ले आए। मालिक ने ज्यों ही ककड़ी मुंह से लगाई उसे पता चल गया कि ककड़ी अत्यंत कड़वी है।
मालिक ने ककड़ी लुकमान की ओर बढ़ा दी और कहा, “ले, इसे तू खा ले।”
लुकमान ने ककड़ी ले ली और उसे खा गए। लुकमान के मालिक को बेहद आश्चर्य हुआ।
वह तो यह मानकर चल रहा था कि इतनी कड़वी ककड़ी कोई खा ही नहीं सकता इसलिए लुकमान इसे फैंक देगा।
जब लुकमान ने पूरी ककड़ी सहजता से खा ली तो मालिक ने पूछा, “तू इतनी कड़वी ककड़ी कैसे खा गया ?”
लुकमान ने कहा, “मालिक ! आप मुझे रोज स्वादिष्ट खाना बड़े प्यार से खिलाते हैं। ऐसे में अगर आपने एक दिन कड़वी ककड़ी दे भी दी तो मैं क्या उसे नहीं खा सकता ? मैंने उसे भी और चीजों की तरह ही अच्छा मानकर खा लिया।”
लुकमान का मालिक समझदार और दयालु था। वह बोला,“आज तुमने मुझे जीवन का बड़ा सच बताया है। परमात्मा हमें अनेक प्रकार के सुख देता है, उसी के हाथ से यदि कभी दुख भी आए तो उस दुख को हमें खुशी-खुशी स्वीकार करना चाहिए। इसी से जीवन सार्थक हो सकता है। आज से तुम गुलाम नहीं रहोगे।”
दासता से मुक्ति पाकर लुकमान ने उसी दिन से कड़ी मेहनत शुरू कर दी। अपने कठोर अध्ययन के बल पर उन्होंने चिकित्सा क्षेत्र में महारत हासिल की। अपने इस हुनर का इस्तेमाल उन्होंने मानवता की सेवा में किया।