Edited By Sarita Thapa,Updated: 04 Nov, 2025 01:01 PM

यूरोप के एक प्राचीन नगर के एक छोर पर इब्राहीम अपनी बीवी और बच्चों के साथ रहता था। हालांकि वह गरीब था, मगर धर्मात्मा और उदार था। यह क्रम कुछ अर्से तक चलता रहा।
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Inspirational Context: यूरोप के एक प्राचीन नगर के एक छोर पर इब्राहीम अपनी बीवी और बच्चों के साथ रहता था। हालांकि वह गरीब था, मगर धर्मात्मा और उदार था। यह क्रम कुछ अर्से तक चलता रहा। इब्राहीम को इसमें बड़ा आनंद मिलता, मगर साथ ही उसे अभिमान होने लगा कि वह बड़ा पुण्यात्मा है और उसका धर्म ही दुनिया का सबसे बड़ा धर्म है। एक दिन एक थका-मांदा बूढ़ा इब्राहीम के घर आया। इब्राहीम ने उसका स्वागत किया और आराम से बिठाया। थोड़ी देर के बाद बूढ़ा बोला, ‘‘बेटा, मैं बड़ी दूर से आया हूं, बहुत भूखा हूं।’’
इब्राहीम उठा और खाना ले आया। खाना शुरू करने से पहले उसने प्रार्थना पढ़ी। इब्राहीम ने देखा कि वह बूढ़ा उसके साथ प्रार्थना में शामिल नहीं हुआ। उसने पूछा, ‘‘तुमने साथ में प्रार्थना क्यों नहीं पढ़ी?
बूढ़े ने जवाब दिया, ‘‘हम अग्नि की पूजा करते हैं।’’ यह सुनकर इब्राहीम भड़क उठा। उसने चिल्लाकर कहा ‘‘अगर तुम्हें मेरे ईश्वर में विश्वास नहीं है और तुम मेरी प्रार्थना नहीं पढ़ सकते तो तुम इसी वक्त मेरे घर से निकल जाओ।’’

इब्राहीम ने बिना खाना खिलाए बूढ़े को घर से निकाल दिया। ज्यों ही उसने ऐसा किया कमरे में ज्योति फैली और एक फरिश्ता प्रकट हुआ और इब्राहीम से बोला, ‘‘यह तुमने क्या किया?
ईश्वर इस गरीब बूढ़े का सौ वर्ष से भरण-पोषण करता रहा है, मगर तुम धर्मात्मा बनने पर भी उसे सिर्फ इसलिए खाना न खिला सके कि वह दूसरे धर्म को मानता है। दुनिया में कितने ही धर्म हों लेकिन ईश्वर एक है और वह सबका पिता है।’’ यह कह कर फरिश्ता गायब हो गया। इब्राहीम को अपनी मूर्खता का ज्ञान हुआ। वह बूढ़े के पीछे भागा और उसे वापस घर बुला लाया।
