Edited By Sarita Thapa,Updated: 29 Jul, 2025 11:10 AM

Inspirational Story: प्रेम और मोह मनुष्य जीवन की दो ऐसी सहज भावनाएं हैं, जो हम सभी के भीतर मौजूद हैं। अक्सर लोग प्रेम और मोह को एक समान मानने की गलती कर बैठते हैं, जबकि उनमें जमीन-आसमान का अंतर है।
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Inspirational Story: प्रेम और मोह मनुष्य जीवन की दो ऐसी सहज भावनाएं हैं, जो हम सभी के भीतर मौजूद हैं। अक्सर लोग प्रेम और मोह को एक समान मानने की गलती कर बैठते हैं, जबकि उनमें जमीन-आसमान का अंतर है। प्रेम का आरंभ किसी व्यक्ति से हो तो सकता है पर उस तक सीमित नहीं रह सकता। यदि कुछ पाने की कामना करता है तो वह मोह बन जाता है। मोह आदान-प्रदान की अपेक्षा और उपभोग की कामना करता है।

चूंकि प्रेम एक आदर्श है, इसलिए उसकी घनिष्ठता एकात्मता, आदर्श के साथ ही जुड़ी रहेगी। अत: जहां आदर्श न हो वहां प्रेम का अस्तित्व रह ही नहीं सकता। दूसरी ओर व्यक्तिगत मोह किसी के रंग-रूप, व्यवहार, उपयोग एवं आकर्षण के आधार पर पनपता है। मसलन, जो रुचिर लगा उसी के प्रति आकर्षण बढ़ गया, जिसकी समीपता में सुखद कल्पना कर ली गई, उसी के पीछे मन चलने लगा। यह आशक्ति किसी को देखने मात्र से पनप सकती है व उसके घनिष्ठ सान्निध्य की आतुरता उन्माद बनकर कुछ भी कर-गुजर सकती है। ऐसे प्रेमोन्माद में कभी भी किसी को शांतिदायक परिणाम हाथ नहीं लगा।

मोहग्रस्त व्यक्ति एक संबंध में कभी भी टिक नहीं पाता और अपने आकर्षण की प्यास बुझाने के लिए एक से दूसरे, दूसरे से तीसरे... ऐसे अनगिनत संबंधों की बेडिय़ों में खुद को जीवन भर बांधता रहता है। अंतत: वह न किसी का सगा और न ही विश्वासपात्र बन पाता है।
इससे बाहर निकलने की तरकीब बिल्कुल सरल है और वह है ‘आत्मानुभूति’। जब तक हम स्वयं यह बात स्वीकार नहीं करेंगे कि मोह का यह मायाजाल हमारी ही मानसिक रुग्णता का परिणाम है, तब तक हम बाहर नहीं निकल पाएंगे। अत: यदि हम उद्धार चाहते हैं, तो सभी प्रकार की इच्छा-कामनाओं का त्याग कर सभी से नि:स्वार्थ प्रेम करना सीखना होगा।
