Dr. Keshav Baliram Hedgewar death anniversary: डॉ. केशव राव बलीराम हेडगेवार द्वारा स्थापित संगठन पर हैं पूरे विश्व की निगाहें

Edited By Updated: 21 Jun, 2024 08:35 AM

keshav baliram hedgewar death anniversary

जिस समय पूरा देश अंग्रेजों की गुलामी से मुक्ति पाने के लिए संघर्ष कर रहा था, 36 वर्षीय एक नौजवान डॉक्टर ने 1925 में एक ऐसे संगठन की स्थापना की जो आज विश्व का सबसे बड़ा स्वयंसेवी संगठन है। उन्होंने राष्ट्रीय

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Dr. Keshav Baliram Hedgewar death anniversary: जिस समय पूरा देश अंग्रेजों की गुलामी से मुक्ति पाने के लिए संघर्ष कर रहा था, 36 वर्षीय एक नौजवान डॉक्टर ने 1925 में एक ऐसे संगठन की स्थापना की जो आज विश्व का सबसे बड़ा स्वयंसेवी संगठन है। उन्होंने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के रूप में एक ऐसा संगठन देश को दिया, जिसकी कार्यप्रणाली पर आज पूरे विश्व की निगाहें रहती हैं। संघ के संस्थापक डा. केशव राव बलीराम हेडगेवार का जन्म 1 अप्रैल, 1889 को नागपुर में पिता बलीराम और माता रेवती बाई के परिवार में हुआ। जन्म से बालक केशव के मन में देश भक्ति कूट-कूट कर भरी हुई थी और बचपन से ही वह जुझारू प्रवृति के थे। कसरत, कुश्ती, अखाड़ा और लाठी के शौक से शरीर हष्ट-पुष्ट और मजबूत हो गया था। 8 वर्ष के केशव में देश भक्ति की झलक समाज को उस समय मिली, जब बालक ने इंगलैंड की रानी विक्टोरिया के शासन के 60 वर्ष होने पर उनके स्कूल में बांटी मिठाई न खाकर कूड़े में फैंक दी।

 

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बालक केशव ने स्कूल में ही पढ़ते हुए निरीक्षण के लिए आए अंग्रेज इंस्पैक्टर का अपने सहपाठियों के साथ ‘वन्दे मातरम्’ के जयघोष से स्वागत किया, जिस पर अंग्रेज इंस्पैक्टर बिफर गया और उसके आदेश पर केशव राव को स्कूल से निकाल दिया गया। उन्होंने डाक्टरी की पढ़ाई की लेकिन देश को आजाद करवाने के लिए वह कांग्रेस में सक्रिय हो गए। पूरी तन्मन्यता के साथ भागीदारी और जेल जीवन के दौरान भी जो अनुभव पाए, उससे इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि समाज में जिस एकता की कमी और धुंधली पड़ी देशभक्ति की भावना के कारण हम परतंत्र हुए हैं, वह केवल कांग्रेस के जन आन्दोलन से जागृत और मजबूत नहीं हो सकती।

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डॉ. केशव राव बलीराम हेडगेवार के इसी चिन्तन एवं मंथन का प्रतिफल था राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ नाम से संस्कारशाला के रूप में शाखा पद्धति की स्थापना। राष्ट्र को सुदृढ़ बनाने के साथ-साथ हिन्दू समाज को संगठित, अनुशासित एवं शक्तिशाली बनाकर देश के प्रत्येक व्यक्ति का चरित्र निर्माण और देश सेवा के लिए संगठित करना ही संघ-शाखा का उद्देश्य है। इसी उद्देश्य के लिए उन्होंने पूरा जीवन लगा दिया और डॉक्टर होते हुए भी अपनी परवाह नहीं की, जिसका परिणाम हुआ कि इन्हें गंभीर बीमारियों ने घेर लिया और 21 जून, 1940 को डॉक्टर साहिब की आत्मा अनंत में विलीन हो गई। नागपुर के रेशम बाग में इनका अंतिम संस्कार किया गया। उसी तपोभूमि पर इनका प्रेरणादायक स्मृति मंदिर बना है।   

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